मेरी पसन्द के कुछ चयनित लिंक...
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पर्यावरण सप्ताह के अन्तर्गत
देखिए कुछ दोहे
‘‘जहरीला खाना हुआ, जहरीला है नीर।
देश और परिवेश की
हालत है गंभीर।।
पेड़ काटता जा रहा, धरती का इंसान।
इसीलिए आने लगे, चक्रवात तूफान।।
कैसे रक्खें
संतुलन, थमता नहीं उबाल।
पापी मन इंसान का, करता बहुत बवाल।।’’
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"हरेला का त्यौहार"हरेला मुख्यतः सावन मास के प्रथम दिन मनाया जाता है। यह देवभूमि उत्तराखण्ड का प्रमुख त्यौहार है। जिसका सम्बन्ध हरियाली से है और धरा पर हरियाली पेड़-पौधों से आती है। हरेला अर्थात्- हमारी भूमि शस्य श्यामला रहे यह तब ही होगी जब हम पेड़ पौधों का संरक्षण करेंगे और नये-नये पौधे लगायेंगे। वृक्षारोपण के लिए बरसात का मौसम सबसे उपयुक्त होता है, विशेषतया सावन मास। इसीलिए उत्तराखण्ड में हरेला धूम-धाम से मनाया जाता है। हरेला पर्व पर घर में हरेला पूजा जाता है और एक-एक पेड़ या पौधा अनिवार्य रुप से लगाया जाता है। यह भी मान्यता है कि इस पर्व पर किसी भी पेड़ की टहनी को मिट्टी में रोपित कर दिया जाय। पांच दिन बाद उसमें जड़े निकल आती हैं और इस पेड़ के हमेशा जीवित रहने की कामना की जाती है। |
...नगरपालिका चुनाव में उसका वार्ड महिलाओं के लिए सुरक्षित सीट वाला था ।
वो साक्षर थी “अवसर“ मिल रहा था और वो अवसर चूकने वालों में से नही थी ।
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आला किरदार
मेरा सृजन पर
Onkar Singh 'Vivek'
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गजलअहसासों की - पहली कडी
चांद की तरह वो अक्सर, बदल जाते हैं।
मतलब अली काम होते निकल जाते हैं॥
स्वाद रिश्तों का कडवा, कहीं हो जाय ना
छोटे मोटे से कंकड, यूं ही निगल जाते है
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किसान की मुस्कान
नन्ही -नन्ही बूंदों ने
जब अपना राग सुनाया
व्याकुल किसान की व्याकुलता को ,
हुलसाया हर्षाया..
अरुणा
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आप बड़े 'वो' हैं ...
एक बार पति ने कहा अपनी
पत्नी से खीझ कर,
अपनी प्यारी पर खीझ कर ,
थोड़ा पसीज कर।
ओ श्रीमती जी ! अब ना कहना
मीठी बातें प्लीज़
सुन-सुन कर तेरी बातें ,
हो ना जाए डायबिटीज।
Subodh Sinha
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मुंडी न मटके और काम भी हो जाए
कुछ लोग नमस्कार करते समय अपनी गर्दन, सिर को इतना ही हिलाते हैं कि बस उसके मन को मालूम चलता है कि नमस्कार की गई। बेचारी गर्दन और बेचारे सिर को तो पता ही नहीं चल पाता कि उनके मालिक ने किसी को नमस्कार करने में उनका दुरुपयोग कर लिया। जिसको नमस्कार की गई उसकी जानकारी की बस कल्पना करिए।
| बिना दस्तक
कुछ ख़्वाहिशों की ज़मीं होती
हैं वृष्टि छाया की तरह बंजर, उम्र ढल जाती है सिर्फ़ बादलों को निहार कर
Shantanu Sanya
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साधारण होना...
रोटी-दाल,
चावल-सब्जी से इतर
थाली में परोसी गयी
पनीर या खीर देख
खुश हो जाना,
बहुत साधारण बात होती है शायद...
भरपेट मनपसंद भोजन और
आरामदायक बिस्तर पर
चैन से रातभर सो पाने की इच्छा...
मन के पाखी पर Sweta sinha
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भारत यही कर रहा है... चीन की रीढ़ पर भारत अपने हिस्से का प्रहार कर रहा है... बाकी विश्व अपने हिस्से का करेगा।
नमन है देश के प्रधान सेवक और हमारी सेना को....वंदेमातरम् |
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कभी देखा है
वृक्ष को अपने में
सिमट कर रहते ?
वृक्ष की जड़ें
मिट्टी में जगह
बनाती जाती हैं ।
वृक्ष की शाखाएं
बाहें पसारे
झूला झूलती हैं,
पल्लवित होती हैं ।
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इक पुरानी रुकी घड़ी हो क्या ...
