फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

रविवार, जुलाई 26, 2020

शब्द-सृजन-31'पावस ऋतु' (चर्चा अंक 3774)

सादर अभिवादन।
रविवासरीय प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत है।

शब्द-सृजन का विषय दिया गया था-

पावस ऋतु

ऋतुओं का चक्र जनजीवन को प्रभावित करता है। शीत, ग्रीष्म के बाद पावस (वर्षा ) ऋतु का आना जहाँ एक ओर आनन्ददाई है वहीं इसकी भयावहता बाढ़ या सूखा के रूप में आमजन के जीवन पर असर डालती है।इस ऋतु के त्योहार और विशिष्ट गीत-संगीत हमारी संस्कृति की पहचान हैं।

आइए पढ़ते हैं पावस ऋतु पर सृजित आपकी की कुछ चुनिंदा रचनाएँ-
--
--
 
--
My Photo
सामाजिक मूल्य-अवसरवादी मूल्यविहीन अमूल्य 
सभी वक़्त की कसौटी पर
अपनी-अपनी परीक्षा दे रहे हैं
फ़िलहाल
पावस ऋतु में  
साफ़ हवा में
आशंकित 
हम 
सांस ले रहे हैं।    
--
पावस में इस बार
गाँवों में बहार आयी
बंझर थे जो खेत वर्षों से
फिर से फसलें लहरायी

हल जो सड़ते थे कोने में
वर्षों बाद मिले खेतों से
बैल आलसी बैठे थे जो
भोर घसाए हल जोतों से
--
 पावस ऋतु आ गई
लो, पावस ऋतु आ गई
श्याम नभ पर छाई
वो काली बदरी आ गई
पंख फैलाकर मयुर नाचे
घन-घन बादल गाजें
कोयल की मधुर आवाज आई
--

प्रियतम का संदेश ले, आया श्वेत कपोत ।
"वर्षा" होगी  नेह की, जागी मन में जोत ।।
"वर्षा" की ऋतु आ गई, बरसन लागे मेह ।
धरती  हरियाने  लगी, भीगी  सूखी  देह।।
गीतों में फिर ढाल कर, कहना मन की बात।
रिमझिम का संगीत है, "वर्षा" के दिन- रात ।।
--
पावस ऋतु पर कुछ दोहे / गोविन्द हाँकला
ओ ! पगले सुन साजना,समझ देह संदेश ।
चार दिनो का पाहुना, यौवन रहे विशेष ।।
सजनी को बदली किया, लगता चुप के फोन ।
अंग अब वाइब्रेट पे, बजी काम रिन्गटोन ।। 
--
पावस में ऐसे मदन,अकुलाता है प्राण
इंद्रधनुष पर साधता,है बूँदों के बाण.
इत पानी का बुलबुला,उत पानी की बूँद
पानी पानी हो गये,दोनों आँखें मूँद. 
--
Shashi kala vyas
मेघदूत का आगमन,
सुखद लगे संसार।
कोयल कूके डाल पर ,
शीतल पवन फुहार।।
🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃
पावस ऋतु की कामना,
धरा अंबर नीर।
मन मयूर नाचन लगे ,
मिटे जग की पीर।।
--

बरसा ऐसी हो प्रभू, भर दे ताल तलाई।
खेतन कूँ पानी मि‍ले, देवें राम दुहाई।।।।
पावस जल संग्रह करौ, 'आकुल' कहवै भैया।
धरती सोना उगले और देस हो सौन चि‍रैया।।

--
पावस :
तपन बढ़े जब ग्रीष्म से , आए *पावस* झूम। 
पशु पक्षी तब नाचते, मचे खुशी से धूम।। 
--
काव्य संसार

क्यों दादुर तू स्वारथी. पावस में टर्राय।

गरमा-सरदी का करे, तब क्यूँ ना बर्राय।।
--
आज का सफ़र यहीं तक 
फिर मिलेंगे 
आगामी अंक में🙏
--
-अनीता सैनी 

13 टिप्‍पणियां:

  1. शब्द सृजन पावस पर
    बहुत सुन्दर चिकों का चयन किया है आपने
    अनीता सैनी जी।
    --
    बहुत बहुत आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  2. दिलचस्प....
    वर्षा की चर्चा आनंदित कर गई

    🌺☘🌺☘🌺

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरे दोहे शामिल करने के लिए हार्दिक आभार 🌺🙏🌺☘

    जवाब देंहटाएं
  4. पावस की मनभावन रचना प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. मनमोहक प्रस्तुति । सभी चयनित रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  6. पावस ऋतु पर बहुत ही सुन्दर रचनाओं के साथ शानदार प्रस्तुति चर्चा मंच की....मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी !

    जवाब देंहटाएं
  7. पावस ऋतु पर बहुत अच्छी प्रस्तुति ~

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. चर्चा मंच के इस अंक के माध्यम से पावस ऋतु पर एक से बढ़कर एक रचनाएं पढ़ने को मिली ।सभी रचनाकार साथियों को साधुवाद ,हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  10. सार्थक भूमिका, सुंदर लिंक चयन सभी रचनाकारों को बधाई।
    पूर्ण संकलन सराहनीय , लिंक चयन करने में की गई मेहनत साफ दिख रही है साधुवाद।
    मेरे पावस को जगह देने के लिए हृदय तल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही सुंदर शब्द-सृजन का ये अंक अनीता जी,मनभावन रचनाएँ जैसे रिमझिम फुहार,समय आभाव के कारण कल आ नहीं पाई,देर से आने की माफ़ी चाहती हूँ। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।