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शनिवार, जुलाई 27, 2019

"कॉन्वेंट का सच" (चर्चा अंक- 3409)

शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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पुलक 

noopuram 
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आखिर प्रेम का गान जीत ही गया 

एक फालतू पोस्टके बाद इसे भी पढ़ ही लें। लोहे के पेड़ हरे होंगे तू गान प्रेम का गाता चल यह कविता दिनकर जी की है, मैंने जब पहली बार पढ़ी थी तब मन को छू गयी थी, मैं अक्सर इन दो लाइनों को गुनगुना लेती थी। लेकिन धीरे-धीरे सबकुछ बदलने लगा और लगा कि नहीं लोहे के पेड़ कभी हरे नहीं होंगे, यह बस कवि की कल्पना ही है... 
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5 टिप्‍पणियां:

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