सादर अभिवादन ।
शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सभी विद्वजनों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन ।
आज की प्रस्तुति का शुभारंभ रामधारी सिंह दिनकर जी की कलम से निसृत "हुंकार" के अंश से -
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अल्हड़ वही, ठेलकर धाराओं को जो प्रतिकूल चले,
तूफानों से लड़े सदा, झोंके-झोंके पर फूल चले।
यों तो अंचल पकड़ धार का सिन्धु सभी पा जाते हैं,
स्वर्ग मिलेगा उसे, खोजता जो गंगा का मूल चले।।
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अब चर्चा आज के चयनित सूत्रों की-
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सागर में से भर कर निर्मल जल को लाये हैं।
झूम-झूम कर नाचो-गाओ, बादल आये हैं।।
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गरमी ने लोगों के तन-मन को झुलसाया है,
बहुत दिनों के बाद मेघ ने दरस दिखाया है,
जग की प्यास बुझाने को ये छागल लाये हैं।
झूम-झूम कर नाचो-गाओ, बादल आये हैं।।
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समय की दीवार पर दरारें पड़ चुकीं थीं
सिमटने लगा था जन-जीवन
धीरे-धीरे इंसान अपना संयम खो रहा था
मानव अपने हाथों निर्धारित
किए समय को नकार चुका था
तभी उसने देखा अतीत कराह रहा था
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संध्या की सतरंगी चूनर में
टाँकने के लिये लाखों सितारे
चन्द्रमा ने अपने हाथों से
गगन में बिखेर दिये हैं ,
और अनुरक्त प्रियतमा ने
वो सारे सितारे पुलक-पुलक कर
अपनी पलकों से दामन में
समेट लिये हैं !
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हमारी देश की धरती,कहानी वीर की कहती।
सपूतों से भरा आँगन, लिए माँ भारती रहती।
लगाती ये गले सबको,सिखाती प्यार की भाषा।
बड़ी पावन धरा मेरी, कभी गलती नहीं सहती।
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कालिदास के जीवन से दो बातों की गहन शिक्षा मिलती है… पहली तो ये कि पथ कितना भी दुर्गम हो, गन्तव्य तक पहुंचना असम्भव नहीं. दूसरी शिक्षा यह कि मौन व्याकुलता और विकलता से परे एक ऐसी शक्ति है जो किसी के भी मनोभावों को कई अर्थ में प्रवाहमान रख सकता है. हम किसी के मौन को अपना गुरु मान लें और सकारात्मक सोच पर चलना प्रारम्भ कर दें तो अजेय रह सकते हैं.
सुनना यदि श्रेष्ठ है तो मौन की अनुभूति श्रेष्ठतम.
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गहन अंधकार में स्वयं को
एकाकार करती
पश्चिम की
नीम की डालियों से
धीरे-धीरे फिसलकर स्याह मकान के
आँगन में उतरते चाँद को
एकटुक निहारती
वह उदास औरत...।
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एक इंसान है
जो आशंकाओं से घिर गया है
करोना-वायरस के मकड़जाल में
फँस गया है
युवा-मन भविष्य की तस्वीर पर
असमंजस से भर गया है
अवसर की आस में
थककर आक्रोश से भर गया है।
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ऐ 'हर्ष' ऐसी दुनियाँ में कैसे जियेगा अब,
दिल में बसा जहान वो शमशान कर गया ।
ये ज़ुल्म ये हया ओ सज़ा उसने दी मुझे,
अब सोचता हूँ वो मुझे इंसान कर गया ।
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महादेव का इक नाम भी तो है "नील-लोहित "। जब महादेव ने विषपान किया, विष और तेज़ ताप से उनका रंग ऐसा पड़ने लगा - नीला रंग लाल बैंगनी छटा लिए और 'नील-लोहित ' कहाये
हर हर महादेव!
आँखें बंद कर मन में ज़ोर से गूंजा ये स्वर। ....
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नीव उठाते वक़्त ही
कुछ पत्थर थे कम
तभी हिलने लगा
निर्मित स्वप्न निकेतन
उभर उठी दरारें भी व
बिखर गये कण -कण
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बेटे,
इस बार आओ,
तो गाँव में ही रहना,
मेरे साथ, हमारे साथ,
कभी मत जाना शहर,
कोरोना ख़त्म हो जाय, तो भी।
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याद रखें जिस दिन हमें हृदय की तुला पर वजन करना आ जाएगा, उन छात्राओं का धातु निर्मित पचास के सिक्के वाला पलड़ा भारी मिलेगा । हम करेंसी से 'इंसान' बन जाएँगे। वे व्यापारी से संत बन जाएँगे,बिल्कुल गुरु नानक देव की तरह हम खरा सौदा कर पाएँगे।
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यूँ तो हजारों खड़े हैं कतारों में
उसके द्वार वही जाता है
जिसे वह बुलाता है !
