स्नेहिल अभिवादन।
रविवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
--
शब्द-सृजन-27 के लिए विषय दिया गया था -
'चिट्ठी'
चिट्ठी अर्थात पत्र, पाती, पतिया, चिठिया, ख़त, Letter आदि का महत्त्व मोबाइल-फोन क्रांति के उपरान्त अचानक घट गया है। अब जो कहना है वह मोबाइल फोन के ज़रिये जीवंत संवाद संभव है। नई पीढ़ी को उसके पाठ्यक्रम की औपचारिकता के तौर ही पत्र की जानकारी दी जाती है। पिछले ज़माने में पत्रों का गौरवशाली इतिहास रहा है। रिश्तेदारों, मित्रों को पत्र, ऐतिहासिक-पत्र, साहित्यिक-पत्र, समाचार-पत्र-पत्रिकाओं के संपादक को पत्र, प्रेम-पत्र, प्रशंसा-पत्र आदि ख़ूब चर्चा में रहे हैं। पत्र लेकर आनेवाला डाकिया पानेवाले को एक प्रिय किरदार नज़र आता था। तकनीक के बदलते दौर में चिट्ठी का अप्रासंगिक होते जाना एक कचोटता हुआ अनुभव है।
-अनीता सैनी
आइए पढ़ते हैं 'चिट्ठी' विषय पर सृजित आपकी रचनाएँ-
--
--
पाती आई प्रेम की
आज राधिका नाम ।
श्याम पिया को आयो संदेशो
हियो हुलसत जाए।
अधर छाई मुस्कान सलोनी
नैना नीर बहाए
एक क्षण भी चैन पड़त नाही
हियो उड़ी- उड़ी जाए।
---
सबसे बड़ी बात कि इस महामारी के संकटकाल में आपने
अपनी दवा का दाम 600 रुपये तय किया।
आप इसे निशुल्क उपलब्ध कराने पर विचार क्यों नहीं कर सके?आपका संस्थान आर्थिक रूप से दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा है
तो फिर इतना लालच क्यों
--
"एक चिट्ठी लिखानी है उनको...दोपहर में आऊँगी ।
माँ के सोने पर… लिफाफा नहीं है मेरे पास ।
मैंने
कहा - कोई नही मैं दे दूंगी...तू आ जाना
---
" पत्र दिल की जुबां होती हैं। "
पत्र लिखते वक़्त हम अपने दिल के काफी करीब होते हैं ठीक वैसे ही
जैसे जब हम प्यार में होते है तो अपने दिल के इतने करीब होते है
कि उसकी धड़कनों को भी सुन सकते हैं
और वो धक- धक किसी के पास होने का एहसास कराकर आँखों को स्वतः ही नम कर जाती हैं।
--
आषाढ़ शुक्ल,दिनांक द्वितीया
बादलों से बने घर के पते पर।
सूर्य किरण की तप्त कलम से,
कड़ी धूप की तपते पन्नें पर।
अपने गरम कर-कमलों से,
धरती ने लिखी एक चिट्ठी।
रूठी वर्षा को मनाने को,
लिखकर बातें मीठी-मीठी।
--
सलोनी--"पर... भैया क्यों ? आज ही तो हमने दोस्ती की है" ...
सुनते ही दीपक ने अपने बैग से लकड़ी का स्केल निकालकर उस पर दे मारा , क्या है भैया ? ...
