स्नेहिल अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत करती हूँ ।
मैं आदरणीया मीना जी की तहे दिल से शुक्रगुजार जिन्होंने
मेरी गैरमौजूदगी में मेरा कार्यभार संभाला।
सहृदय धन्यवाद मीना जी
एक तो जीवन पहले से ही अस्त व्यस्त था और आज इस कोरोनाकाल ने तो
जीवन को और भी अनिश्चिताओं के भॅवर में उलझा कर रख दिया है।
जिंदगियां थक रही है टूट रही है बिखर रही है।
जिनके पास साधन सिमित हैं या हैं ही नहीं वो तो पेट पालने के जदोजहद में ही थके पड़ें हैं।
परन्तु जिनके पास सब कुछ है या दिख रहा हैं वो क्यों टूट रहे है?
कल ही सितारों की दुनिया को अपनी नूर से और भी रोशन करने वाला एक नन्हा सितारा सदा के
लिए बुझ गया। सब कुछ पा लेने वाले इस नन्हे सितारे को आखिर क्या दुःख था,
जिसने उसे खुद ही अपना जीवन समाप्त करने पर मजबूर कर दिया।
क्या सब कुछ पा लेने के बाद भी इंसान भीतर से खाली ही रहता हैं?
जीवन के वो तमाम भौतिक सुख जिन्हे पाने के लिए हम लालायित रहते हैं...
वो हमारे जीने के लिए काफी होते है क्या ?
सवाल ,सवाल और सिर्फ सवाल.....
आईये ,आज की रचनाओं के माध्यम से जबाब तलाशने की कोशिश करते है....
मैं -कामिनी सिन्हा
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मैं आदरणीया मीना जी की तहे दिल से शुक्रगुजार जिन्होंने
मेरी गैरमौजूदगी में मेरा कार्यभार संभाला।
सहृदय धन्यवाद मीना जी
एक तो जीवन पहले से ही अस्त व्यस्त था और आज इस कोरोनाकाल ने तो जीवन को और भी अनिश्चिताओं के भॅवर में उलझा कर रख दिया है।
जिंदगियां थक रही है टूट रही है बिखर रही है।
जिनके पास साधन सिमित हैं या हैं ही नहीं वो तो पेट पालने के जदोजहद में ही थके पड़ें हैं।
परन्तु जिनके पास सब कुछ है या दिख रहा हैं वो क्यों टूट रहे है?
कल ही सितारों की दुनिया को अपनी नूर से और भी रोशन करने वाला एक नन्हा सितारा सदा के
लिए बुझ गया। सब कुछ पा लेने वाले इस नन्हे सितारे को आखिर क्या दुःख था,
जिसने उसे खुद ही अपना जीवन समाप्त करने पर मजबूर कर दिया।
क्या सब कुछ पा लेने के बाद भी इंसान भीतर से खाली ही रहता हैं?
जीवन के वो तमाम भौतिक सुख जिन्हे पाने के लिए हम लालायित रहते हैं...
वो हमारे जीने के लिए काफी होते है क्या ?
सवाल ,सवाल और सिर्फ सवाल.....
आईये ,आज की रचनाओं के माध्यम से जबाब तलाशने की कोशिश करते है....
मैं -कामिनी सिन्हा
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गीत "साथ नहीं कुछ जाना"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

कहीं सरल हैं कहीं वक्र हैं,
बहुत कठिन जीवन की राहें।
मंजिल पर जानेवालों की,
छोटे पथ पर लगी निगाहें।
लेकिन लक्ष्य उसे ही मिलता,
जिसने सही मार्ग पहचाना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना।।
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अक्सर, हम अपने दृष्टिकोण से किसी और के जीवन को समझने की कोशिश करते हैं।
इस बात को आसानी से भूल जाते हैं कि हमें उनके दृष्टिकोण से
उनके जीवन को समझने की कोशिश करनी थी।
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हृदय की दरारों से सांसें फटकन-सी लगीं।
पीड़ा आँगन में पसरी थी अदृश्य याचक की तरह।
आँखें झुकाए नमी से हृदय की फटन छिपा रही थी।
कभी स्वाभिमान के मारे शब्दों से ढाका करती थी उन्हें।
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विजय और उम्मीद पताका लिए
स्व,स्वजन,स्वदेश के लिए जूझते,
साहसी,वीर योद्धाओं का अपमान है,
कायरों के आत्मघात पर शोक गीत।
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अधूरा मकान सिर्फ़ अधूरा ही नहीं होता
अधूरे मकान में कई मनुष्यों के सपनों
और छोटी-छोटी ख्वाहिशों के बिखरने का
इतिहास दफ़न होता है ।
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सफ़र के उस मुक़ाम पर पहुंचकर आप इतने अकेले हो जाते हैं कि अगर चलते चलते
आप थक कर गिर भी पड़े तो कोई उठाने के लिए नही रुकता क्योंकि
वो जानता है कि अगर वो रुका तो वो पीछे रह जाएगा।
इसीलिए आपको ख़ुद ही ख़ुद को उठाना पड़ता है।
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साँस घुटी तब-तब भूमा की
प्रलय-प्रभंजन शोर मचाएँ
युग अतीत में ढलते-ढलते
भूले अपनी रोज गिनाएँ
दमित मौन से उपजे पीड़ा
जड़वत देखें सभी दिशाएँ।।
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नियति ने इतना लाड़ दिया
प्यार अपार, परिवार दिया।
विधुर पिता ने भी तुम पर
अपना जीवन निसार किया।
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तनाव / अवसाद

कल जैसा कि एक खबर को पढ़ा, कि सुशांत सिंह राजपूत ने
आत्महत्या की, तो कुछ पल के लिए मन विचलित हुआ और
उनके बारे में सोचा कि उन्हें क्या और किस बात की कमी थी।
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किसी राजपूत ने रणक्षेत्र में
आज तक पीठ नहीं दिखाई
तू कैसे हार गया जिन्दगी की बाज़ी.
