सादर अभिवादन।
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सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
*****
शब्द-सृजन-25 का विषय है-
'रण'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे)
तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form )
के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
उदाहरणस्वरूप कविवर अज्ञेय जी की एक कविता-
"वेदी तेरी पर माँ, हम क्या शीश नवाएँ?
तेरे चरणों पर माँ, हम क्या फूल चढ़ाएँ?
हाथों में है खड्ग हमारे, लौह-मुकुट है सिर पर-
पूजा को ठहरें या समर-क्षेत्र को जाएँ?
मन्दिर तेरे में माँ, हम क्या दीप जगाएँ?
कैसे तेरी प्रतिमा की हम ज्योति बढ़ाएँ?
शत्रु रक्त की प्यासी है यह ढाल हमारी दीपक-
आरति को ठहरें या रण-प्रांगण में जाएँ?"
दिल्ली जेल, सितम्बर,1931
साभार : कविता कोश
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सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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शब्द-सृजन-25 का विषय है-
'रण'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे)
तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form )
के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
उदाहरणस्वरूप कविवर अज्ञेय जी की एक कविता-
"वेदी तेरी पर माँ, हम क्या शीश नवाएँ?
तेरे चरणों पर माँ, हम क्या फूल चढ़ाएँ?
हाथों में है खड्ग हमारे, लौह-मुकुट है सिर पर-
पूजा को ठहरें या समर-क्षेत्र को जाएँ?
मन्दिर तेरे में माँ, हम क्या दीप जगाएँ?
कैसे तेरी प्रतिमा की हम ज्योति बढ़ाएँ?
शत्रु रक्त की प्यासी है यह ढाल हमारी दीपक-
आरति को ठहरें या रण-प्रांगण में जाएँ?"
दिल्ली जेल, सितम्बर,1931
साभार : कविता कोश
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आइए पढ़ते हैं आज की कुछ पसंदीदा रचनाएँ-
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शहर में आवारा पशुओं पर हो रहे
अत्याचार को देखते हुए जागरुकता अभियान पर मीटिंग है।"
महतो अपने सफ़ेद कुर्ते की सलवटें निकालता हुआ
कुछ अकड़कर कहता है।
"बात तो ठीक ही कहते हैं नेता लोग,
हम जैसे अनपढ़ों की बुद्धि में बैठती कहाँ है उनके जैसी राजनीति।"
रघुवीर मुँह पर हाथ फेरता इधर-उधर देखते हुए कहता है।
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इंसानियत...
संवेदनाओं का सागर सूख गया दया धर्म दफ़्न हुवा
गली,चौराहों पर दिखते अमानवीय इंसानो की टोली है।
जीवन संवेदन हीन हुवा मानवता का नमो निशान मिटा
तृष्णा कैदी मानव,जला रहा प्रेम दया करुणा की होली है
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कामयाबी के लिए ,उम्र लम्बी हो ये जरुरी नहीं ,
वतन के लिए शहीद हो गए ,जो नाम चाहते थे-
कितना आसान है पराये कंधे से निशाना साधना ,
मुराद पूरी हुई ईनाम मिला ,जो इनाम चाहते थे-
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आज़ादी के बाद सरकार की ओर से कुछ पेंशन बाँध देने के
बाद भी जब पेंशन की रकम उन तक नहीं पहुंची तो बहुत बीमार चल रहे
शायर शौक़ के मन ने उस पर भी तंज कर ही दिया।
“सांस फूलेगी खांसी सिवा आएगी, लब पे जान हजी बराह आएगी,
दादे फ़ानी से जब शौक़ उठ जाएगा, तब मसीहा के घर से दवा आएगी”
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अफसोस कि मीडिया से सूचना के नाम पर कुछ भी नही मिल रहा है …
मृत्यु से न डरें बल्कि अगर सामने भी हो तो मुकाबला करें ,
यक़ीनन आप लंबा जी पाएंगे ,
इन दिनों व्हाट्सप्प ज्ञानियों और जाहिलों से बचकर रहें, सावधानी ही बचाव है ...
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पूरी हो न सकी हसरतों की बातें
अरमान दिल के भटक रहे
संभलते रहे जीने की चाहत में पर कई किरदार सिसक रहे
संभलते रहे जीने की चाहत में पर कई किरदार सिसक रहे
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ठहरे हैं आज भी हम, उन्हीं अमराइयों में,
एकाकी से पड़े हैं,
इन तन्हाईयों में,
बन कर गूंजती है,
आवाज वो
मूंद कर नैन, सुनता हूँ आवाज वो,
ख़ामोशियाँ वो, कौन जाने!