मम्म्म्मी!!!.... कहते हुए वह भागकर मम्मी से लिपटकर रोने लगी। दोनों की शिकायत सुनकर मम्मी बोली, "देख सलोनी दीपक तेरा बड़ा भाई है, तेरा भला चाहता है,तुझे उसका कहना मानना चाहिए"
--
समय की दीवार पर दरारें पड़ चुकीं थीं
सिमटने लगा था जन-जीवन
धीरे-धीरे इंसान अपना संयम खो रहा था
मानव अपने हाथों निर्धारित
किए समय को नकार चुका था
तभी उसने देखा अतीत कराह रहा है
उसकी आँखें धँस चुकीं थीं
चिंता से उसका चेहरा नीला पड़ चुका था
एक कोने में अंतिम सांसें गिन रहा था व
उसके ललाट पर चिंता थी
--
आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में🙏
वाह!बहुत ही सुंदर प्रस्तुति सखी।अलग हटकर लाजवाब हलचल प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशब्द-सृजन की सदैव की तरह बहुत सुंदर प्रस्तुति ।सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई । मेरे सृजन को मंच पर साझा करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंवाह!! प्रिय अनीता, भवभीना अंक जिसमें स्नेह पगी चिट्ठी के अनेक रंग समाहित हैं, कहीं धरती के नाम चिट्ठी ,तो कहीं वर्तमान के नाम चिठ्ठी। किसी ने बाबा रामदेव के नाम चिठी लिखी तो किसी ने श्याम के नाम 👌👌👌👌भावों के इस समन्दर को नमन। कल रात सखी कामिनी के " पत्र _ मन की जुबां "लेख पर मेरी टिप्पणी यहाँ लिख रही हूँ। बहुत- बहुत सराहनीय भूमिका के लिए तुम्हें शुभकामनायें।भाई रविंद्र सिंह यादव जी की बहुत ही उल्लेखनीय रचना "डाकिया'अगर आज संयोजन में होती तो और भी अच्छा होता। आखिर चिठ्ठी और डाकिया ही तो एक दूसरे के पूरक hain----
जवाब देंहटाएंमेरी टिप्पणी ____
भावनाओं में पगी पाती पर सुंदर लेख प्रिय कामिनी 👌👌👌। भावनाओं और संवेदनाओं का अहम दस्तावेज समय के चक्र में बदलकर अपने निष्ठुर और निर्मम रूप में डीजिटल स्क्रीन पर सिमट गया । जहाँ आत्मीयता की मधुर गंघ नहीं , बल्कि भ्रामक वाग्ज़ाल में उलझते और बनते -बिगड़ते रिश्ते हैं।पहले लंबी प्रतीक्षा में भी अवसाद नहीं था , आज बिन प्रतीक्षा अवसाद और विषाद से हर कोई बेहाल है। सखी हम लोग भाग्यशाली हैं कि हमने भावनाओं से पगी चिठ्ठियों की प्रतीक्षा के दिन देखे हैं और उसके साथ ही उनमें व्याप्त स्नेह की अनुभूतियों को भी जिया है | एक दिन साहित्य के संग्रहालय में रखी चिठ्ठियों को . भावी पीढियां कौतुहल से निहारा करेंगी | पर उन अनुभूतियों के ज्वार - भाटे से अनजान रहेंगी जो इनके माध्यम से पढने वाले और लिखने वाले झेला करते थे | शायद करोड़ों में एक कोई भाग्यशाली हो , जिसके नाम कोई पत्र आज भी आता हो | बहुत प्यारा लेख सखी | बहुत दिनों बाद तुम्हारे ब्लॉग की रौनक लौटी | मन खुश हुआ | हार्दिक स्नेह के साथ |🌹🌹🌹🌹
सादर आभार आदरणीय रेणु दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
हटाएंसादर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमेरी कुछ पंक्तियाँ---
जवाब देंहटाएंचिठ्ठी आती थी जब घर घर
जमाने बीत गए,
कागज में चेहरा दिखता था
पल वो सुहाने बीत गए!
गुलाब कभी -कभी गेंदा
या हरी टहनी प्यार भरी
भिजवाते थे दिल लिफ़ाफ़े में ,
साथी दीवाने बीत गए!
ना चिठ्ठिया ना कोई सन्देशा
बैठ विरह जो गाते थे
राह तकते थे नित कासिद की
वो लोग पुराने बीत गए !!
🙏🌹🌹🙏🌹🌹🙏
बहुत ही सुंदर हृदय स्पर्शी सृजन है दी आपका ...
हटाएंसादर प्रणाम
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशब्द सृजन का 27वाँ अक बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंअनीता सैनी जी आपका आभार।
शब्द सृजन का बेहतरीन अंक ,चिठ्ठी की भूली बिसरी यादों को ताज़ा करता लाजबाब सृजन ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार अनीता जी
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंलाज़बाब सृजन लाज़बाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआज की चिट्ठी विशेषांक बहुत ही प्यारा और अनमोल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंReally great content keep posting learn a lot from your blog
full form of smo
difference between html and html5
ping submission
local seo
Google adword
शानदार चर्चा प्रस्तुति बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण चिट्ठी विशेषांक... सभी लिंक बेहद उम्दा एवं उत्कृष्ट।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शब्द सृजन में स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद आपका।