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शनिवार, जुलाई 11, 2020

'बुद्धिजीवी' (चर्चा अंक- 3759)

शीर्षक पंक्ति : आदरणीया श्वेता जी की रचना से 
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स्नेहिल अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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बुद्धिजीवी किसे कहते हैं? मतलब की सही दिशा में सही कार्य करने की क्षमता रखने वाला ऐसा व्यक्ति जो सही गलत को पहचान सके और ऐसा कार्य करें जो देश के हित में और समाज के हित में हो। 

ऐसा व्यक्ति बुद्धिजीवी कहलाएगा जो अपने विचारों से अपना जीवन यापन करें और साथ ही साथ समाज और देश के बारे में भी अच्छा सोच.उसके विचार हमेशा अच्छे हो। सही दिशा में हो। सकारात्मक हो। बुद्धिजीवी व्यक्ति हमेशा दूसरों की गलती को देखकर जो सीखना जानता हो। जिसकी बुद्धि इस प्रकार कार्य करें कि वह खुद का भला तो करें ही करें साथ ही साथ अपने से जुड़े हुए लोगों का भी भला कर सके। 
 प्रो. एस.एस. राघवाचार्य कहते हैं- “बुद्ध के जीवनकाल से पहले का समय भारतीय इतिहास का सर्वाधिक अंधकारमय युग था। चिन्तन की दृष्टि से यह पिछड़ा हुआ युग था। उस समय का विचार धर्म-ग्रंथों के प्रति अंधभक्ति से बंधा हुआ था। नैतिकता की दृष्टि से भी यह अंधकारपूर्ण युग था। हिन्दुओं के लिये नैतिकता का अर्थ था धर्म-ग्रंथों के अनुसार यज्ञ आदि धार्मिक अनुष्ठानों को ठीक ठीक करना।  स्व-त्याग या चित्त की पवित्रता आदि जैसे यथार्थ नैतिक विचारों को उस समय के नैतिक चिंतन में कोई उपयुक्त स्थान प्राप्त नहीं था।”

आइए पढ़ते है मेरी पसंद की रचनाओं के कुछ लिंक।

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बालकविता 
"पर्वत से बह निकले धारे
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

उच्चारण 
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My Photo
एक तेरे बिन नहीं मिलता जगत से प्यार है ,
काम से सब प्यार‌ करते यह जगत व्यवहार है;
काम बिन कैसे गुजारा, पेट सबका मांगता,
ताप-सर्दी से बचें, तन पर वसन मन मांगता ;
धूप बारिश रात का तम सह सके छत चाहिए,
नार घर की रह सके, एक कोठरी भी चाहिए ;
हो सके सब का गुजारा, न्याय ऐसा कीजिए,
न रहे बेकार कोई काम सबको दीजिए  ।
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कवि वहाँ भी दृष्टि कर देते हैं ईश्वर के प्रतिनिधि बनकर काया पलट भी कर देते हैं ..! 
कभी प्रकृति का मानवीकरण करके संवेदनशील बना देते हैं..!!
कभी मानव तन को मशीन की संज्ञा देकर ... 
बेजान भी उसको कह देते हैं मानव मन को झकझोर कर कभी.. 
चेतना उसमें भर देते हैं ।।
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कुछ भी तो नहीं.. 

इन दिनों बार-बार महसूस होता है 
कि केवल फ़ोटो खींचने और अपनी फ़ोटो 
खिंचवाने के सिवाय और क्या कर रही हूँ?
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विवश हैं ...  
चाहकर भी
गा नहीं सकते प्रेम गीत,
अपने द्वारा रचे गये
 आभा-मंडल के
 वलय से बाहर निकलने पर
निस्तेज हो जाने से
भयभीत भी शायद...।
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इतनी-सी बात इतनी-सी फ़िक्र 

My Photo

दो चार फ़िक्र हैं जीवन के   
मिले गर कोई राह, चले जाओ   
बेफ़िक्री लौटा लाओ   
कह तो दिया कि दूर जाओ   
निदान के लिए सपने न देखो   
राह पर बढ़ो, बढ़ते चले जाओ   
वहाँ तक जहाँ पृथ्वी का अंत है   
वहाँ तक जहाँ कोई दुष्ट है या संत है 
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पानी पीकर जी कुछ शांत हो गया था ! 
पंखे की हवा से कुछ शान्ति मिल गयी थी ! 
उसने उठने का उपक्रम किया ! 
लेकिन तभी राम सिंग ने उसे रोक लिया,
“अभी रुक जाओ थोड़ी देर ! 
घंटा दो घंटा आराम कर लो फिर चले जाना धूप भी उतर जायेगी तब तक !’”
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शून्य से शतक तक 
(एक संस्मरण) 
गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर
 आदरणीय गुरदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी द्वारा "कुण्डलीयाँ शतकवीर कलम की 
सुगंध सम्मान 2020" पाना मेरे लिए किसी 
स्वप्नपुर्ति से कम नही। लगभग एक वर्ष पूर्व जब "ये दोहे गूँजते से " 
साझा संग्रह के निमित्त मेरा गुरुदेव से परिचय हुआ
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मुर्गा बाँग लगाता है 

