स्नेहिल अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
"महादेव का पवित्र महीना" सावन शुरू हो चुका हैं...
पुरे महीने "बोल-बम" की जयकार होती रहेंगी....
हर मन भक्ति -भाव में डूबा रहेंगा....
सावन शुरू होने से पहले पूर्णिमा के दिन को
"गुरुपर्व" के रूप में मनाया जाता हैं जो हमें ये समझाता हैं
कि "महादेव की पूजा से भी पहले हमें गुरु की पूजा करनी चाहिए...
"गुरु" माता-पिता ,शिक्षक या आराध्य किसी भी रूप में हमारा मार्गदर्शन ही करते हैं...
गुरु ही वो एक मात्र माध्यम हैं जो हमें
"गोविन्द"तक पहुंचने का मार्ग दर्शाता हैं...
तो आईये, अपने गुरु को नमन करते हुए....
आज का विशेष अंक "गुरुदेव" को समर्पित करते हैं...
सभी प्रबुद्ध रचनाकारों ने अपने-अपने मन के भावों को
बहुत ही सुंदर शब्दों में पिरोया हैं...
आरम्भ करते हैं,हमारे ब्लॉगजगत के "गुरु आदरणीय शास्त्री सर"
की रचना से, जो तत्कालीन परिवेश में
हमें जीने की सही राह दिखा रही हैं....
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अतुकान्त
"जीना पड़ेगा कोरोना के साथ"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मुखपट्टी लगाकर
सामाजिक दूरी बनाकर
स्वच्छता के साथ
और धोना है
हर घण्टे साबुन से हाथ।
अब तो जीना सीखना है हमें
कोरोना के साथ।
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भारतीय साहित्य के आदि गुरु, आदि संपादक एवं अद्वितीय
साहित्यकार जिन्होंने दुनिया के प्राचीनतम
और अमर साहित्य वेदों का उपहार इस मानव संतति को दिया,
महर्षि वेद व्यास के नाम से विख्यात कृष्ण द्वैपायन को
आज उनकी जन्मतिथि आषाढ़ पूर्णिमा
(गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा) के अवसर पर शत शत नमन
और समस्त प्राणियों को बधाई एवं शुभकामना!!!
(आदरणीय विश्वमोहन जी की रचना से )
एक छोटे से आलेख में महर्षि वेदव्यास का इस देश की
सभ्यता को योगदान बता पाना संभव नहीं।
पर इसका कोई विकल्प भी
तो हमारे पास नहीं। व्यास को हम सामान्य तौर पर
महाभारतकर्ता के रूप में जानते हैं, जो ठीक ही है।
पर यकीनन व्यास के बारे में इतनी जानकारी बेहद अधूरी है।
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सह्जों ने नित गुरुगुण गाया ,
मीरा ने गोविन्द को पाया ,
रत्नाकर बन गये बाल्मीकि
गुरुकृपा का था ये कमाल गुरुवर !
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माँ शारद से पहले वंदन
करती हूं मैं गुरु चरणों में।
क्या लिख पाऊं महिमा उनकी
निशब्द मूक चंद वरणों में।
अपने अनुगामी के हित को
कहने से जो कभी न डरते।।
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माँ की ममता की कोई सानी नहीं
हमारी भलाई किसी ने जानी नहीं
केवल माँ ने ही हाथ आगे बढाए
जैसी भी हूँ मुझे थामने के लिए
प्रथम गुरू माँ को मेरा प्रणाम
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हम शीश नवाते हैं निशदिन
गुरु जी तुम्हारे चरणों में।।
विश्वास है मन में मिलेगा सदा,
आशीष तुम्हारे चरणों में।।
गुरु जी तुम्हारे चरणों में।।
विश्वास है मन में मिलेगा सदा,
आशीष तुम्हारे चरणों में।।
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गुरू प्राकट्य सूर्य समान
अंधकार अंतर का मिटाए,
मनहर चाँद पूर्णिमा का है
सौम्य भाव हृदय में जगाए !
