सादर अभिवादन।
शनिवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
शनिवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
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छलमय प्रश्नोत्तर के जाल में ही रचा जाता है शोषण का चक्रव्यूह। सभ्यता के विकास का इतिहास शोषण की क्रूरतम कथाओं से भरा पड़ा है। समय के साथ बहुत कुछ बदला किंतु शोषण का चक्रव्यूह कमज़ोर नहीं पड़ा बल्कि नए-नए रूप में और अधिक मज़बूत हो चुका है जहाँ मानवीय मूल्य छिटके पड़े दिखाई देते हैं।
कविवर मुक्तिबोध शोषण पर ध्यान केन्द्रित करते हुए कहते हैं-
"छलमय.....
‘‘सारे प्रश्न छलमय
और उत्तर और भी छलमय....
समस्या एक
मेरे सभ्य नगरों और ग्रामों में
सभी मानव सुखी, सुंदर व शोषण-मुक्त कब होंगे”
आइए पढ़ते है मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ -
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आइए पढ़ते है मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ -
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"श्रावण शुक्ला पंचमी"
नागपंचमी आज भी, श्रद्धा का आधार।
श्रावण शुक्ला पंचमी, बहुत खास त्यौहार।।
श्रावण शुक्ला पंचमी, बहुत खास त्यौहार।
नाग पंचमी आज भी, श्रद्धा का आधार।।
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हरियाली तीज !
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हरियाली तीज !
सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत काफी मायने रखता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों तरफ हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। रिमझिम फुहारों के बीच तन-मन जैसे नृत्य करने लगता है। महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और खुशियां मनाती हैं। इस उत्सव में हर उम्र की महिलायें और लडकियाँ शामिल होती है। नव विवाहित युवतियां प्रथम सावन में मायके आकर इस हरियाली तीज में सम्मिलित होने की परम्परा है।
हरे मग शैल्फ़ पर जो ऊंघते हैं ...
उदासी से घिरी तन्हा छते हैं
कई किस्से यहाँ के घूरते हैं
परिंदों के परों पर घूमते हैं
हम अपने घर को अकसर ढूँढ़ते हैं
नहीं है इश्क पतझड़ तो यहाँ क्यों
सभी के दिल हमेशा टूटते हैं
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माटी की देह से उठती मादक गंध ,
सूर्योदय के साथ दे रही है संदेशा ।
प्रकृति की देहरी पर पावस ने पांव रख दिये हैं ।।
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#कविता - चलो एक शहर बसायें
जंगले पर कुछ फैन्सी गमले रख दे,
चलो एक शहर बसायें।
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बालकविता
"हरियाली तीज"
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पाटकर गढ़हा एक मैदान बनाए,
खनकर मैदान को नाली बहा दे,
पेड़ पौधों को काटकर,खनकर मैदान को नाली बहा दे,
जंगले पर कुछ फैन्सी गमले रख दे,
चलो एक शहर बसायें।
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बालकविता
"हरियाली तीज"
अब हरियाली तीज आ रही,
मम्मी मैं झूलूँगी झूला।
देख फुहारों को बारिश की,
मेरा मन खुशियों से फूला।।
निषिद्ध है
डाँट और मार फटकार नहीं सकते हैं,
बालकों पे अत्याचार करना निषिद्ध है।
प्रेम और पुचकार नीयत के प्रश्न बन्धु,
गोद में उठा के प्यार करना निषिद्ध है।
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वसिष्ठ और राम
वे बच्चे
करते हैं कोशिश हटाने की
पत्तों के बीच थिरकती किरणों से खेल
बनना नहीं चाहती वह नाव
उसे ला दो समुन्दर
वह घुल जाये बह जाये उसी में
हवा आती है गुजर जाती है
जैसे दूसरे देश का वासी
जैसे परछाईयाँ तेज बादल की
घाटी पर रुकती नहीं चली जाती हैं !