दड़बे का वह राजा होता , सब पर हुकुम चलाता है।
कोई चूजा आँख दिखाये , उस पर रौब जमता है।।
सुबह शाम अपने डेरे का , फेरा रोज लगाता है।
जागो प्यारे आँखे खोलो , मुर्गा बाँग लगाता है।।
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ज़ुबान 

नेताओं के प्रशिक्षण का विभाग होगा क्योंकि राजनीति को भी बदलना चाहिये।
 आज हमारे देश पर नब्बे प्रतिशत नेता अज्ञान में शासन करते हैं और अधिकतर धन उन्हीं के हाथ में हो तो देश कभी प्रगति नहीं  करेगा।
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बलवान बना जब काल खड़ा,

तब धीरज से हर काम करें।

जब संकट से तन जूझ रहा,

हरि नाम जपो प्रभु पीर हरें।

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शब्द-सृजन-29 का विषय है- 
'प्रश्न'
आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं-5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form )  के ज़रिये हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ आगामी रविवारीय अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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आज सफ़र यहीं  तक 
कल फिर मिलेंगे।
-अनीता सैनी
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13 टिप्‍पणियां:

  1. 'बुद्धिजीवी' बहुत सुंदर भूमिका है अनु।
    बुद्धिजीवी मार्गदर्शक होते है इनके विचारों का महत्व होता है क्योंकि ये परिस्थितियों का रचनात्मक विश्लेषण करते हैं समाज को दृष्टिकोण देते हैं परंतु आज ऐसे बुद्धिजीवियो़ की संख्या में वृद्धि हुई है जो अपने ज्ञान के अहंकार में दूसरों के विचारों एवं भावनाओं को महत्व नहीं देते है निकृष्ट समझते हैं।
    सराहनीय सूत्रों से सजा बेहतरीन अंक।
    मेरी रचना को विशेष मान देने के लिए बहुत बहुत आभार।
    सस्नेह शुक्रिया अनु।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार सखी 🌹

    जवाब देंहटाएं
  3. आभार,उस दिन सोकर उठी तो शब्द आ रहे थे " हे कर्म
    आनन्द दाता" कर्म ही सृष्टि का आधार है और आज बेकारी तक तोड़ चुकी, इसलिए कुछ शब्द लिखे गए, लेकिन ये मंच पर स्थान पा जायेंगे इसकी कल्पना नहीं थी, खुश हूं कि सभी को पसंद आई, सभी रचनाएं बहुत ही सुन्दर, अनजान कलमकारों को जानना ही कलमकार के लिए सुखद अनुभूति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बुद्धिजीवियों की सुंदर भूमिका के साथ रोचक लिंक्स का संकलन। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर और प्रेरणात्मक भूमिका के साथ सुंदर लिंको का चयन प्रिय अनीता,
    सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  6. हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! मेरी कहानी 'शरणागत' को आपने आज के मंच पर स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर भूमिका सभी लिंक एक से बढ़कर एक सभी रचनाकारों को अभिवादन

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर भूमिका के साथ अच्छी चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार अनीता सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति,
    स्थान देने के लिए हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. सराहनीय चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  11. सभी की रचनाएँ बहुत सुंदर है।
    बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ ।

    मेरी रचना "मुर्गा बाँग लगाता है" को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं ह्रदय से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुन्दर लिंक्स चयन एक प्रभावी भूमिका के साथ । अत्यन्त सुन्दर और लाजवाब प्रस्तुति ।


    जवाब देंहटाएं
  13. सुंदर भूमिका , बुद्धिजीवी कभी समाज के संतुलित विकास का आधार मानें जाते थे ,पर आज बुद्धिजीवियों के अलग ही अंदाज है मिजाज है।
    सुंदर लिंको से सजी सुंदर प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।

    जवाब देंहटाएं

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