यूँ ही मुझको सता रही हो क्या
तुम कहीं रूठकर चली हो क्या
मुझसे औलाद पूछती है अब
इक पुरानी रुकी घड़ी हो क्या
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सफेदपोशों के साथआँख मिचौनी के खेल मेंसेवानिवृत्त सैनिकों कोतृष्णा में है उतारासरहद से थकेहारों कीधूमिल करती छविक्लेश की कालिख पोतते वर्दी पर यह रवि। |
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किताबों की दुनिया -206 /2
गुलाम अब्बास' जिस गांव में रहते थे वहाँ रहते हुए शायरी की दुनिया में आगे बढ़ने के रास्ते कम थे लेकिन घर की मज़बूरियों की वजह से उनका लाहौर जाने का सपना पूरा नहीं हो पा रहा था। कोई उन्हें राह दिखाने वाला नहीं था। बड़ा भाई वहीँ के एक स्कूल में पढ़ाया करता था उसी की शिफारिश पर गुलाम अब्बास भी स्कूल में पढ़ाने लगे। ये नौकरी उन्हें बहुत दिनों तक रास नहीं आयी। दिल में अच्छा शायर बनने और अपना मुस्तकबिल संवारने की ललक आखिर अक्टूबर 1981 में उन्हें उनके सपनों के शहर लाहौर में ले आयी. 'रोजनामा जंग' अखबार में उन्हें 700 रु महीने की तनख्वा पर प्रूफ रीडर की नौकरी मिल गयी। नौकरी और शायरी दोनों साथ साथ चलने लगी। नया शहर, नए लोग, नए कायदे मुश्किलें पैदा करने लगे और गाँव की सादा ज़िन्दगी ,घर का सुकून उन्हें बार बार लौटने को उकसाने लगा। लेकिन गुलाम अब्बास आँखों में सपने लिए मज़बूत इरादों से लाहौर आये थे इस लिए डटे रहे। मुश्किलों ने उनकी शायरी को पुख्ता किया...
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हर कदम पर कौन हमसे पूछता है
श्रेय का या प्रेय का तुम मार्ग लोगे,
बेखुदी में आँख मूँदे हम सदा ही
प्रेय के पथ पर कदम रखते रहे हैं !
चन्द कदमों तक हैं राहें अति कोमल
फूल खिलते और निर्झर भी बिखरते,
किन्तु आगे राह टेढ़ी है कँटीली
दिल हुए आहत जहाँ रोते रहे हैं !
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मन अकुलाए,जिया घबराएसुषमा सिंह
मन अकुलाए, जिया घबराये
घिर आये बदरा, पिया नहीं आये
श्रीसाहित्य पर Sriram |
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शब्द-सृजन-29 का विषय है-
'प्रश्न' आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं-5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ
आगामी रविवारीय अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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बूढ़ा होता है नहीं,
कभी समर में वीर। तरकश में होते भरे, उसके अगणित तीर।। (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आज के लिए बस इतना ही...। फिर मिलेंगे अगले बुधवार....। -- |
नये कलेवर में सुंदर प्रस्तुति , सादर नमन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए साधुवाद सर सभी रचनाएं बेहतरीन
जवाब देंहटाएंनमन
वाह!आदरणीय सर मेहनत से सजाई है आज की सराहनीय प्रस्तुति.सयानी सियासत को स्थान देने हेतु सादर आभार.सभी रचनाकारो को हार्दिक बधाई .
जवाब देंहटाएंआप लगातार हमारी पोस्ट को स्थान दे रहे हैं, यह हमारे लिए खुशी की बात है।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट एक तरह के एग्रीगेटर का काम करती है।
बहुत ही बेहतरीन लिंकों से सजी ,नए रूप रंग में सुंदर प्रस्तुति सर,आपकी रचनात्मकता हमें भी प्रोत्साहित करती हैं ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंनये रंग रुप मे सजी सुन्दर प्रस्तुति । आपकी रचनात्मकता और श्रमशीलता को नमन ।
जवाब देंहटाएंअपने में क्या रहना ? .....को आज की चर्चा में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार, शास्त्रीजी.
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा में बहुत दिलचस्प विषयों पर लिखी रचनाएं पढने को मिलीं.रूप-रंग भी नया है.
हरेला के बारे में जान कर अच्छा लगा. किताबों की दुनिया में अब्बास ताबिश पर लेख बहुत अलग और ख़ास लगा.
श्वेताजी, जी का साधारण असाधारण का काव्यात्मक विश्लेषण सारगर्भित है.ओंकारजी की सरल शब्दों में कही बड़ी बात कचोटती है.सोचने को मजबूर करती है.सोचना क्या करना है.
सुन्दर सज्जा ब्लॉग की ...
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलन आज की पोस्ट का ... आभार मुझे शामिल करने करने के लिए ...
सुंदर सज्जा प्रतीत हो रही है. साथी रचनाकारों को बहुत बधाई �� मेरी कृति को स्थान देने हेतु आभार!
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