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रामजी राय का आलेख
कल्पना का ही अपार समुद्र यह
गरजता है घेर कर तनु रूद्र यह
कुछ नहीं आता समझ में
कहां है श्यामल किनारा
प्रिय मुझे वह चेतना दो देह की
याद जिससे रहे वंचित गेह की
खोजता-फिरता न पाता
हुआ मेरा हृदय हारा
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मैं यहीं हूँ, कहाँ जाऊँगा,
लाख ठोकरें
हज़ार पत्थर
दुत्कार दिया जाऊँगा,
पर बदहवास प्रेम हूँ
कहीं न कहीं
ज़हन में रह ही जाऊँगा...
मैं यहीं हूँ
कहाँ जाऊँगा...
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कल फिर मिलेंगे।
-अनीता सैनी
गांव में पहली बार दो तल्ले का घर तैयार हुआ. झोपड़ियों वाले गांव में पहली बार ईंट-गारा का पक्का मकान देखकर लोग हैरान रह गए. जब घर बन रहा था तब सुबह-शाम लोग यह देखने आते कि कैसे घर तैयार किया जाता है. जब घर बन गया तो ढींगुर दो तल्ले पर बड़का रेडियो पर गाना गवाते. जो घर देखने आता कहता कि ढींगुर की क्या गाढ़ी कमाई है.
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बहुत प्यार करते थे
सारे बच्चे माँ से,
सबने ले लिए
उसके गहने
अपना समझकर,
किसी ने कंगन,
किसी ने हार,
किसी ने पायल,
किसी ने झुमके.
सारे बच्चे माँ से,
सबने ले लिए
उसके गहने
अपना समझकर,
किसी ने कंगन,
किसी ने हार,
किसी ने पायल,
किसी ने झुमके.
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बचपन के वे दिन
भुलाए नहीं भूलते
जब छोटी छोटी बातों को
दिल से लगा लेते थे |
रूठने मनाने का सिलसिला
चलता रहता था कुछ देर
समय बहुत कम होता था
इस फिजूल के कार्य के लिए |
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आज मौसम का रूख़ जब उसे समझ आया
हाँ! मौसम की ये फितरत
ना समझ पाती थी....
उसकी खुशियों के खातिर
कुछ भी कर जाती थी
उसकी गर्मी और सर्दी में
खुद को उलझाया....
आज मौसम का रुख
जब उसे समझ आया.....
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लघुकथा- सस्ते वाले कपड़े
लघुकथा- सस्ते वाले कपड़े
''नहीं, मैं सस्ते वाला नहीं लुंगा। मैं तो यहीं पैंट खरीदूंगा।''
शिल्पा को पति के लिए भी नाइट पैंट खरीदनी थी। उसने बेटे से कहा, ''तेरे पापा के लिए भी नाइट पैंट देख लेते हैं।'' इतना कह कर वो नाइट पैंट देखने लगी।
''मम्मी, पापा तो सस्ते वाले कपड़े खरीदते हैं न! फ़िर आप उनके लिए ब्रांडेड पैंट क्यों देख रहीं है?''
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फूलों को रहने देना, काँटे बुहार लेना।
जीवन के रास्तों को, ढंग से निखार लेना।
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सावन की घन-घटाएँ, बरसे बिना न रहतीं,
बारिश की मार से तुम, मन को न हार देना
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शब्द-सृजन-31 का विषय है-
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शब्द-सृजन-31 का विषय है-
'पावस ऋतु'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार(सायं 5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर
संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवारीय अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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आज सफ़र यहीं तक कल फिर मिलेंगे।
-अनीता सैनी
सभी मानव सुखी, सुंदर व शोषण-मुक्त कब होंगे”
जवाब देंहटाएंलोक कल्याण की भावना से सजी भूमिका के साथ सुन्दर लिंक्स संयोजन ।चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने हेतु आपका हार्दिक आभार ।
सुन्दर लिंक्स.मेरी कविता शामिल करने के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तार से आज की चर्चा
जवाब देंहटाएंआभार मेरी गज़ल को जगह देने के लिए ...
अनिता दी,सुंदर भूमिका से सजी उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा प्रस्तुति उम्दा लिंको से सजी...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।
उपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।