लाख प्रमाण दिए प्रह्लाद ने
नास्तिक पिता नकारे जाता है !
जल को अधरों से लगाते हम हैं
पर अपनी प्यास तो वही जगाता है !
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उधर नुक्कड़ दुकान वाले सेठ जी दुखी मन से खुश थे लक्ष्मी माता को अगरबत्ती लगाते हुए मन में खोया पाया का हिसाब ,के कहीं बैग पकड़ा जाते तो माल से ज़्यादा जीएसटी लगता धन्धें की सारी पोल खुल जाती बदनामी अलग।
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शब्द-सृजन-27 का विषय है-
'चिट्ठी'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे)
तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form )
के ज़रिये हमें भेज सकते हैं
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आपका दिन शुभ हो,फिर मिलेंगे...
🙏🙏
"मीना भारद्वाज"
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सदैव की तरह ऊर्जा से भरी भूमिका और सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमंच पर मेरे लेख " सौदा" को स्थान देने के लिए मैं आपका और चर्चामंच का आभारी हूँ।
...पर एक बात मुझे इस ब्लॉग जगत की समझ में नहीं आई कि जबकभी किसी व्यक्ति अथवा जाति के सम्मान पर आघात होता है तब संवेदनशील रचनाकार और चर्चाकार क्यों मौन हो जाते हैं ? वैसे, हाँ, खुशी इस बात की है कि दो-तीन ऐसी महिलाएँ हैं, जो प्रतिरोध करती हैं।
यह एकमात्र मंच है , जो निष्पक्ष भाव से मेरे सृजन को लेते रहता है, इसीलिए साहस करके यह सवाल आप सभी के समक्ष रख रहा हूँ।
यदि कोई गलती कर बैठा तो क्षमा करिए।
बहुत सुंदर चर्चा। सभी रचनाएँ शानदार।
जवाब देंहटाएंसार्थक और सन्तुलित चर्चा।
जवाब देंहटाएंआदरणीया मीना भारद्वाज जी!
आपके श्रम को नमन।
अभी रचनाओं को सार्थक रूप से बहुत सुंदर प्रस्तुत किया है ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को भी इसमें सगामिल करने के लिए शुक्रिया ।
सभी रचनाएं सार्थक और पठनीय
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार
भूमिका की लाज़वाब पंक्तियों के साथ सराहनीय और पठनीय सूत्रों से सजी शानदार सुरुचिपूर्ण और सुगढ़ अंंक सजाया है आपने प्रिय मीना दी।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत आभार आपका सस्नेह शुक्रिया।
चर्चा सार्थक व सुंदर रही !
जवाब देंहटाएंमनभावन चर्चा ! सभी रचनाकारों को बधाई, आभार मीना जी मुझे भी आज के अंक में सम्मिलित करने के लिए
जवाब देंहटाएं"स्वर्ग मिलेगा उसे, खोजता जो गंगा का मूल चले" दिनकर जी की ये पंक्तियाँ दिल को छू गई ,बेहतरीन प्रस्तुति मीना जी ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंआज के अंक की बधाई स्वीकार करें �� मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार ��
जवाब देंहटाएंसभी रचनाओं को पढ़कर आपके ब्लॉग पर प्रतिक्रिया दूँगी.
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअत्यंत दिलचस्प लिंकस्... अतिउत्तम चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई मीना जी 💐🙏
सचमुच शुरूआत से ही खूबसूरत लाजबाव प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर, सार्थक, सशक्त सूत्रों से सुसज्जित आज का संकलन ! मेरी रचना को आज के पटल पर स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय मीना दीदी सभी रचनाए बहुत ही सुंदर मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार.
जवाब देंहटाएंभूमिका ही इतनी सशक्त ""स्वर्ग मिलेगा उसे, खोजता जो गंगा का मूल चले" दिनकर जी""
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक और ध्यान को खींचने वाली रचनाओं का चयन किया आपने
सभी लिंक्स बहुत दिलचस्प लगे
मेरी रचना को सुच में स्थान दे कर हमेशा की तरह उत्साह बढ़ाया आपने , उसके लिए आभार
बेहतरीन प्रस्तुति मीना जी ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का का संग्रह है आपका ये मंच मीना जी ,सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ,आपका तहे दिल से मैं शुक्रियां करती हूँ ,नमस्कार ,आप तारीफे काबिल है ।
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