सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
करोना संक्रमण के बढ़ते क़हर के बीच पड़ोसी देश चीन दुनिया का ध्यान अपनी शातिराना चालों की बदनामी से हटाने के लिए हमारी सीमा(लद्दाख) पर दख़ल-अंदाज़ी कर रहा है। आज दोनों देशों के लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारियों की बैठक प्रस्तावित है, उम्मीद है सकारात्मक परिणाम की दिशा में विवादों का लॉकडाउन खुलेगा।
करोना संक्रमण के बढ़ते क़हर के बीच पड़ोसी देश चीन दुनिया का ध्यान अपनी शातिराना चालों की बदनामी से हटाने के लिए हमारी सीमा(लद्दाख) पर दख़ल-अंदाज़ी कर रहा है। आज दोनों देशों के लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारियों की बैठक प्रस्तावित है, उम्मीद है सकारात्मक परिणाम की दिशा में विवादों का लॉकडाउन खुलेगा।
आइए पढ़ते हैं आज की पसन्दीदा रचनाएँ-
कोरोना काल में विशेषज्ञ डॉक्टर्स पर
कॉमन सेंस पड़ा भारी
याद पर कविता
"उसकी यादों के महक सिवा"
कॉमन सेंस पड़ा भारी
ये कॉमन सेंस ही है कि रोगी अपने बारे में बात करते हुए ज्यादा दर्द महसूस नहीं करता और उनकी खास बात ये कि इलाज लगभग नि: शुल्क किया जाता है, बस वे सिर्फ शहद-चूना और धाेती की पट्टियों का पैसा ही लेते हैं जो बहुत मामूली होता है। ऐसे में रोगी की खुशी दोगुनी हो जाती है और मानसिक तौर आश्वस्त व खुश व्यक्ति जल्दी रिकवर करता है।
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"उसकी यादों के महक सिवा"
करना बदनाम उसे मेरी फ़ितरत में नहीं
बेक़सूर बेबाक़ी से उसको बताना सीख लिया
शाद था जबकि बेहिसाब ज़ालिम की दग़ा पे दिल
हो न वो बदनाम बहारों पे इल्ज़ाम लगाना सीख लिया ।
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बिखेरे थे तूने आशाओं के
रंग अनेकों, इस कैनवास पर
कि हो जाए य़ह रंगबिरंगी
दुनिया हुलसित
हो हर दिशा पुष्पों
की गमक से सुरभित
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जो बुने थे सुनहरे सपने
रंग लगेंगे पीले अपने,
कैद कब हो जाएंगे सब,
दूर अपने हो जाएंगे सब
आश उमंग के तान सारे,
धूल में यूं बिखर जाती है,
जब रात काली स्याह बनकर,
दिन पर यूं छा जाती है|
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मेरे एक मित्र का अभी फोन आया, बोला- "भई, केरल में गर्भवती हथिनी के साथ इतनी भयङ्कर वारदात हो गई और आपने अभी तक इस विषय में कुछ भी नहीं लिखा? न ब्लॉग पर, न प्रतिलिपि पर और न ही फेसबुक पर! आप तो हर तरह के विषयों पर लिखा करते हो। कैसे हो आजकल आप? आपका स्वास्थ्य तो ठीक है न?"
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रविवार को सोहराब मोदी की मशहूर फिल्म 'पुकार' देखी सबके साथ. इंसाफ प्रेम पर कुर्बान नहीं हो सकता. उसको ठुकरा सकता है. इंसाफ इंसाफ है, वह आँखें मींच कर चलता है, वह चेहरे नहीं पहचानता, यह तब की बात थी, गुजरे वक्त की, क्या आज भी ऐसा है ? आज तो पैसे के बल पर इंसाफ को खरीदा-बेचा जा सकता है, जाता है.
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लोकतंत्र का मुर्दा ( लघुकथा )
लोकतंत्र का मुर्दा ( लघुकथा )
"क्या हुआ धनेसर?"
"तुझे इतना पसीना क्यों आ रहा है?"
"कहीं कोई भूत-वूत तो नहीं देख लिया!''
कहते हुए डा. देशमुख; धनेसर की घबराहट पर चुटकी लेते हैं।
परंतु भय से काँपता हुआ धनेसर-
"साहेब मैंने उस सैंतीस नंबर वाले मुर्दे को बोलते हुए सुना है।"
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कुछ साँसें जो बढ़ जाएं ऐसा कर लूँगा,
जो नाते तोड़े थे स्नेह से फिर भर दूँगा ,
अहम् के आगे मैंने सब बौना माना था,
हठ और गर्व जिया सब आना-जाना था,
फिर इच्छा जागी है,बचपन में जाने की,
खो जो दिया कहीं,वो फिर से पाने की,
पर अब साँसें हैं उखड़ रहीं
और जुस्तजुएँ हज़ार हैं।
और जुस्तजुएँ हज़ार हैं।
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आज सुबह विनय ने काफी जल्दी मेडिकल की दुुकान खोल ली थी
और लगातार कई डॉक्टरों के दवाई लेने आने के कारण वह काफी थक भी गया था
तभी उसके सामने उसकी हम उम्र चश्मा लगाए हुए एक व्यक्ति अपने
पूरे परिवार सहित खड़ा हो गया एक बार को तो विनय भौचक्का रह गया
आओ बच्चों आलस त्यागें,
पढ़-लिखकर कुछ नाम कमाएं
जो बच्चे हैं आलस करते,
कभी न आगे बढ़ने पाते।।1।।
मुझको समझने के लिए
काफी हैं शब्दों के पुल
मेरी दुनिया शब्दों से परे
अधूरी सी है ….
बल्कि शख्सियत बनने की कोशिश करना क्योंकि शख्स एक दिन मर जाता
हफ़्तों से पैदल ही मीलों का सफ़र तय कर रहे
प्रवासी मज़दूर अपने लिए भेजी गई स्पेशल बस की सूचना मिलते ही
बस की ओर तेज़ी से बढ़ते हैं।
कविताएं तो मैंने बहुत लिख ली लेकिन आज प्रयास किया है
कि अपनी कविताओं को अपनी आवाज में आप सबों के सामने प्रस्तुत करो
आशा करती हूं आप सबों को मेरा यह प्रयास जरुर पसंद आएगा
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शब्द-सृजन- 24 का विषय है-
मसी / क़लम
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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आज बस यहीं तक,
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में।
रवीन्द्र सिंह यादव
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आज बस यहीं तक,
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया और विविधता पूर्ण चर्चा प्रस्तुति ।मेरी रचना को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा संकलन रवींद्र जी, मेरी ब्लॉगपोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का संकलन अति सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंसादर
सारी रचनाएँ एक से बढ़कर एक ........ आलस्य को मंच पर स्थान देने के लिए आभार ......
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुतियां
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए खेद है, आभार !
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