स्नेहिल अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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भारत में बढ़ती जनसंख्या ने प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव बनाया है। समाज को इसके प्रति जाग्रत करना और नई नीतियाँ बनना ज़रूरी है। करोना-काल में जनसंख्या के अनियंत्रित विस्तार पर सोचने पर विवश किया है। भोजन-पानी, वस्त्र, दवाई से लेकर यातायात आदि मूलभूत ज़रूरतों पर जनसंख्या के प्रभावों को नए संदर्भो में परखना होगा ताकि भविष्य के लिए सुखद रास्तों की तलाश हो सके।
-अनीता सैनी
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आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
-अनीता सैनी
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आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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भाषा-भूषा, प्रान्त-देश का,
सम्प्रदाय का झगड़ा छोड़ो,
जो सीधे-सच्चे मानव हैं,
उनसे अपना नाता जोड़ो,
नभ जब सूरज उगता है,
लाता अपने साथ उजाला।
अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो,
बनती है शब्दों की माला।।
कब तक तुम
तुम्हारे अपने लिये
औरों के द्वारा लिये गए
फैसलों में
अपने मन की अनुगूँज को
सुनने की नाकाम कोशिश
करती रहोगी ?
तुम गूंगी तो नहीं !
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रेखाएँ निशानियां होती हैं
अंतहीन महात्वाकांक्षाओं
की स्वार्थ की कभी न पटने वाली
अथाह गहरी खाई की
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क्या लिखूं
क्या कहूं ?
असमंजस में हूँ ,
सिर्फ मौन होकर
निहार रही
बड़े गौर से
पत्थर के
छोटे -छोटे टुकड़े ,
जो तुमने
बिखेर दिये है
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तिरेपन तुरपनों के बाद
बार-बार उधड़ी सिलाइयों की,
तिरेपन पैबंद जोड़ने के बाद,
रंग कुछ फीके पड़ने के बाद,
जैसा भी है कथा ताना-बाना,
कुल मिला कर बुरा नहीं रहा,
हिसाब-किताब लेन-देन का,
तब, कोख ने जना,
एक सत्य, एक सोंच, एक भावना,
एक भविष्य, एक जीवन, एक संभावना,
एक कामना, एक कल्पना,
एक चाह, एक सपना,
और, विरान राहों में,
कोई एक अपना!
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बडे गर्व से
कहते हैं.हाँ हैं हम
स्वतंत्र देश के
स्वतंत्र नागरिक ..
और हैं भी ....।
पर हमनें तो
इसका ऐसा
किया दुरूपयोग ..
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महज़ बातों ही से क्या मन की बात होती है
हवा न दो तो जवाँ आग राख होती है
आज भी याद है वो, वो रात फूलों की
दिखा जो चाँद कभी ख़ुशबू साथ होती है
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abc: बता दीजिये ना ये तो जो मुझे कागज़ पर लिखा मिला
मैंने उसे टाइप कर दिया। हाँ कुछ जगह मेरे कारण स्पेलिंग मिस्टेक जरूर हुआ है..
xyz: शुरू में ही विधाओं को विद्याओं किया हुआ है... पूरा शाम तक बताते हैं..
abc : इंतज़ार करेंगे🙏🏻: ये तो मेरी गलती है😂
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शब्दों
के
जोड़
जन्तर
जुगाड़ हैं
कुछ के
कुछ भी
कह लेने के
तरीके
बुलन्द हैं
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किसी
तरह से सुनीता सारा भोजन तैयार करने के बाद
राहुल को पूजा करनी थी
तो उसके लिए
दीपक को बनाकर बगल में ही
साथी न कारवां है
ये तेरा इम्तिहां है
यूँ ही चला चल दिल के सहारे
करती है मंज़िल तुझको इशारे
देख कहीं कोई रोक नहीं ले तुझको पुकार के
ओ राही, ओ राही...
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इस क़दर अपना बनाया आपने -
कर दिया जग से पराया आपने !
था दर्द की इन्तहा में डूबा ये दिल ,
चाहत का मरहम लगाया आपने !
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शब्द-सृजन-25 का विषय है-
'रण'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आज (सायं 5 बजे)
तक
चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form )
के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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-आज सफ़र यहीं तक
कल फिर मिलेंगे।
-अनीता सैनी
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आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंवाह!सुंदर प्रस्तुति प्रिय अनीता ।मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विविधतापूर्ण लिंक्स ..बहुत सुन्दर चर्चा अंक सजाया है अनीता जी । सभी लिंक्स के रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंसार्थक भूमिका और भाव पूर्ण रचनाओं से सुशोभित इस मंच पर मेरी पर मेरी रचना ' रुमानियत ' को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार प्रिय अनीता।सभी रचनाकारों को शुभकामनायें और तुम्हें हार्दिक बधाई। 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ,बहुत बहुत धन्यवाद अनिता मेरी रचना को शामिल करने के लिए ,सभी पोस्ट को जाकर पढ़ आई और साथ ही सब पर टिप्पणी भी कर दिया ,सभी रचनाकारों को बधाई हो, नमन
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बहना
जवाब देंहटाएंसराहनीय संग्रहनीय प्रस्तुतीकरण
साधुवाद
सुन्दर लिंकों से सजा बेहतरीन चर्चा अंक।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
बहुत धन्यवाद अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंमाँ की अस्वस्थता के कारण उत्तर देने में विलंब हुआ ।
अब बेहतर है ।
सभी रचनाकारों और संकलनकर्ता को धन्यवाद और बधाई ।