रविकर "लिंक-लिक्खाड़" जलती जाए जिंदगी, ज्योति न जाया जाय । आँच साँच को दे पका, कठिनाई मुस्काय । कठिनाई मुस्काय, जिंदगी कागद लागे । अपनी मंजिल पाय, देखते उससे आगे । गूढ़ कहानी आप, यहाँ स्वाभाविक चलती । फैला रही प्रकाश, चिता यह धू धू जलती ॥ दोहा जाति ना पूछो साधु की, कहते राजा रंक | मजहब भी पूछो नहीं, बढ़ने दो आतंक || |
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मंगलवार, जनवरी 20, 2015
मजहब भी पूछो नहीं, बढ़ने दो आतंक ; चर्चा मंच 1864
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अद्यतन लिंकों के साथ बढ़िया चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रविकर जी।
बढ़िया चर्चा रविकर जी।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स के साथ सार्थक चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसार्थक सूत्र सुन्दर चर्चा !
जवाब देंहटाएंनए सूत्र और सुन्दर चर्चा ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मेरी नज़्म को शामिल करने का ...
आतंक का कोई धर्म नहीं होता आतंकी का होता है..,
जवाब देंहटाएंमाने की अभी तक तो होता है आगे का पता नहीं.....