स्नेहिल अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
देश, समाज, प्रकृति या मानव मात्र के लिए कुछ करने वालों
का हृदय निर्मल और निश्छल होता है,
उन्हें दोषारोपण करना नहीं आता। उन्हें अपनी प्रशंसा, शोहरत या
मेडल की लालसा भी यकीनन नही होती,
बिल्कुल इस "नन्ही जन्नत" की तरह।
(पूरी कहानी जानिए आदरणीया अनुराधा जी की प्रेरणादायक लेख से )
ये छोटी सी बच्ची हमें समझा रही है कि-प्रकृति और देश
के लिए यदि हम कुछ अच्छा करना चाहते है तो
उम्र बड़ी नहीं, सोच बड़ी होनी चाहिए।
"नन्ही जन्नत" प्रकृति के शुद्धिकरण में अपना योगदान दे रही हैं
तो क्या हम "गंदगी"ना फैलाने का प्रण तक नहीं ले सकते?
एक पहल तो कर ही सकते है न...
आईये,आनंद उठाते है आज की रचनाओं का...
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ग़ज़ल "फूल हो गये अंगारों से"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

हरियाली अभिशाप बन गयी
फूल हो गये अंगारों से
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बदल गया क्यों 'रूप' वतन का
पूछ रहे सब सरदारों से
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चुल्हा ठंड़ा उदर अनल है
दिवस गया अब रात हुई ।
आँखें जलती नींद नही अब
अंतड़ियां आहात हुई ।
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वह देह से एक औरत थी
उसने कहा पत्नी है मेरी
वह बच्चे-सी मासूम थी
उसने कहा बेअक्ल है यह
अब वह स्वयं को तरासने लगी
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सर्वविदित है
शब्दों की मार ...
इनको भी
साधना पड़ता है
अश्व के समान
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लगता है मानो
सरहदों को लगी
होती है आदम भूख...
या शायद अपनी जीवंतता
बनाये रखने के लिए
लेती है समय-समय पर बलि
शूरवीरों की...।
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इन दिनों
मन की खामोशियों को
रात भर गलबहियाँ डाले
गुपचुप फुसफुसाते हुए सुनना
मुझे अच्छा लगता है !
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डगमगाया सा, समर्पण,
टूटती निष्ठा,
द्वन्द की भँवर में, डूबे क्षण,
निराधार भय,
गहराती आशंकाओं,
के मध्य!
पनपता, एक विश्वास,
कि तुम हो,
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आज जब जीवन के नवरसों में आकंठ डूबे, पारांगत, निष्णात, मर्मज्ञ लोगों द्वारा
कुछ आध्यात्मिक गुरुओं के दवा निर्माण या उनके कारोबार की आलोचना
होते देखा-सुना है तो पूर्व नेताओं द्वारा पालित-पोषित ऐसे
बाहुबली बाबाओं का इतिहास बरबस सामने आ खड़ा होता है,
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इसे हटाना होगा
असली संवाद को लाना होगा
और व्यक्त करना होगा प्रेम
तब नहीं मरेंगे असमय
अकाल मृत्यु से युवा और किशोर
जो सूखी जाती है
नहीं टूटेगी जीवन की वह डोर !
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वो बहरे है..
सबने कहा हाँ बहरे है ।
वो अंधे है..
सबने कहा हाँ अंधे है।
वो गूंगे है...
सबने कहा हाँ गूंगे है।
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वचनामृत

क्यों न उलझूँ
बेवजह भला!
तुम्हारी डाँट से ,
तृप्ति जो मिलती है मुझे।
पता है, क्यों?
माँ दिखती है,
तुममें।
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नन्ही जन्नत की धरती के जन्नत को स्वच्छ बनाए रखने की यह
मुहीम वाकई में काबिले तारीफ है। जिस उम्र में बच्चे खेलकूद में व्यस्त रहते हैं।
उस उम्र में जन्नत अपने छोटे से शिकारे को लेकर डल झील को स्वच्छ बनाने में व्यस्त रहती है।
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शब्द-सृजन-28 का विषय है-
नन्ही जन्नत की धरती के जन्नत को स्वच्छ बनाए रखने की यह
मुहीम वाकई में काबिले तारीफ है। जिस उम्र में बच्चे खेलकूद में व्यस्त रहते हैं।
उस उम्र में जन्नत अपने छोटे से शिकारे को लेकर डल झील को स्वच्छ बनाने में व्यस्त रहती है।
मुहीम वाकई में काबिले तारीफ है। जिस उम्र में बच्चे खेलकूद में व्यस्त रहते हैं।
उस उम्र में जन्नत अपने छोटे से शिकारे को लेकर डल झील को स्वच्छ बनाने में व्यस्त रहती है।
शब्द-सृजन-28 का विषय है-
'सीमा/ सरहद"
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार
(सायं बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म
(Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
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आज का सफर यही तक
आप सभी स्वस्थ रहें ,सुरक्षित रहें।
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार
(सायं बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म
(Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार
(सायं बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म
(Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
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कामिनी सिन्हा
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रचनाओं की विस्तृत विविधताओं को सहेजे आज की प्रस्तुति की यह 'नन्ही जन्नत' अपनी सम्पूर्ण कलाओं में व्याप्त है। अद्भुत प्रस्तुति, रचनाओं के चयन और संकलन की विलक्षण साहित्यिक-समझ को दर्शाती!!! आभार और बधाई!!!
