धूप में आनन्द लेते जाइए ।
छाँह में मुस्काइये, सुस्ताइए ।
जिंदगी के धूप में या छाँह में,
घबराइये न और न इतराइये ॥
|
जनतंत्र का जन
कौन सोचता हैं गरीबों के बारे में
कौन रखता है मुफलिसों से हमदर्दी
किसे सुध है आम आदमी की...
|
चाहत जीने की
बेतरतीब लम्हों की चुभन मजा देती है ...
महीन कांटें अन्दर तक गढ़े हों
तो उनका मीठा मीठा दर्द भी
मजा देने लगता है ...
|
गणतन्त्रदिवस के उपलक्ष्य में सजायी गयी इस सुन्दर चर्चा के लिए आपका आभार आदरणीय रविकर जी।
जवाब देंहटाएं--
सभी पाठकों को गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
suprabhaat merii rachna shaamil karne ke liye aabhaar
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति रविकर जी ।
जवाब देंहटाएंविस्तृत, अच्छी चर्चा ... आभार मुझे शामिल करने का ...
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ...
प्यारे लिंक्स
जवाब देंहटाएंखुद को पाकर अच्छा लगा !!
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंआदरणीय ,
जवाब देंहटाएंसमस्त चर्चामंच को हार्दिक बधाई , देश और प्रौढ़ हुवा , परिपक्वता की इस यात्रा में हम सब सहभागी हो !
जय हिन्द !
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट कहानी "अन्धेरी राहों का चिराग (भाग-दो)" को शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ! मयंक जी ! मेरी रचना ''अकविता (14) - सतत अनुसंधान ,शोध ,खोज ,तलाश '' को शामिल करने हेतु !
जवाब देंहटाएंसुंदर सूत्र संकलन, सुंदर चर्चा...मेरी रचना को शामिल किया, आपका आभार.
जवाब देंहटाएं