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अनगढ़ माटी के घड़े,उत्तम देते ढाल ,
नींव दिये संस्कार की ,नैतिक होगा काल।
पहले गुरु माता पिता,दूजा ये संसार।
सद्गुरु का जो साथ हो,जीवन धन्य अपार।
गुरु चरणों की वन्दना, करते बारम्बार।
अर्पित कर श्रद्धा सुमन,हर्षित हुये अपार।
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गुरु के महात्मय को समझने के लिए ही प्रतिवर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। गुरू पूर्णिमा कब से शुरू हुई यह कहना मुश्किल है, लेकिन गुरू पूजन की यह परंपरा आदिकाल से चली आ रही है क्योंकि उपनिषदों में भी ऐसा माना गया है कि आत्मस्वरुप का ज्ञान पाने के अपने कर्त्तव्य की याद दिलाने वाला, मन को दैवी गुणों से विभूषित करनेवाला, गुरु के प्रेम और उससे प्राप्त ज्ञान की गंगा में बार बार डुबकी लगाने हेतु प्रोत्साहन देनेवाला जो पर्व है – वही है ‘गुरु पूर्णिमा’ ।
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गुरु पूर्णिमा प्रत्येक साधक के लिए एक विशेष दिन है. अतीत में जितने भी गुरू हुए, जो वर्तमान में हैं और जो भविष्य में होंगे, उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन ! माता शिशु की पहली गुरू होती है. जीविका अर्जन हेतु शिक्षा प्राप्त करने तक शिक्षक गण उसके गुरु होते हैं,
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गुरु वंदना
गुरुवर तुम्ही बता दो,किसके शरण में जाये
किसके चरण में गिरकर ,मन की व्यथा सुनाये
गुरुवर तुम्ही बता दो-----
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शब्द-सृजन-29 का विषय है-
'प्रश्न'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार
(सायं-5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म
(Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ
'प्रश्न'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार
(सायं-5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म
(Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ
आगामी रविवारीय अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
मंच पर बहुत सुंदर और विविधताओं से भरी प्रस्तुति है, कामनी जी आपके श्रम को प्रणाम।
जवाब देंहटाएं***
श्रावण मास के प्रथम दिन आसमान से यहाँ ख़ूब जलवर्षा हुई है। मैंने तो.सिर्फ़ इतना कहा अब तो शांत हो जाओ कोरोना !
इस सावन माह में जिस प्रकृति के पास मनुष्यों जैसे भाव-विचार व्यक्त करने की क्षमता नहीं है, वही प्रकृति बोलती ही नहीं बल्कि झूमती, इठलाती और नाचती दिखती है। इस झूमने का लाभ मनुष्य भी ले सकता है । बस मन की शुष्कता, कठोरता, ऊष्मता में *शिवाकाश* से तरलता, आर्द्रता की वर्षा करनी होगी।विकारों से आंख बंद कर अंदर देखना ही उपाय।
***
रेणु दीदी का ब्लागर्स के रूप में तीन वर्ष का सफ़र , ये सौ अनमोल सृजन और पाठकों के प्रति स्नेहभाव युक्त आभार प्रदर्शन सराहनीय है।
वे एक रचनाकार , एक कुशल टिप्पणीकार के साथ मुझे जैसे कई नये ब्लॉगर्स के लिए मार्गदर्शक भी रही हैं।ब्लॉग पर आकर मैं उनके अनेक रूपों से परिचित हुआ हूँ। सरल, निश्चल, विनम्र होने के साथ ही एक और मानवीय गुण जो हर साहित्यकार में होना चाहिए, अन्याय के विरुद्ध निजी लाभ-हानि से ऊपर उठकर शंखनाद, जो समय-समय पर उनके द्वारा ब्लॉग जगत में देखने को मिला, उससे मैं अभिभूत हूँ । शब्दों का जादूगर होना कोई मायने नहीं रखता है , जब तक संत, साहित्यकार, राजनेता अथवा कोई भी विशिष्ट पहचान रखने वाला व्यक्ति स्वयं मन से साफ़ नहीं होता है, क्योंकि ऐसे महानुभावों पर हर किसी की दृष्टि होती है, ..और हृदय से सम्मान उसे ही मिलता है जो इस परीक्षा को उत्तीर्ण कर लेता है। राजनीति से भरे इस ब्लॉग जगत में निर्विवाद रूप से वे वह नक्षत्र हैं, जो स्थिर भाव से, बिना छल-छद्म के हर किसी का मार्गदर्शन करता आ रहा है। उनकी प्रतिभा, सहृदयता और शिल्पकला को नमन।🌹
"बस मन की शुष्कता, कठोरता, ऊष्मता में *शिवाकाश* से तरलता, आर्द्रता की वर्षा करनी होगी।विकारों से आंख बंद कर अंदर देखना ही उपाय।"
हटाएंबहुत ही अच्छी बात कही आपने।
सखी रेणु की प्रतिभा, सहृदयता और शिल्पकला की तो मैं भी कायल हूँ,गुरुवर अपनी कृपा उन पर बनाये रखें।सहृदय धन्यवाद आपका
शशि भैया , ये आपका स्नेह है बस | ब्लॉग जगत में आपको भले कोई ऐसा अनुभव हुआ हो जो अच्छा ना हो , तब भी ब्लॉग जगत ने हमें बहुत कुछ दिया है | क्या पता हम कुछ दिन बाद यहाँ रहें ना रहें , सो सबके साथ स्नेह से रहें | मतभेद भले हो मनभेद ना हो | मेरा तो यही मानना है | आपके
हटाएंस्नेहिल भावों के लिए आभारी हूँ |
गुरु के गौरव-गीत से गुंजित आज की प्रस्तुति का गुरुत्व पाठकों को बरबस बाँध लेता है। कामिनी जी की संकलन- कुशलता श्लाघ्य है। बधाई!!!
