सादर अभिवादन ।
शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सब का गुणीजनों का हार्दिक अभिनन्दन ।आज की चर्चा का शुभारंभ श्री गिरिजा कुमार माथुर
की कलम से निसृत रचना से करते हैं ।
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जब उलझ जाएँ मनस की गाँठें घनेरी ।
बोध की हो जाएँ सब गलियाँ अंधेरी ।।
तर्क और विवेक पर बेसूझ जाले ।
मढ़ चुके जब वैर रत परिपाटियों की अस्मि ढेरी ।।
【'नया कवि' कवितांश से साभार】
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अब बढ़ते हैं आज के चयनित सूत्रों की ओर-
तीज-हरेला दे रहे, हमको ये सन्देश।
हरियाली का देश में, बना रहे परिवेश।।
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शुद्ध हवा मिलने लगे, ऐसे करो उपाय।
कोरोना के काल में, देना पेड़ लगाय।।
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घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला बोया व काटा जाता है! इसके मूल में यह मान्यता निहित है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल बढ़िया होगी!
साथ ही प्रभू से फसल अच्छी होने की कामना भी की जाती है!
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आस की एक बूँद
विश्वास की गगरी से छलकती है
जीती है वह भी रोज थोड़ा-थोड़ा
कभी अपनों कभी दूसरों के लिए
कि बना रहे अस्तित्त्व उसका भी।
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एक अनाड़ी नाविक
उतरा नदी में
इस यक़ीन के साथ
कि पार लग जाएगा
मझधार तक पहुँचा
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ऊपर चढ़ने का मार्ग एक ही है
नीचे उतरने के मार्ग हजारों
पांडव पांच हैं, कौरव सौ
ब्रह्म एक है, जीव अनंत
विद्युत एक
उसके कार्य अनेक
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चितरंजन काका की बेचैनी बढ़ती ही जा रही है। कभी कमरे में तो कभी बारजे पर ,यही नहीं पड़ोस के दीना साहू की दुकान तक भी निकल पड़ते हैं। पर उम्र का यह कैसा विचित्र पड़ाव है कि उनके मन को कहीं शांति नहीं मिल पा रही है।
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ससुराल से बहुत दिन बाद मायके गई थी, वो मां ने पूछा कभी याद करती है तू मुझे उसने मुस्कुराकर कहा हां, कब याद करती है बता तो जरा मां ने दुबारा पूछा तब जब पहली बार रसोई में गईं थीं रस्म पूरी, करने तब तब भी उनींदी सुबह में पहले उठने का दायित्व निभाती हूं .
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एक जोड़ी आँखें
करती रहती हैं
इन्तजार
उसका जो चला गया था
छोड़ कर कभी
जिन्दगी के सफर में
बीच मझधार पर
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कई बार जब मेहमान आने वाले होते है, तब हमारे पास वक्त की कमी रहती है। ऐसे में हम सोचते है कि उस दिन जो भी व्यंजन बनाने है यदि उनके प्रीमिक्स पहले से तैयार रहे तो उस दिन उतना वक्त बचने से व्यंजन जल्दी बन जायेंगे और हमें ज्यादा थकान भी नहीं होगी।
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आदर्शो का भरी सभा चीर-हरण होता रहा,
केशव नही आये ,हां केशव अब नही आयेंगे ,
अब महाभारत में "श्री गीता" अवतरित नहीं होगी,
बस महाभारत होगा छल प्रपंचों का।।
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यहाँ मुझे निरक्षरता और भाषा की अनभिज्ञता की पीड़ा का अहसास तीव्रता से हुआ है .साथ ही अपनी भाषा के महत्त्व का भी .. क्यों अपनी भाषा मातृभाषा कहलाती है .क्योंकि वह माँ की गोद जैसी निश्चिन्तता और तृप्ति देती है .माँ की तरह हमारी बात समझती है ,औरों को समझाती है . भाषायी संवेदना मुझे सोचने मजबूर करती है कि राष्ट्रीय एकता के लिया भाषा की एकता सबसे ज्यादा जरूरी है.
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मैंने पढ़ा, सिर्फ एक किताब ताना-बाना नहीं, बल्कि एक मन को । यात्रा सिर्फ शब्द भावों के साथ नहीं होती, उस व्यक्ति विशेष के साथ भी होती है, जिसे आपने देखा हो या नहीं देखा हो । अगर शब्दों को भावों को जीना होता तो शायद मैं नहीं लिख पाती कुछ, मैंने उन पदचिन्हों को टटोला है, जिस पर पग धरने से पूर्व आदमी सिर्फ जीता ही नहीं, अनेकों बार मरता है …
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कहते हैं लोग मुझको दीया साँझ को जलाया करो
जब कि रहता घर रौशन उसके यादों के चराग़ से
अब तलक ज़ेहन में ताज़ी है वस्ल की सुहानी रात
कभी हिज्र में भी हुईं ना रुख़्सत वो यादें दिमाग़ से ।
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शब्द-सृजन-30 का विषय है-
प्रार्थना /आराधना
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार
(सायं-5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म
(Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवारीय अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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आपका दिन शुभ हो,फिर मिलेंगे…
🙏🙏
"मीना भारद्वाज"
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स्वार्थ मनुष्य की संवेदनाओं पर जिस तरह से निरंतर भारी पड़ते जा रहा है,ऐसे में मानव की कुछ ऐसी ही मनोदशा दशा है। सुंदर भूमिका और प्रस्तुति है।
जवाब देंहटाएंअब तो सिर्फ़ एक ही प्रश्न है-कौन थकान हरे जीवन की...?
मेरी रचना " अवलंबन " को मंच पर स्थान देने के लिए हृदय से आपका आभार मीना दीदी जी।
समय लगाकर मन से की गई सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
मेरी रचना " मायका " को मंच पर स्थान देने के लिए हृदय से आपका आभार मीना जी। सभी रचनाकारों को अभिवादन
जवाब देंहटाएंअनेक पठनीय रचनाओं की खबर देते सूत्रों से सजा चर्चा मंच, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय मीना दीदी.बहुत ही सुंदर रचनाएँ चुनी है आपने.मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार.सभी रचनाकरो को हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही सुंदर लिंकों से सजी सराहनीय प्रस्तुति मीना जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स से सजी हुई चर्चा, मैम। मेरी पोस्ट को इनके बीच स्थान देने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंकविवर गिरिजा कुमार माथुर जी के कवितांश से प्रस्तुति का सार्थक आग़ाज़। बेहतरीन लिंक चुने गए हैं। मेरी रचना आज की प्रस्तुति में पटल पर प्रदर्शित करने हेतु सादर आभार आदरणीया मीना जी।
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