सादर अभिवादन ।
शुक्रवारकी चर्चा में आप सबका का स्वागत ।
आज की चर्चा की शुरुआत "दुष्यन्त कुमार" की
कलम से निसृत एक मुक्तक से -
सँभल सँभल के’ बहुत पाँव धर रहा हूँ मैं
पहाड़ी ढाल से जैसे उतर रहा हूँ मैं
क़दम क़दम पे मुझे टोकता है दिल ऐसे
गुनाह कोई बड़ा जैसे कर रहा हूँ मैं।
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अब बढ़ते हैं आज के चयनित सूत्रों की ओर -
ज्ञान-सिन्धु की हो गयी, हालत बड़ी विचित्र।
भगवानों के सामने, बौने हुए गिरित्र।।
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धार हुई अवरुद्ध हैं, सरिताओं की आज।
अज्ञानी खुद शान से, लिखते हैं कविराज।।
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व्योम से बरसती धूप देखकर
बादल टुकड़ा दौड़कर आ गया।
कब जागेगा सोया मानस?
धरा की परते पिघली पानी सोख गया।
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चाँद रोया रातभर
शबनमी अश्क बहाए,
फूलों का दिल चाक हुवा
खुल के खिल न पाए।।
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भग्नावशेष चीख-चीख कर
कहते अपनी कई कथाएँ
दमित मौन से उपजे पीड़ा
जड़वत देखें सभी दिशाएँ।।
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हर चीज जगह पर होना, हमेशा अच्छा नही लगता
सलीकों में जिन्दगी जीना, हमेशा अच्छा नही लगता
कुछ आवारगी है जरूरी, मस्ती से जीने के लिये
अदबों लिहाज से रहना, हमेशा अच्छा नही लगता
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लक्ष्य खड़े हैं चौराहे पर
सुबह-शाम के दोराहे पर
गुमसुम सी हैं सभी दिशाएं ,
ऋतुए चुप चुप आएं जाएं .
कहीं भीड़ में बालक से ज्यों,
माँ की उँगली छूट गई है .
कविता मुझसे रूठ गई है .
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ये लोग होते कौन हैं मुझे जज करने वाले...ये आख़िर जानते ही क्या हैं मेरे बारे में... क्या में सच में ऐसी लगती हूँ... तुम तो जानते हो मुझे...और तुम तो बहुत बड़े समझदार बनते हो.. सच सच बताना क्या तुम्हें भी ऐसा ही लगता है?
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वो बहुत ही
जल्दी में था
आदतन टालकर
कल पर छोड़ कर
' मिलियन डॉलर स्माइल '
देते हुए
रफूचक्कर हो गया ,
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जेठ का महीना था । रात्रि भोजन के बाद ठाकुरसाहब भी खा -पीकर सोने चले गए थे। किंतु इतनी गर्मी और उमस में भी वे न तो पंखा चला सकते थे और न ही ए.सी.। बिजली आपूर्ति दिन की पाली की थी सो दिन में आठ घंटे बिजली का निर्धारित कोटा पूरा हो चुका था। बेचैनी के कारण उन्हें ठीक से नींद नहीं आ रही थी ।
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बूँद-बूँद जब जल की गिरती
घड़ा एक नित भरता।
नाम गूँजता जग में उसका
कारज जग हित करता।
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'एक बुक जर्नल' की साक्षात्कार श्रृंखला के अंतर्गत हम आज आपके समक्ष मोहन मौर्य जी के साथ हुई बातचीत पेश कर रहे हैं। इस बातचीत में हमने उनके लेखन के तरीके, उनकी प्रेरणा और उनकी आने वाली कृतियों के विषय में बातचीत की है। आशा है मोहन जी से हुई यह बातचीत आपको पसंद आएगी।
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खुश रहने को
कौन बहुत सामान चाहिए !
सुबह जल्दी आँख खुली
खुश हो गए !
एक नई चिड़िया देखी
खुश हो गए !
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हुई स्वतंत्र अब आत्मा
जन्म मरण से हुई मुक्त
अब बंधक नहीं शरीर की
असीम प्रसन्नता हुई आज |
वह बंधन नहीं चाहती
उन्मुक्त विचरण की है चाह
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एक ही शक्ति एक ही भक्ति
एक ही मुक्ति एक ही युक्ति
एक सिवा नहीं दूजा कोई
एकै जाने परम सुख होई
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शब्द-सृजन-25 का विषय है-
'रण'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे)
तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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आपका दिन शुभ हो,फिर मिलेंगे...
🙏🙏
"मीना भारद्वाज"
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बहुत संदर चर्चा और लिंक्स।
जवाब देंहटाएंकभी-कभी अत्यधिक सावधानियाँ भी जीवन की खुशियाँ हमसे छीन लेती हैंं।
प्रणाम।
बहुत सुन्दर और श्रमसाध्य चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
वाह!बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय मीना दीदी.
जवाब देंहटाएंभूमिका में दुष्यन्त कुमार जी का मुक्तक-
सँभल सँभल के’ बहुत पाँव धर रहा हूँ मैं
पहाड़ी ढाल से जैसे उतर रहा हूँ मैं
क़दम क़दम पे मुझे टोकता है दिल ऐसे
गुनाह कोई बड़ा जैसे कर रहा हूँ मैं।..गज़ब 👌
मेरे सृजन को स्थान देने हेतु तहे दिल से आभार 🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए मीना जी |सुन्दर चर्चा आज की |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🙏🌹 मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविविधरंगी चर्चा ! आभार मुझे भी शामिल करने हेतु, शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंचयनित सभी ब्लाग देख पढ़ डाले . अच्छी लगी रचनाएं . मेरी रचना को आपने चुना इसके लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा....मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार....
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