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तिनका-तिनका जोड़-जोड़ कर
सुंदर नीड़ बसाया था
कितनी सुन्दर फुलवारी
बसंत झूमता आया था
समय प्रभंजन ऐसा लाया
सुर विहीन सब गीत हुए
उजड़े---------------------।।
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सोंधी स्मृतियों पर
खोंसे गये
पीले फूलों की सुगंध में,
अधपके, खट्टमीट्ठे
फलियों और अमिया
पकने के बाद के
सपनें टँके लाल दुपट्टे
संदूकची में सहेजकर
रख दी जायेगी
अबके बरस भी...।
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अपनी छत अपनी होती है, चाहे होते छेद कई|
यही बात समझाने को तो, नभ में नीरद छायेगा
मजदूरों को भूख लगी तब, मालिक ने ठुकराया है |
प्रेम भरा आँचल जननी का, आँगन यह समझायेगा
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लहजे में यदि छिपी शिकायत
स्वयं की कमजोरी ही झलके
या तेजी हो शब्दों में तो
मन की अस्थिरता ज्यों ढलके
रोषपूर्ण यदि वचन निकलते
अहंकार का खेल चल रहा
घुमा-फिरा कर बात कही तो
मन अनजाना खुद को छल रहा
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मैं तुम्हारी वही
बचपन वाली सहेली हूँ
कभी कही कभी अनकही
कभी सुलझी कभी अनसुलझी सी पहेली हूँ
पर जैसी भी हूँ ,तुम्हारी सच्ची सहेली हूँ,
वही अधिकार वही प्यार लिए
वही विश्वास वही साथ लिये
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क्या ये फूल बहुत से लोगों के दिलों के जख्मों को भर पायेंगे...?
क्या इनका सौन्दर्य किसी के जीवन में रोटी की कमी को पूरा कर सकेगा,
या रोजगार, पुलिसिया मार और अपमान के जख्म को तनिक भर में कम कर पायेगा?
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खलील जिब्रान की एक छोटी सी कहानी है जिसमें जिक्र आता है
कि एक भागता हुआ कुत्ता दूसरे कुत्ते को पूछने पर बताता है
कि जल्दी करो सभ्यता हमारे पीछे पड़ी है ।
पर्यावरण को बचाने यानी उसे मूल रूप में रखने या कुदरत के कुदरती रूप में बने रहने
पर जब हम विचार करने लगते हैं तो 'सभ्यता' शब्द बीच में आ खड़ा होता है ।
एक अनुमान यह भी है कि इस पुस्तक का आधार सेमुएल पेपी की प्रसिद्द डायरी थी
जिसमे लन्दन के प्लेग का वर्णन मिलता है।
लेकिन पेपी की डायरी असम्बद्ध तरीके से प्रस्तुत है क्योंकि वह प्लेग का दैनंदिन वर्णन है
और घटनाओं के बीच रिक्तियां हैं।
मगर डिफो के उपन्यास में घटनाओं और तथ्यों का अद्भुत प्रवाह है
जो लन्दन के प्लेग को हमारे सामने बिलकुल सजीव कर देता है।
खलील जिब्रान की एक छोटी सी कहानी है जिसमें जिक्र आता है
कि एक भागता हुआ कुत्ता दूसरे कुत्ते को पूछने पर बताता है
कि जल्दी करो सभ्यता हमारे पीछे पड़ी है ।
पर्यावरण को बचाने यानी उसे मूल रूप में रखने या कुदरत के कुदरती रूप में बने रहने
पर जब हम विचार करने लगते हैं तो 'सभ्यता' शब्द बीच में आ खड़ा होता है ।
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एक अनुमान यह भी है कि इस पुस्तक का आधार सेमुएल पेपी की प्रसिद्द डायरी थी
जिसमे लन्दन के प्लेग का वर्णन मिलता है।
लेकिन पेपी की डायरी असम्बद्ध तरीके से प्रस्तुत है क्योंकि वह प्लेग का दैनंदिन वर्णन है
और घटनाओं के बीच रिक्तियां हैं।
मगर डिफो के उपन्यास में घटनाओं और तथ्यों का अद्भुत प्रवाह है
जो लन्दन के प्लेग को हमारे सामने बिलकुल सजीव कर देता है।
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
अति सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई आदरणीय रवीन्द्र जी। समस्त रचनाकारों को भी शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर मेरी कहानी का स्थान देने हेतु सादर आभार.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रवींद्र जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने मेरी ब्लॉगपोस्ट को इस नायाब सेकलन में शामिल किया , आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक चर्चा,सभी रचनाएं उत्तम, रचनाकारों को हार्दिक बधाई,मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय 🙏🌹
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं की सूचना प्रदान करती सुंदर प्रस्तुति, आभार !
जवाब देंहटाएंरचना पसंद करने के लिए आभार आपका
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ,आपका हार्दिक आभार ,उत्कृष्ट रचनायें
जवाब देंहटाएं