सादर अभिवादन !
शुक्रवार की चर्चा मंच प्रस्तुति में आप सभी विद्वजनों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन ।
विश्व पर्यावरण दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं इस संकल्प के साथ कि "हम प्रकृति के संरक्षण हेतु कम से कम एक वृक्ष लगा कर उसके पल्लवन का दायित्व लेने के साथ-साथ प्रकृति के अनावश्यक दोहन के भागीदार नहीं बनेंगे ।"
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आज की चर्चा का आरम्भ सुप्रसिद्ध कवि जयशंकर प्रसाद जी की कामायनी के अंश से -
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आह घिरेगी हृदय-लहलहे,
खेतों पर करका-घन-सी,
खेतों पर करका-घन-सी,
छिपी रहेगी अंतरतम में,
सब के तू निगूढ़ धन-सी।
--सब के तू निगूढ़ धन-सी।
बुद्धि, मनीषा, मति, आशा,
चिन्ता तेरे कितने नाम
चिन्ता तेरे कितने नाम
अरी पाप है तू, जा, चल जा,
यहाँ नहीं कुछ तेरा काम।।
【 चिन्ता सर्ग 】
यहाँ नहीं कुछ तेरा काम।।
【 चिन्ता सर्ग 】
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आइए अब बढ़ते हैं आज के चयनित
सूत्रों की ओर -
(१)
मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है,
हमारा आवरण जिसने, सजाया और सँवारा है।
बहुत आभार है उसका, बहुत उपकार है उसका,
दिया माटी के पुतले को, उसी ने प्राण प्यारा है।
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(2)
(2)
सांसे जकडकर भी कह रहा कोविड-१९
बेटा, जंग जारी रख, हिम्मत न हारना।
मगर याद रहे, जिंदगी का ये फलसफा,
खटिया से बाहर कभी पैर मत पसारना।।
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(३)
(३)
हमने प्रोग्राम सेट कर दिया और लड़की देखने लड़का, उसकी माँ और बहन उसके घर चले गये।
लड़का भी बहुत खानदानी घर से था साथ ही ऊंचे ओहदे पर भी था लिहाजा खूब जमकर खातिरदारी की गई। यूं भी लड़की पक्ष आर्थिक रूप से अति सक्षम था।
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(४)
(४)
बाबूजी पंचायत समिति में स्कूल इंस्पेक्टर हुए तो उन्हें गाँवों के स्कूलों का निरीक्षण करने जाना पड़ता था। वहाँ जाने के लिए साइकिल, मोटर साइकिल और जीप ही साधन थे। सरकार ने तो कुछ उपलब्ध नहीं करा रखा था। बस भत्ता दे दिया करती थी। बाबूजी ने तब तक खुद कभी साइकिल तक नहीं चलाई थी। पैदल चलने के अभ्यासी थे।
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(५)
(५)
आसमानी पंडाल से सजा था
वह रंगमंच।
अभिनय की सार्थकता में
व्यस्त था जीवन।
कभी ताकता स्वयं को
कभी जाँचता अभिनय को।
धमनियों में जुनून
किरदार करना था जीवंत।
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(६)
(६)
माँ कहती थीं कि 'नौतपा' धरती का तप है , व्रत है जो पूरा हो जाता है तो वर्षा अच्छी होती है .
अगर इस बीच बादल छा गए या वर्षा होगई यानी तप खण्डित होगया तो अच्छी वर्षा की संभावना कम होजाती है . तप का अर्थ दाह और गर्मी भी है . तप से ही तपना बना है ...ताप और वर्षा यानी तप और वरदान .
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(७)
(७)
और कांटे की नोंक को
असंतुलित कर
अपनी ही ओर
झुकाते जा रहा था
शायद वक्त ही उससे
ये करवा रहा था
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(८)
(८)
चीनी उत्पादों के खिलाफ भारत में एक आन्दोलन सा खड़ा होता दिखने लगा है. अगर यह आंदोलन चीन के विरुद्ध सफल हो जाता है तो भारत को इसके अनेक दीर्घकालिक लाभ होंगे.
इसमें पहला लाभ तो चीन को भारत से होने वाले राजस्व में जबरदस्त कमी आएगी. यह कमी लगभग 5 लाख करोड़ रुपये तक के होने का अनुमान है.
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(१०)
(१०)
परवानों को खूब पता है
जलती लौ है मौत की राह
फिर भी जलकर मर जाते हैं
नही करते खुद की परवाह.
पहचान बहुत है फूल-शूल की
पर कंटक पथ से ही चलते हैं
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(११)
(११)
आज 'साइकिल दिवस' है पर ये बात हमें पहले से पता नहीं थी. वो तो भला हो गूगल कैलेंडर का जो आँख खुलते ही सारी सूचनाएँ सामने रख देता है. बहुमुखी प्रतिभा की धनी हमारी साइकिल एकमात्र ऐसा वाहन है जिसने अमीरी-ग़रीबी का भेद मिटा रखा है.
