शीर्षक पंक्ति :
आदरणीय ओंकार जी की रचना से
आदरणीय ओंकार जी की रचना से
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सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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उमस और बेचैनी लिए
बीत रहा है श्रावण मास,
करोना वैक्सीन चर्चित है
मिलेगी उनको जो हैं ख़ास।
-रवीन्द्र
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शब्द-सृजन-30 का विषय है-
प्रार्थना /आराधना
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार
(सायं-5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म
(Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवारीय अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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उमस और बेचैनी लिए
बीत रहा है श्रावण मास,
करोना वैक्सीन चर्चित है
मिलेगी उनको जो हैं ख़ास।
-रवीन्द्र
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शब्द-सृजन-30 का विषय है-
प्रार्थना /आराधना
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार
(सायं-5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म
(Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवारीय अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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झील में
वंशी बजाते
गिन रहा है लहर कोई,
रक्तकमलों
से सुवासित
छू रहा है अधर कोई,
पंख
टूटेंगे न छूना
यार तितली बावरी है।
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अकेलेपन की अलगनी में अटकी सांसें
जीवन के अंतिम पड़ाव का अनुभव करा गई।
स्वाभिमान उसका समाज ने अहंकार कहा
अपनों की बेरुख़ी से बूढ़ी देह कराह गई।
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मंज़िल न मिले तो न सही,
आगे बढ़ते रहना
और चलते रहना ही होगी
मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि.
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शांति
हुस्न की बिजली
मन में था एक शगल जिसे
वह भूल नहीं पाया था
इधर उधर भटकता रहा
पर राह न मिल पाई
उसी लीक पर चल दिया
जिस पर पहले चला था |
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इंतजार
आज भी रखा है कॉफी का मग
तुम्हारे ओठों के निशान लिए
सूरज की तपिश भी वैसी ही है
चांद की चांदनी भी पहले सी ठंडी
बारिश भी तन मन भिगोते हुए
आँखे भी नम करती हे वैसे ही
अलौकिक रूप से विद्यमान
प्रकृति के सार तत्वों की तरह
शांति शब्द
सत्ताधीशों के समृद्ध शब्दकोश में
'हाइलाइटर' की तरह है
जिसका प्रयोग समय-समय पर
बौद्धिक समीकरणों में
उत्प्रेरक की तरह
किया जाता है अब।
--हुस्न की बिजली
मन में था एक शगल जिसे
वह भूल नहीं पाया था
इधर उधर भटकता रहा
पर राह न मिल पाई
उसी लीक पर चल दिया
जिस पर पहले चला था |
--
इंतजार
कुछ नहीं बदला है तुम्हारे इंतजार में
न वो घड़ी थकी है न उसके कांटे आज भी रखा है कॉफी का मग
तुम्हारे ओठों के निशान लिए
सूरज की तपिश भी वैसी ही है
चांद की चांदनी भी पहले सी ठंडी
बारिश भी तन मन भिगोते हुए
आँखे भी नम करती हे वैसे ही
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*****
कोरोना की पीर शूल-सी
टूटे दर्पण से बिखरे सब
सपनों के टुकड़े-टुकड़े
अजगर बैठा मार कुंडली
जीवन को जकड़े-जकड़े
भयाक्रांत सा मानस भूला
उसने कब आनंद छुआ
मानव हार रहा है बाजी
काल खेलता रहा जुआ।
*****
प्रकृति - हाइकु
खिले सुमन
सुरभित पवन
विहँसी उषा
लपेट बाना
गहन तिमिर का
चल दी निशा
***
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
खिले सुमन
सुरभित पवन
विहँसी उषा
लपेट बाना
गहन तिमिर का
चल दी निशा
***
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
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सुंदर और सराहनीय प्रस्तुति.यथार्थ का बोध करती सार्थक भूमिका.मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआज का अंक बढ़िया है |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद रविन्द्र जी |
धन्यवाद रवीन्द्र जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं वास्तविकता का बोध कराते हुए
बहुत अच्छी लिंक बढ़िया चर्चा
यथार्थ कहती सुंदर भूमिका के साथ बेहतरीन लिंकों का चयन,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई,सादर नमस्कार सर
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय यादव जी।
सारगर्भित भूमिका और पठनीय सूत्रों से सजी बहुत
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत आभार आपका
रवींद्र जी।
सादर।
वाह अत्यंत सुन्दर अंक आज का ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंNice Bhai good content please my site visit me Business idea.healtyfood.hindi story.Funny jokes.motivational quotes in Hindi
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