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मंगलवार, जनवरी 27, 2015

"जिंदगी के धूप में या छाँह में" चर्चा मंच 1871

धूप में आनन्द लेते जाइए । 
छाँह में मुस्काइये, सुस्ताइए । 
जिंदगी के धूप में या छाँह में, 
घबराइये न और न इतराइये ॥ 

Dr.pratibha sowaty  

जनतंत्र का जन 

कौन सोचता हैं गरीबों के बारे में 
कौन रखता है मुफलिसों से हमदर्दी   
किसे सुध है आम आदमी की... 
शीराज़ा  पर हिमकर श्याम 

चाहत जीने की 

बेतरतीब लम्हों की चुभन मजा देती है ... 
महीन कांटें अन्दर तक गढ़े हों 
तो उनका मीठा मीठा दर्द भी 
मजा देने लगता है ... 
स्वप्न मेरे... पर Digamber Naswa 

11 टिप्‍पणियां:

  1. गणतन्त्रदिवस के उपलक्ष्य में सजायी गयी इस सुन्दर चर्चा के लिए आपका आभार आदरणीय रविकर जी।
    --
    सभी पाठकों को गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. विस्तृत, अच्छी चर्चा ... आभार मुझे शामिल करने का ...
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ...

    जवाब देंहटाएं
  3. प्यारे लिंक्स
    खुद को पाकर अच्छा लगा !!

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय ,
    समस्त चर्चामंच को हार्दिक बधाई , देश और प्रौढ़ हुवा , परिपक्वता की इस यात्रा में हम सब सहभागी हो !
    जय हिन्द !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट कहानी "अन्धेरी राहों का चिराग (भाग-दो)" को शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  6. धन्यवाद ! मयंक जी ! मेरी रचना ''अकविता (14) - सतत अनुसंधान ,शोध ,खोज ,तलाश '' को शामिल करने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर सूत्र संकलन, सुंदर चर्चा...मेरी रचना को शामिल किया, आपका आभार.

    जवाब देंहटाएं

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