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल,
हटाएंमुझे भी अपने गुरुदेव का स्मरण हो आया है। ज्ञान का प्रकाश जो मुझे लगभग तीन दशक पूर्व आश्रम जीवन से प्राप्त हुआ था । गुरुज्ञान के आलोक में मैंने पाया कि इस जगत के लौकिक संबंधों के प्रति विशेष अनुरक्ति ही भावुक मनुष्य की सबसे बड़ी दुर्बलता है ।अतः भाषा ज्ञान नहीं होने पर भी मैं गुरु चरणों की वंदना इन शब्दों के साथ करता हूँ-
गुरु कृपा से उपजे ज्योति
गुरू ज्ञान बिन पाये न मुक्ति
माया का जग और ये घरौंदा
फिर-फिर वापस न आना रे वंदे
पत्थर-सा मन जल नहीं उपजे
हिय की प्यास बुझे फिर कैसे..।"
दिल से धन्यवाद आपका,आपकी प्रतिक्रिया सदैव मनोबल बढ़ती हैं ,सादर नमस्कार
हटाएंगुरु की महिमा अपार ।गुरु की गरिमा को रख आधार ।बेहद सुखद अनुभूति देती प्रस्तुति। एक-से बढ़कर एक रचनाएँ।सभी रचनाकार बधाई के पात्र हैं।
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद सुजाता जी ,सादर नमस्कार
हटाएंसहज प्रवाह लिए हुए सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंदुनियाभर के समस्त गुरुजनों को प्रणाम।
कामिनी सिन्हा जी आपका आभार।
सहृदय धन्यवाद सर ,आपका आशीष बना रहें ,सादर नमस्कार
हटाएंगुरु गोविंद दोऊ खड़े का के लागु पाय
जवाब देंहटाएंगुरु बलिहारी आप की गोविंद दियो बताए
गुरु ही आप को तार सकता है
नमन सभी रचनाएं एक से बाद के एक
शुभकामनाए कामिनी जी
सहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमस्कार
हटाएंधन्यवाद कामिनी जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए आज के अंक में |
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आशा जी ,सादर नमस्कार
हटाएंगुरु के सम्मान में आज की विशेष प्रस्तुति सराहनीय और सुन्दर लिंकों से सुसज्जित है । सभी चयनित रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मीना जी ,सादर नमस्कार
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय कामिनी दीदी.गुरु की महिमा का बख़ान करती बहुत ही सुंदर रचनाएँ चुनी है आपने.सभी को हार्दिक बधाई .
जवाब देंहटाएंसादर
दिल से धन्यवाद अनीता ,स्नेह
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद कामिनी जी, मेरी ब्लॉगपोस्ट को अपने इस नायाब संकलन में शामिल करने के लिए आपका आभार
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अलकनन्दा जी ,सादर नमस्कार
हटाएंगुरु की महिमा को बखान करती एक से बढ़कर एक रचनाएँ ! आभार मुझे भी आज के इस विशेष अंक में शामिल करने के लिए !
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अनीता जी ,सादर नमस्कार
हटाएंबहुत खूब ! भावपूर्ण भूमिका के साथ , गुरुदेव की महिमा और अनुकम्पा को समर्पित, ह्रदय के कृतज्ञ भावों से सजी सुंदर प्रस्तुति प्रिय कामिनी | एक से बढ़कर एक रचनाएँ जो गुरु चरणों की महिमा गाती हैं और उनकी कृपा का गान रचती हैं | मेरी रचना को भी आज की चर्चा में स्थान मिला , आभारी हूँ सखी | सभी पर गुरुदेव की अनुकम्पा बनी रहे यही दुआ है | सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं और बधाई | हार्दिक स्नेह के साथ तुम्हें भी बधाई सखी |
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