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(१२)
(१२)
जमाने का है दस्तूर यही
हम अलग कहाँ हैं उससे
जैसे रीत रिवाज होगे
उस में ही बहते जाएंगे |
चलन जमाने का भी देखेंगे
जो भी रंग होगा दुनिया का
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(१३)
(१३)
यादों में यात्रा करती हूँ तो सन् उन्नीस सौ तिहत्तर तक सहरसा में सहेलियों (तब सहेला का ज़माना नहीं था) के साथ पहाड़ी नदी के समान उछलते कूदते उन्नीस सौ चौहत्तर में मझवलिया उसके बाद सीवान। उन्नीस सौ बयासी में रक्सौल (बीरगंज-काठमांडू-पोखरा) वहाँ से उन्नीस सौ अठासी में मुजफ्फरपुर स्थापित हो गए... लेकिन तबतक केवल पेट भर जाने को जाना था।
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(१४)
(१४)
आज
एक उदास गुलाब को
ग़ौर से देखा
खिंची हुई थी
भाल पर उसके
चिंता की रेखा
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(१५)
(१५)
विचारों,
हिचको मत,
अन्दर आ जाओ,
जो लक्ष्मण-रेखा मैंने
घर के बाहर खींची है,
वह तुम्हारे लिए नहीं है.
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(१६)
(१६)
पुजारी जी ने उत्तर दिया मूर्ति पत्थर पर छैनियों के प्रहार से बनती है जगह जगह से घिसा जाता है उन में से श्रेष्ठ तराशा हुआ पत्थर मूर्ति बनता है जीवन संघर्षों में तप कर ही कनक के समान आभा पाता है सूर्य उदय हो चुका था राजकुमार के जीवन में आशा की किरण चमक उठी वह जीवन पथ के संघर्ष के लिए तैयार था ।और समझ चुका था के संघर्ष ही जीवन के गुणों का सृजन करता है ।
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शब्द-सृजन- 24 का विषय है-
मसी / क़लम
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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आपका दिन मंगलमय हो…
फिर मिलेंगे 🙏🙏
फिर मिलेंगे 🙏🙏
"मीना भारद्वाज"
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बहुत ही शानदार आज के चर्चा मंच की पोस्ट शानदार लिंक को समायोजित है आज का यह पोस्ट
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका हमराही
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन
कबीरा खड़ा बाजार में, लिए लुकाठी हाथ जो घर फूंके आपनौ, चले हमारे साथ”
जवाब देंहटाएं-आज कबीर साहब की जयंती है और एक पत्रकार होने के कारण मुझे उनका यह सब़क याद है, क्यों कि इस क्षेत्र में आकर अपना घर तो मैं कब का फूंक चुका हूँ,बस बाबा अब तेरा हाथ मेरे मस्तक पर हो।
बहुत सुंदर व सामयिक भूमिका और प्रस्तुति मीना दी।
अब जब घर ही फूंक दिया,तो चिन्ता किस बात की।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंनिर्गुण भक्ति धारा के महान संत कबीर दास जी को शत शत नमन 🙏🙏
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार शशि भाई उनके दोहे से मंच की गरिमा बढ़ाने के लिए 🙏🙏
आदरणीय मीना जी चर्चा मंच के आज के अंक में मेरी
जवाब देंहटाएंरचना सम्मलित करने के लिए आभार
आज के चर्चा मंच की सभी पोस्ट शानदार लिंक समायोजित
हे
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद मीना जी |
बेहतरीन लिंको से सजी चर्चा हेतु आभार ,आपका।🙏
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा का फार्मेट बहुत सुन्दर लग रहा है।
जवाब देंहटाएंसभी लिंक अद्यतन और सारगर्भित हैं।
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आदरणीया मीना भारद्वाज जी आपका आभार।
वाह !लाजवाब प्रस्तुति आदरणीया मीना दी. मेरे सृजन को स्थान देने हेतु तहे दिल से आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक रचना सामयिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमीना जी,
जवाब देंहटाएंआज का चर्चा अंक वाकई काबिले तारीफ है, सब की सब रचनाएं, बहुत खूब ... 💐💐
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति बेहतरीन रचनाये ,मीना जी मेरी रचना को स्थान देने हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद ,सभी रचनाकारों को भी हार्दिक बधाई ,शुभ संध्या नमन
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल करने के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सुन्दर रचनाओं का चयन किया है मीना जी . लगभग सभी पढ़ी . मेरी रचना को चुनने के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएं