मित्रों!
भारत-चीन दोनों पड़ोसी एवं विश्व के दो बड़े विकासशील देश हैं। दोनों के बीच लम्बी सीमा-रेखा है। इन दोनों में प्रचीन काल से ही सांस्कृतिक तथा आर्थिक सम्बन्ध रहे हैं। भारत से बौद्ध धर्म का प्रचार चीन की भूमि पर हुआ है। चीन के लोगों ने प्राचीन काल से ही बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण करने के लिए भारत के विश्वविद्यालयों अर्थात् नालन्दा विश्वविद्यालय एवं तक्षशिला विश्वविद्यालय को चुना था क्योंकि उस समय संसार में अपने तरह के यही दो विश्वविद्यालय शिक्षा के महत्वपूर्ण केन्द्र थे।
किन्तु वर्तमान समय में कोरोना काल में ये दोनों ही देश भारत को आँखे दिखा रहे हैं।
जहाँ तक चीन का सम्बन्ध है तो वह ते शुरू से झूठा-मक्कार और दगाबाज रहा है। कालापानी मुद्दे (kalapani Dispute) पर भारत के खिलाफ नेपाल (India Nepal Relations) को भड़का कर अब चीन (China) शांतिदूत बनने की कोशिश कर रहा है। चीनी विदेश मंत्रालय (Chinese Foreign Ministry) ने एक बयान जारी कर कहा कि यह मुद्दा भारत और नेपाल का आंतरिक विषय है। इसे दोनों देशों को शांतिपूर्वक निपटाना चाहिए। बता दें कि भारतीय सेना प्रमुख (Indian Army Chief) नेपाल के ऐसे व्यवहार के पीछे चीन का हाथ बता चुके हैं। लेकिन अगर नेपाल की बात करें तो कौन से अहसान नहीं किये भारत ने नेपाल पर। भारत और नेपाल का शुरू से ही रोटी बेटी का सम्बऩ्ध रहा है।
भारत ने कैलास मानसरोवर तक की यात्रा सुगम करने के लिए उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में चीन-नेपाल बॉर्डर के पास लिपुलेख दर्रे से 5 किलोमीटर पहले तक सड़क बनाई है। इस सड़क के उद्घाटन के बाद नेपाल ने इसे लेकर आपत्ति जतानी शुरू कर दी। हालांकि पहले इस एरिया में नेपाल से कभी विवाद नहीं रहा है।
उत्तराखंड बॉर्डर पर नेपाल-भारत और तिब्बत के ट्राई जंक्शन पर स्थित कालापानी करीब 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भारत का कहना है कि करीब 35 वर्ग किलोमीटर का यह इलाका उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा है। किन्तु नेपाल सरकार का कहना है कि यह इलाका उसके दारचुला जिले में आता है। वर्ष 1962 में भारत-चीन के बीच युद्ध के बाद से इस इलाके पर भारत के आईटीबीपी के जवानों का कब्जा है।
अब नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार चीन के बहकावे में आकर भारत के सारे उपकार भुलाकर सरासर बगावत कर रही है।
जो बहुत निन्दनीय है।
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अब देखिए बुधवार की चर्चा में
मेरी पसन्द के कुछ लिंक...
**१**
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प्रलय के मेघ
दया करना विधाता हे, खड़े हम द्वार पे तेरे।
दुआ माँगे मिटे विपदा,मिटा अब काल के फेरे।
तबाही देख दुनिया में,नहीं अब चैन आता है
हरो संकट सुनो स्वामी,मिटा दो कोप के घेरे...
Anuradha chauhan
**४**
उम्र, संख्या पर भले ही नहीं
पर उसके तकाजे पर जरूर ध्यान रखें
इस कोरोना कालखंड में हमारी छत पर अक्सर संध्या समय करीब आधे घंटे का, टेनिस गेंदी, दर्शक विहीन, एक सदस्यी, त्रिकोणी क्रिकेट मुकाबले का आयोजन हो जाता है। इसकी पॉपुलर्टी इतनी है कि घरवाले ही ध्यान नहीं देते। फिर भी कभी-कभी घर की वरिष्ठ महिला सदस्य अनुग्रहित करने हेतु आ तो जाती हैं पर उनकी रुचि खेल में नहीं, अपने फोन पर प्रसारित होते पचासवें और साठवें दशक के गानों में ही ज्यादा रहती है...
कुछ अलग सापरगगन शर्मा
**५**
**६**
कॉलेजिया लईकी ढूंढने वाले
बाबूजी के बेरहम दुख
चनेसर काका का बड़का बेटा जब बीटेक कर गया तो अगुआ दुआर की माटी कोड़ने लगे। और लड़की थी कि कोई भी उनको जंच ही नहीं रही थी। कोई पढ़ी-लिखी थी तो कद छोटा मिलता, कोई गोरी होती तो उसके पास डिग्री नहीं रहती। इसी माथापच्ची में दो वर्ष बीत गए। उन्हें कोई रिश्ता पसंद ही नहीं आया...
श्रीकांत सौरभ
**७**
कविता
मेरी हर इक
सांस एक नई
कविता गढ़ेगी,
वह कविता
जिसमें ईश्वर
मुझे देख सिटी
मारेगा
♥कुछ शब्द♥ पर निभा
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**९**
यमराज की महामारी की मार से मुक्त
श्रेणी के वाशिंदे
हर स्तर पर लोग सीख रहे हैं। जिनके हाथ में सत्ता है वो भी। अब कौन अमरीका से सीखा और कौन हमसे, कौन जाने मगर पिसी तो आम जनता ही दोनों तरफ। जैसे बहुतेरे आरटीआई से मुक्त हैं, वैसे ही लगता है कि महामारी के कैटेलॉग में यमराज ने भी इनको महामारी की मार से मुक्त की श्रेणी में रखा होगा.
**१०**
संग्राम
दिल और दिमाग
हैं तो सहोदर
एक साथ रहते है पर
संग्राम छिड़ा है दोनों में |
आए दिन की बहस
नियमों का उल्लंघन
एक ने चाहा दूसरे ने नकार दिया
हो गई है आम बात |
कभी दिल की जीत भारी
कभी मस्तिष्क की जीत हारी
हार जीत के खेल में
तालमेल नहीं है दोनों में...
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भागेगा कोरोना----
शैलेन्द्र सिंह " शैली", हरियाणा
हिम्मत से सब मिलकरइसका मुकाबला करो भाई,'शैली' के जो बात समझ आई,वही आपको बताई।
srisahitya पर Sriram
**११**
मैं कविता हूँ -
कविता हूँ मुक्त विचरती हूँ,मैं मानव होने का प्रमाण ,
पहचान बताऊं कैसे मैं ,हर भाव ,रंग में विद्यमान .
अवरुद्ध पटों को खोल,वर्जनाहीन अकुण्ठित बह चलती,
जो सिर्फ़ उमड़ता बोझिल सा, मैं सजल प्रवाहित कर कहती
शिप्रा की लहरें पर प्रतिभा सक्सेना
**१२**
तनिक चीखो ना ...
कैसे मान लें हम फिर भी कि .. हमने चाँद तक की है यात्रा की,
और मंगल पर भी जाने में है कामयाबी हासिल कर ली।
कुछ बोलो ना! .. मुँह खोलो ना ! ..
खुद को देखो ना ! .. तनिक चीखो ना ! ...
तोड़ कर चुप्पी अपनी .. कु-छ क्यों न-हीं हो बो-ल-ती ?
और मंगल पर भी जाने में है कामयाबी हासिल कर ली।
कुछ बोलो ना! .. मुँह खोलो ना ! ..
खुद को देखो ना ! .. तनिक चीखो ना ! ...
तोड़ कर चुप्पी अपनी .. कु-छ क्यों न-हीं हो बो-ल-ती ?
Subodh Sinha
**१३**
भक्ति करे कोई सूरमा
प्रेम एक ऊर्जा है, आत्मसम्मान से भरा व्यक्ति ही सम्मान करना जानता है. सम्मान पाने की लालसा जब तक भीतर है प्रेम का प्रस्फुरण नहीं होता. जहाँ दिखावा है वहाँ निकटता द्वेष को जन्म देती है. प्रेम देने की कला है, पूर्णरूप से निछावर होना भक्ति का लक्षण है.
डायरी के पन्नों से पर Anita
**१४**
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सच के झूठ ... क्या सच ...
सच
जबकि होता है सच
लग जाती है
मुद्दत
सच की ज़मीन पाने में
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झूठ
जबकि नहीं होता सच
फ़ैल जाता है
आसानी से
सच हो जैसे...
स्वप्न मेरे पर दिगंबर नासवा -
**१५**
उपनिषद का ऋषि कहता है :
प्रश्न पूछिए ,
सारा ज्ञान पौरबत्य विज्ञानों में
प्रश्नोत्तरों के माध्यम से ही उद्भूत हुआ है
इसी कड़ी में
प्रज्ञा -ऋषि राहुल विन्ची खान गैंडी शाह अमित साहब से
प्रश्न पूछेंगे।
virendra sharma
**१६**
"हाइकु"
भोर लालिमा~कलरव की गूंजपेड़ों से आई ।
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गिलोय लता~वैद्य की दुकान में खरल गूंज ।...
मंथन पर Meena Bhardwaj
**१७**
आओ करें फिर प्रेम मिलन।
पवित्र समय काप्रेम मिलनअपराधबोध कैसे हुआ।
जब दोनों कीसहमति थी फिरये अवरोध कैसे हुआ...
Nitish Tiwary
**१८**
शब्द-सृजन-25 का विषय है-
'रण'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे)
तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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आज के लिए बस इतना ही...
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समसामयिक भूमिका मंच पर पढ़ने को मिली, लेकिन प्रश्न यह है कि हमारे में ऐसी क्या कमजोरी है कि मित्र देश भी आँखें दिखला रहे हैं ?
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत अच्छी है। आप रचनाकारों का नाम दे देते हैं, यह अच्छी पहल है।
प्रणाम।
बहुत सुंदर प्रस्तुति। भूमिका के प्रारंभ में नेपाल का उल्लेख छूट गया है। सभी रचनाएँ प्यारी। आभार।
जवाब देंहटाएंजहाँ स्थिरता नहीं होती,लोग उकसावे में आ जाते हैं - ऐसा लगता है यही हाल है नेपाल का.
जवाब देंहटाएंड्रैगन विश्व में स्थिरता नहीं चाहता इस कारण अशांति हे
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं बहुत बढ़िया हे
बहुत सुंदर प्रस्तुति,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंविविधता पूर्ण लिंकों से सजी सराहनीय प्रस्तुति । संकलन में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका सादर आभार आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर और जरुरी समसामयिक भूमिका ! अब नेपाल में तो कम्युनिस्टों का शासन है तो उसका झुकाव, हमारी तमाम सहायताओं को नजरंदाज और दरकिनार कर, अपने शक्तिशाली पड़ोसी की तरफ होना कुछ स्वाभाविक लगता है ! पर अपने देश में आजादी के बाद से ही जो यहां का खाते-पीते-पनपते हुए भी चीन का गुणगान करते रहते हैं, उसके पैरों में बिछे रहते हैं, अपने देश के प्रति विश वमन करते रहते हैं; क्या उनका यहां के अन्न, पानी, मिटटी के प्रति कोई फर्ज नहीं बनता !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंचिंतन परक भूमिका
सुंदर लिंक चयन
सुंदर सार्थक प्रस्तुति
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई,सभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
मेरी रचना को शामिल करने केलिए तहेदिल से शुक्रिया।
बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक प्रस्तुति। मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तृत चर्चा आज जी ...
जवाब देंहटाएंआभार मुझे भी शामिल करने के लिए इस चर्चा में ...
शानदार लिनक्स आज |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |