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मंगलवार, अप्रैल 21, 2015

दोहे-"होना पड़ता सभी को, कभी न कभी अनाथ"-चर्चा मंच 1952

सादर-नमन 
----रविकर 

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4 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    पर्याप्त लिंक्स |उम्दा संकलन उनका |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार रविकर जी |

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय रविकर जी एक लम्बे अन्तराल के बाद आपकी चर्चा देखने को मिली।
    बहुत अच्छा लगा।
    आपका बहुत-बहुत आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय रविकर जी चर्चा को बाद में और पहले आप की उपस्थिति से चर्चामंच खिल उठा । बहुत सुंदर प्रस्तुति है इसीलिये मैंने भी आपका स्वागत करने के बाद में कहा ।'उलूक' के सूत्र 'अपने घर की छोटी बातों में एक बड़ा देश नजर अंदाज हो रहा होता है' को जगह दी दिल से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं

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