सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
पावस ऋतु का आगमन प्रकृति और जनजीवन में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाता है। लू से झुलसते माहौल के बाद ठंडी बयार के साथ आई रिमझिम बरसात मनमोहक हो जाती है। हरियाली का साम्राज्य फलने-फूलने लगता है। सर्वाधिक प्रसन्नता किसान को होती है मानसून के आने पर। मौसमी बीमारियाँ, वज्रपात और बाढ़ आदि आम जनजीवन को तबाही से प्रभावित करते हैं।
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शब्द-सृजन-29 का विषय है-
'प्रश्न'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार
(सायं-5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म
(Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ आगामी रविवारीय अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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गुरुपूर्णिमा के अवसर पर
सबसे पहले गुरुजनों को नमन करते हुए,
एक रचना...
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दोहे
"गुरुवर का सम्मान"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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"नदी-नाले उफन आये"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
पावस ऋतु का आगमन प्रकृति और जनजीवन में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाता है। लू से झुलसते माहौल के बाद ठंडी बयार के साथ आई रिमझिम बरसात मनमोहक हो जाती है। हरियाली का साम्राज्य फलने-फूलने लगता है। सर्वाधिक प्रसन्नता किसान को होती है मानसून के आने पर। मौसमी बीमारियाँ, वज्रपात और बाढ़ आदि आम जनजीवन को तबाही से प्रभावित करते हैं।
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शब्द-सृजन-29 का विषय है-
'प्रश्न'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार
(सायं-5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म
(Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ आगामी रविवारीय अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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गुरुपूर्णिमा के अवसर पर
सबसे पहले गुरुजनों को नमन करते हुए,
एक रचना...
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दोहे
"गुरुवर का सम्मान"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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"नदी-नाले उफन आये"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
*****
अपहरण
गुण्डागिरी, खेत की सुपारी
दरकी ज़मीन पर मुरझी फुलवारी
मिट्टी को पूर रहे छिले
हुऐ पाँव
--
जिस दिन तुम्हारे हिस्से वक़्त ही वक़्त होगा,
तुम जानोगे अकेलापन क्या होता है !
इस अकेलेपन के जिम्मेदार
जाने अनजाने हम खुद ही होते हैं ...
कितने सारे कॉल,
कितनी सारी पुकार को हम नहीं सुनते
अपने अपने स्पेस के लिए
बढ़ते जाते हैं उन लम्हों के साथ
जिनका होना, नहीं होना
कोई मायने नहीं रखता ...
*****
उजली धूप सी हँसी के साथ
मानो कह रहा हो..
गुजर जाऊँ मैं वो हस्ती नहीं
तह दर तह सिमटा युगों से
मैं तो यहीं- कहीं
*****
*
ख्वाब
एक
निराधार
बेल की तरह,
बेलगाम
ख्याल की तरह ,
असहाय डोलती
कल्पना है ,
*****
बिना बरसात भी
मैं भीगती रहती हूँ
मन से आये दिन ल्गातारजब देखती हूँ
छोटी-छोटी आँखों को झुर्रियों का भार
उठाकर दो निवालों का इंतजाम करते हुए
सन्नाटे की आगोश में सिसकते उन बच्चों को
देख जिनके विरोध के
बिना भी दिया जाता है नशा और जब वे हो जाते हैं
*****
*****
वो पक्के रंग वाला लड़का
गोरा होना उसके बस में न था कभी
बस अपने रंग में ढल जाना
खुद को बुरा न मानकर
बस खुद को अपनाना
ही था उसके बस में।
और फिर
उसने किसी गोरे को गोरा कहकर
नीचा नहीं दिखाया
पर उसका रंग
जाने क्यों गोरे लोगों को कमतर लगता ?