ReplyDeleteआपका तहे दिल से धन्यवाद विश्वमोहन जी,आप सभी का आशीर्वाद यूँ ही बना रहे,सादर नमस्कार
Deleteमंच पर आज मीना भारद्वाज दीदी जी की बहुत सुंदर रचना " शब्द" पढ़ने को मिली।
ReplyDeleteसुबह - सुबह संत कबीर का यह संदेश स्मरण हो आया-
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये |
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ||
कभी मैंने भी शब्द पर एक लेख "शब्दबाण" लिखा था।
सुंदर प्रस्तुति और लिंक्स के लिए कामिनी जी आपको धन्यवाद।
सहृदय धन्यवाद शशि जी,सादर नमस्कार
Deleteशुभ प्रभात ...
ReplyDeleteआज की इस विविधतापूर्ण प्रस्तुति पर मैं आदरणीय विश्वमोहन जी और आदरणीय शशी जी की टिपण्णी से पूर्णतः सहमत हूँ । आदरणीया कामिनी जी स्वयं में एक विवा-सागर और समर्पित लेखिका हैं। गद्य लिखना उनकी विशेषता है। फिर भी कविताओं में उनकी अभिरुचि देखते ही बनती है। हम सभी कविमन की ओर से उनकी विद्वता और पारखी नजर को नमन।
समस्त रचनाकारों को को हार्दिक शुभकामनाएँ ।
प्रणाम अग्रज
Deleteआपका तहे दिल से शुक्रिया पुरुषोत्तम जी,ये आप सभी का स्नेह है,अपितु मैं तो आप सभी के समक्ष कुछ भी नहीं,मुझे साहित्य का कोई बिशेष ज्ञान नहीं है बस आप सभी के सानिध्य का असर है,इस प्रोत्साहन के लिए दिल से आभार एवं सादर नमस्कार आपको
Delete
ReplyDeleteसीमाओं को तोड़ते
अहंकार के
मद में डूबे शब्द
नहीं जानते कि
कब रख देंगे
किसी दिन
किसी…
महाभारत की नींव
बहन मीना भारद्वाज जी की अत्यंत चिंतन परक पंक्तियों को सहेजती रचना के साथ विलक्षण प्रस्तुति, प्रिय कामिनी। सभी रचनाकारों जो हार्दिक बधाई और शुभकामनायें। नन्ही जन्नत बेमिसाल है। समय मिले ही सब पर प्रतिक्रिया देती हूँ। तुम्हें बधाई सुंदर भूमिका और बेहतरीन प्रस्तुतिकरण के लिए 🌹🌹🙏🌹🌹
आपका तहे दिल से शुक्रिया सखी,तुम्हारा स्नेह यूँ ही बना रहे यही कामना हैं,सादर स्नेह
Deleteजी रेणु दी,
ReplyDeleteउचित कहा आपने।
द्रोपदी को महाभारत के पश्चात अच्छी तरह से समझ में आ गया होगा कि शब्द को किस तरह से संभाल कर बोलना चाहिए। पिता, पुत्र और भाई सब कुछ खोकर असंख्य महिलाओं को विधवा बनाकर स्वयं महारानी बनने का सुख निश्चित ही जीवन पर्यंत उन्हें चुभता रहा होगा।
बेहतरीन लिंक्स, बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार सखी।
ReplyDeleteआपका तहे दिल से शुक्रिया सखी,,सादर नमस्कार
Deleteसुंदर चर्चा ! सभी रचनाकारों को बधाई, जन्नत की कोशिश वाकई काबिलेतारीफ है, आभार !
ReplyDeleteसहृदय धन्यवाद अनीता जी ,सादर नमस्कार
Deleteकामिनी जी द्वारा तैयार बहुत सुन्दर और सराहनीय प्रस्तुति । चर्चा में मेरे सृजन को मान देने के लिए कामिनी जी और सभी गुणीजनों का सादर आभार ।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया मीना जी ,सादर नमस्कार
Deleteबेहतरीन चर्चा की प्रस्तुति।
ReplyDeleteकामिनी सिन्हा जी आपका आभार।
सहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमस्कार
Deleteहर पहलू को उजागर करती हुई उत्कृष्ट चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteसहृदय धन्यवाद भारती जी ,सादर नमस्कार
Deleteप्रिय कामिनी जी,
ReplyDeleteआपका चिंंतन और लेखन सदैव प्रभावित करता है।
बहुत सुंदर और पठनीय रचनाओं के सूत्रों से सजा आज का अंक बहुत अच्छा लगा।
मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार आपका।
सादर।
दिल से शुक्रिया श्वेता जी,उत्साहवर्धन हेतु आभार आपका,सादर नमस्कार
Deleteबहुत ही सुंदर और सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय कामिनी दीदी.सभी रचनाएँ बेहतरीन चुनी है आपने.मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार.
ReplyDeleteचर्चामंच के इस संकलन में मेरी रचना सुसज्जित है ! कामिनी जी आपने मुझे सूचित भी किया था ! लेकिन कल व्यस्त्तावश देख ही नहीं पाई ! विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! बहुत ही सुन्दर, सार्थक एवं सारगर्भित सूत्र प्रतीत होते हैं ! आज प्रयास रहेगा दिन में कि इन्हें देख पाऊँ ! एक बार पुन: आपका धन्यवाद सखी ! सप्रेम वन्दे !
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