तूने कैस उससे मुँह की खाई!!!
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आज का सफर यही तक आप सभी स्वस्थ रहें ,सुरक्षित रहें।
कामिनी सिन्हा
--
हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुतीकरण
सहृदय धन्यवाद दी ,सादर नमस्कार
Deleteबहुत सुंदर संकलन, बेहतरीन रचनाएं।
ReplyDeleteसहृदय धन्यवाद सखी ,सादर नमस्कार
Deleteक्लैव्य त्याज्य एकलव्य बनो तुम!
ReplyDeleteमंच पर आज की चर्चा के मध्य उद्घोष करता यह वाक्य..।
सुंदर प्रस्तुति और विश्वमोहन जी की यह रचना
सिर्फ़ अद्भुत कह सकता हूँ।
आभार!
Deleteसहृदय धन्यवाद शशि जी ,सादर नमस्कार
Deleteउपयोगी लिंकों के साथ विविधता लिए हुए सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपका आभार कामिनी सिन्हा जी।
सहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमस्कार
Deleteसंवेदना के प्रवाह से आप्लावित इस चर्चा अंक में गोते लगाकर मन भाव-विहवल हो गया! कामिनी जी को रचनाओं के इस संकलन के लिए और साथ में सभी रचनाकारों को इस भाव-प्रवाह के लिए साधुवाद!!!
ReplyDeleteसहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी ,सादर नमस्कार
Deleteसंवेदनशील भावनाओं से सजी है आज चर्चा प्रस्तुति ।
ReplyDeleteशुक्रिया जैसी कोई बात नहीं कामिनी जी । हम सब एक दूसरे के सहयोगी हैं 🙏🙏
सहृदय धन्यवाद मीना जी ,आपने बिलकुल सही कहा आपने ,सादर नमस्कार
Deleteतकलीफ बयान होने को जब शब्द नहीं मिलते और रोने को किसी का कंधा नहीं मिलता, इंसान अकेला पड़ जाता है टूट जाता है जब उसकी डिग्निटी के साथ खेला जाता है।
ReplyDeleteसहृदय धन्यवाद ऐश्वर्या जी , सत्य कहा आपने ,सादर नमस्कार
Deleteसंग्रहणीय रचनाओं से सजी सुंदर प्रस्तुति प्रिय कामिनी जी।
ReplyDeleteमेरी रचना शामिल करने के लिए मन से बहुत आभार आपका।
सहृदय धन्यवाद श्वेता जी ,सादर नमस्कार
Deleteसामयिक व सराहनीय प्रस्तुती
ReplyDeleteसहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमस्कार
Deleteबहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteसहृदय धन्यवाद भारती जी ,सादर नमस्कार
Deleteनमस्कार कामिनी जी,
ReplyDeleteमेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और सचमुच आज की चर्चा काफी सार्थकता लिए हुए है।
सधन्यवाद ... 💐💐
सहृदय धन्यवाद मुकेश जी
DeleteThanks for sharing this post very helpful article
ReplyDeleteclick here
सहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमस्कार
Deleteसादर आभार आदरणीय दीदी मेरे सृजन को स्थान देने हेतु .
ReplyDeleteसादर
सहृदय धन्यवाद अनीता जी ,सादर नमस्कार
Deleteबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
ReplyDeleteबेहतरीन रचना संकलन लिए हुए सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका आभार कामिनी जी।