*****
गोरा होना उसके बस में न था कभी
बस अपने रंग में ढल जाना
खुद को बुरा न मानकर
बस खुद को अपनाना
ही था उसके बस में।
और फिर
उसने किसी गोरे को गोरा कहकर
नीचा नहीं दिखाया
पर उसका रंग
जाने क्यों गोरे लोगों को कमतर लगता ?
*****
समय
इस समय भले ही सबके पास खूब है
मगर सबके दिल-दिमाग-मन एकसमान स्थिति में स्थिर
नहीं हैं.
सभी के सामने आजीविका को लेकर, रोजगार को लेकर,
परिवार को लेकर,
भरण-पोषण को लेकर लगातार संघर्ष की,
मंथन की स्थिति बनी हुई है.
*****
वह गिलहरी,
जो फुदकती रहती थी
पेड़ पर दिनभर,
कहीं चली गई है,
बूढ़ा लगने लगा है पेड़
उसके इंतज़ार में.
--
इस वर्षा का भी क्या आना
उमस बढ़ा कर चली गई
तपते तन पर पड़ती छींटे
देख धरा फिर छली गई।।
*****
बंजर धरती किसे पुकारे
सूखी खेतों की हरियाली
भ्रमर हो गए सन्यासी सब
आज कली को तरसे डाली
श्वास श्वास को प्राण तरसते
मृत्यु सभी पल टली गई।।
*****
कृष्ण कमल फूल देखा है आपने? राखी फूल या कौरव-पांडव फूल तो देखा ही होगा।
इस बेल पर ढेर सारे फूल झुमकों
की तरह यहां-वहां लटके रहते हैं।
इसीलिए इसका एक नाम झुमका लता भी है।
राखी
फूल इसलिए क्योंकि पहले जमाने में ऐसी ही बड़ी-बड़ी राखियाँ मिलती थीं।
इस फूल के लिए कहा जाता है कि इसमें महाभारत काल के सम्पूर्ण महत्वपूर्ण पात्र
समाहित हैं।
*****
कोई रोकने वाला था नहीं क्योकि यहाँ किसी का कोई इंटिरियर प्रभावित होने
वाला नहीं था।
मैं सब्जेक्ट का चयन करने लगी, कभी लगा बड़े बड़े सूरजमुखी के
फूल बनाऊँ, कभी सोचा बड़े पेड़, कभी डूडल तो कभी ट्राइबल आर्ट का सोचा ।
अंत
में सोचा कि बुद्ध का चेहरा बनाती हूँ जिनकी शिक्षाओं का मैं अनुसरण करती
हूँ ।
फिर से कुछ दिन यूँ ही निकल गये ये सोचते हुए कि एक न एक दिन मैं
अपनी हाइट से बड़ी पेंटिंग जरुर बनाऊँगी।
*****
मुक्तक ,
हल्दी घाटी के वीरों को
गलवान घाटी पर छेडा़ तुमने
सारे समझौतें को संबंधों को सीमाओं को जो तोडा़ तुमने
मुक्तक ,
हल्दी घाटी के वीरों को
गलवान घाटी पर छेडा़ तुमने
सारे समझौतें को संबंधों को सीमाओं को जो तोडा़ तुमने
हमे निहत्था जान झुंड बना जो घात लगाकर घेरा तुमने
तबाही का बर्बादी का और मौत का तांडव देख लिया
जो हल्दी घाटी के वीरों को गलवान घाटी पर छेडा़ तुमने
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
उपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आरणीय रविन्द्र सिंह यादव जी।
सुन्दर चर्चा.मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचनाएँ।
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक.... मेरी रचना को स्थान देने के लिये शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति सर ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सुन्दर लिंकों से सजी चर्चा प्रस्तुति । मेरी रचना को मंच की चर्चा में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा 👌🏻👌🏻
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार आदरणीय 🙏🙏🙏
बहुत ही सुंदर चर्चा प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारो को हार्दिक बधाई .
सादर
सुन्दर लिंक बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को यहा स्थान दिया आपने बहुत बहुत आभार आपका
जवाब देंहटाएं