शीर्षक पंक्ति : आदरणीया ज्योति सिंह की रचना से
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स्नेहिल अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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ख़्वाहिशों का कोई ओर-छोर नहीं होता है।
वे पवन की तरह स्वछंद बहतीं हैं।
वे पवन की तरह स्वछंद बहतीं हैं।
ज़िंदगी क़दम बढ़ाती है।
ख़्वाहिशें थामतीं हैं हाथ उसका उत्साह-उमंग के साथ।
ख़्वाहिशें थामतीं हैं हाथ उसका उत्साह-उमंग के साथ।
ज़िंदगी ख़्वाहिशों के चलते ख़ूबसूरत है।
हर एक ख़्वाहिश एक मक़ाम है ज़िंदगी का।
हर एक ख़्वाहिश एक मक़ाम है ज़िंदगी का।
किसने कितना बटोरा ख़्वाहिशों के चलते
जीवन उसी का नाम है।
जीवन उसी का नाम है।
- अनीता सैनी
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मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा है-
"हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसीं के
हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले"
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आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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उम्र की अब मेजबानी हो गयी
सुर्ख काया जाफरानी हो गयी
सोच अब अपनी सयानी हो गयी
चदरिया अब तो पुरानी हो गयी
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जान लेते हैं जान जाने के बाद
किस मर्ज़ ने मारा बीमार को
हम अपने गिरेबान में क्यों झाँके
जब संसार दे रहा है दोष संसार को
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मत सोच हम भी खेल में हारे नहीं हुए,
बस इतना फ़र्क है कि किनारे नहीं हुए ।
उनकी निग़ाहें नाज़ का मारा नहीं मग़र
तहज़ीब इतनी थी कि इशारे नहीं हुए ।
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माँ ९ महीने हमारा बोझ उठाए रहती है,
बिना किसी वेतन के निरंतर हमारा काम करती रहती है,
हमारे लिये खाना पकाती है,
व्यंजन बनाती है, हमारे कपड़ों का ध्यान रखती है,
हमारे घर का ध्यान रखती है, हमारे बच्चों को संभालती है,
हमारी गंदगी सफाई करती रहती है। माँ, तरल है, मृदु है, लचीली है।
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आज सोचा चलो अपनी
ख्वाहिशो को रास्ता दूँ ,
राहो से पत्थर हटाकर
उसे अपनी मंजिल छूने दूँ ,
मगर कुछ ही दूर पर
सामने पर्वत खड़ा था
अपनी जिद्द लिए अड़ा था ,
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जीने भी दो यारो कुछ तो
क्यों हो विषैले तीर चलाते
भालों से भी तीखे शब्द हैं
सब मन पत्थर हो नहीं पाते
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तुम ने यह निर्णय क्यों लिया,
यह बताने के लिए तुम अब इस दुनिया में नहीं हो,
लेकिन यह रहस्य लम्बे समय तक रहस्य नहीं रहेगा।
कोई यूँ ही ऐसा कठोर निर्णय नहीं ले लेता। बहुत मुश्किल होता है
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सिर पर गठरी उठाए,
छालों भरे पाँवों से
थके बदन को घसीटते
मैं निकल पड़ा हूँ
सैकड़ों मील की यात्रा पर.
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भारत मां के शेरों ने ,चीनी गीदड़ों को मारा है ।
भागो भागो चीनी ,सियाचिन से, तिब्बत भी हमारा है ।।
धोखेबाज चीन तेरीअब ,एक नहीं चलने देंगे
याद रहे इतिहास हमारा, भूगोल नहीं बदलने देंगे ।।
अन्दाज बकवास-ए-उलूक का कुछ बदलना चाहता है
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मूड रंगीन हो तो आप क्यों बाज आते हो, लुत्फ़ उठाने से ...
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मूड रंगीन हो तो आप क्यों बाज आते हो, लुत्फ़ उठाने से ...
छोड दे तोलना हमें तू, वक्त की कसौटी पर,
जताने के बजाए, प्यार बढता है छिपाने से ।
फर्क की परवाह किसे ,स्नेह की तिजोरी पर,
कोई
तमन्ना के साथ
हौले हौले अपनी फितरत को
अपनी धार दिये जाता है
कुछ नहीं बदलेगा
कहना ही ठीक नहीं है
जमाने से इस समय
जमाना
खुद अपने हिसाब से अब
चलना ही
कहाँ चाहता
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युद्ध-युद्ध
तमन्ना के साथ
हौले हौले अपनी फितरत को
अपनी धार दिये जाता है
कुछ नहीं बदलेगा
कहना ही ठीक नहीं है
जमाने से इस समय
जमाना
खुद अपने हिसाब से अब
चलना ही
कहाँ चाहता
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युद्ध-युद्ध
चलो युद्ध युद्ध खेल लेते हैं,
तुम हमें धकेल लो,
हम तुम्हें धकेल लेते हैं।
तनाव अच्छी चीज है,
तनाव का व्यापार करें।
तुम हमसे गुड़ ले लो,
हम तेल लेने पर विचार करें।
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शब्द-सृजन-26 का विषय है-
'क्षणभंगुर'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे)
तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form )
के ज़रिये हमें भेज सकते हैं
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आज सफ़र यहीं तक
कल फिर मिलेंगे।
-अनीता सैनी
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आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंचर्चा मे रचनाओं का उम्दा संकलन। आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे लिंक्स
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और उपयोगी पठनीय लिंक।
जवाब देंहटाएं--
आपका आभार अनीता सैनी जी।
मेरी कृति का लिंक यहां लगAने हेतु शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआभार अनीता जी
ख़्वाहिशों का कोई ओर-छोर नहीं होता है।
जवाब देंहटाएंवे पवन की तरह स्वछंद बहतीं हैं।
सभी रचनाएं बहुत बढ़िया है
सुंदर रचना संकलन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं की चर्चा ,शानदार प्रस्तुति ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद अनिता जी ,हार्दिक आभार,शुरुआत बहुत अच्छी हुई है ,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा. मेरी कविता को स्थान देने के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंलाजवाब चर्चा प्रस्तुति सभी रचनाएं बेहद उम्दा...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंमाननीय/माननीया, इस प्रतिष्ठित मंच का हिस्सा बन कर मैं गौरवान्वित हूँ।...सुन्दर रचनाओं के लिए सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंअनीता जी
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत ही आकर्षक भूमिका ,
किसने कितना बटोरा ख़्वाहिशों के चलते
जीवन उसी का नाम है।
सभी लिंक्स बहुत सार्थक और रोचक हैं
सभी रचनाकारों की शुभकामनाएं
मेरी कविता को स्थान देने के लिए शुक्रिया
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति अनीता जी ।