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शनिवार, जनवरी 31, 2015

"नये बहाने लिखने के..." (चर्चा-1875)

मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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"मुख पर राम नाम आता है" 

गांधी जी को नमन
राम नाम है सुख का धाम। 
राम सँवारे बिगड़े काम।। 

असुर विनाशकजगत नियन्ता, 
मर्यादापालक अभियन्ता, 
आराधक तुलसी के राम। 
राम सँवारे बिगड़े काम।।... 
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महात्मा जी के प्रति - 

सुमित्रानंदन पंत 

निर्वाणोन्मुख आदर्शों के अंतिम दीप शिखोदय! 
जिनकी ज्योति छटा के क्षण से प्लावित आज दिगंचल, 
गत आदर्शों का अभिभव ही मानव आत्मा की जय... 
Yashwant Yash
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गांधी के अहिंसक जादू ने 

सारी दुनिया को प्रभावित किया 

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896-तुम मुझे विस्मृत... 

तुम मुझे विस्मृत करने की कोशिश में हो 
सरापा भींगें हुए मेरी यादों की बारिश में हो... 
तात्पर्य पर कवि किशोर कुमार खोरेन्द्र 
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जब मुनीन्द्र आंखे मूंद कर सो गये 

और मैं आज---रोते-रोते सो गयी 

जब मुनीन्द्र आंखे मूंद कर सो गये 

सीने पर गोलियां कर लीं दफन 
और बेटी अलका को दे कल के स्वप्न 
पत्नी-पिता और अपनों को कर विहल 
जब मुनीन्द्र आंखे मूंद कर सो गये.. 
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नये बहाने लिखने के... 

तन की सरहदों के दायरे में ही एक गांव बसाया था। कोख की मिट्टी में मासूमियत रोपी थी और सोचा था कि इक रोज़ किलकारियों की फसल महकेगी। चाहा था कि उन किलकारियों को पिरो कर एक खूबसूरत बन्दनवार तैयार करूंगी और अांगन के ठीक. सामने वाले दरवाज़े पर टांग दूंगी। उसमें लटकानी थी मुझे नन्ही नन्हीं लोरियों की घण्टियां कि जिन्हें आते जाते हल्का सा हिला दूंगी और उन सुरों से भर जाएगा सारा खालीपन।... 
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और नींद है कि टूटती ही नहीं 

गाँव खो रहे हैं 
शहर सो रहे हैं 
और नींद है 
कि टूटती ही नहीं... 
vandana gupta
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नेता और भ्रष्टाचार! 

गर नेता भ्रष्टाचार मुक्त होता , 
भारत एक विकसित देश होता, 
नेता गर इमानदार होता , 
कर्मचारी भी नेताओं से खौप खाता... 
कालीपद "प्रसाद" 
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कुछ अलाहदा शे’र : 

उनकी नाराज़गी तो काम आए 

1.
मनाने के श’ऊर को मेरे,
उनकी नाराज़गी तो काम आए।
2.
अँधेरी रात में ही दीप जले तो अच्छा,
कोई भूला जो याद आए तो ग़ज़ल होती है।
3... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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उसके आने और उसके जाने का 
फर्क नजर आ रहा है 

सात समुंदर पार 
से आकर 
वो आईना 
दिखा रहा है 
धर्म के नाम पर 
बंट रहे हो 
बता रहा है 
पता किसी 
को भी नहीं था
वो बस इतना
और इतना ही
बताने के लिये
तो आ रहा है... 


उल्लूक टाईम्स
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यादों के बहाने : 
आशाओं का सूर्योदय 
दिवाकर ही कर सकते - 
डॉ साधना बलवटे 

आपातकाल के दौरान ग्वालियर केन्द्रीय काराग्रह में रहे मीसाबंदी दिवाकर जी को शायद ही हम कभी भूल पायें। उनकी उन्मुक्त हंसी, हरफनमौला व्यक्तित्व, हर छोटे बड़े के साथ आत्मीयतापूर्ण व्यवहार, सादगी, सरलता सबको अपना बना लेती। 
दिनांक ०१ मई २०१४ को दिवाकर जी ने अपनी जीवन यात्रा पूर्ण की... 
तम भले कितना घना हो 
आंधियों का सामना हो 
दीप में बाती सजायी है 
सतत जलती रहेगी....... 
पूर्वाभास
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अँगना आया कौन ! 
सुदर्शन रत्नाकर
1
बहाती रही
निरन्तर रजनी
ओस के आँसू
पर मिल न पाई
प्रियतम सूर्य से ।

2... 
त्रिवेणी
तू ख़ुदा की इबादत में हो तो हो 
मेरी हर इबादत तो तुम से है 
दौलत-ऐ-हुस्न ये जो तेरा है 
मेरी फ़कीरी तो बस उस से है 
तेरी मुस्कुराहटों से जो फूल झरते हैं ... 
खिड़की पर 
मोहन सेठी "इंतज़ार" 
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मेरी बेटी 

यह अहो भाग्य है मेरा 
जो बेटी का आगमन हुआ 
दिल की चिर संचित आशा को 
ईश्वर तुमने पूरा किया .  
इंतजार थी कई दिनसे 
अत्यंत ख़ुशी हुई तुमसे मिलके 
पूर्ण हुई अभिलाषा मेरी 
अरमान और आकांक्षा मेरी ... 
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6 टिप्‍पणियां:

  1. शास्त्री जी सुंदर सूत्र सुंदर चर्चा ...और आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिये ...सादर

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  2. बेहतरीन लिंक्स से सजी .... हार्दिक आभार काव्यसुधा को शामिल करने हेतू ...

    जवाब देंहटाएं
  3. खूबसूरत लिंक संयोजन .......आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन सूत्र संयोजन में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सर

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर शनिवारीय चर्चा । आभार 'उलूक' का सूत्र 'उसके आने और उसके जाने का फर्क नजर आ रहा है' कोस्थान देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं

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