स्नेहिल अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
बिना किसी भूमिका के
"माटी के लाल"
जो देश के लिए हँसते-हँसते अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते है,
उन्हें शत-शत नमन करते हुए चलते हैं...
आज की रचनाओं की ओर...
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"माटी के लाल"
जो देश के लिए हँसते-हँसते अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते है,
उन्हें शत-शत नमन करते हुए चलते हैं...
आज की रचनाओं की ओर...
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दोहे
"कौन सुखी परिवार"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रिश्तों-नातों से भरा, सारा ही संसार।
प्यार परस्पर हो जहाँ, वो होता परिवार।।
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सम्बन्धों में हों जहाँ, छोटी-बड़ी दरार।
धरती पर कैसे कहें, कौन सुखी परिवार।।
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सैनिकों की प्रीत को परिमाण में न तोलना
वे प्राणरुपी पुष्प देश को हैं सौंपतें।
स्वप्न नहीं देखतीं उनकी कोमल आँखें
नींद की आहूति जीवन अग्नि में हैं झोंकते।
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डिमेंशिया
फिर!
तिनके-तिनके बटोरकर
मेरी भूली-बिसरी यादों को,
और बांधे अपने नयनों के कोर में,
निहारती रही थी तुम,
अग्नि-स्नान मेरा, अपलक।
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उसी पथ पर
सर्वदा, तय पथ पर, तन्हा वो सूरज चला!
बिखेर कर, दिन के उजाले,
अंततः, छोड़ कर,
तम के हवाले!
बे-वश, वो सूरज ढ़ला!
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'चांद आज साठ बरस का हो गया' इतना कहकर पापा ने ईंट
की दीवार पर पीठ टिकाते हुए मेरी आंखों
में कुछ पढ़ने की कोशिश की.
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जो बर्फ की चोटियों पर चढ़ गए,
जो अस्त्र शस्त्र लेकर भिड़ गए।
अरि जो बैठा था टाइगर हिल ऊपर
शस्त्र मशीन गन, छुपा बनाये बंकर।
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ए सभी देश के धीश सुनो,
नापाक पाक और चीन सुनो,
हम माटी के रखवाले हैं,
कारगिल के वही मतवाले हैं,
जिसने फ़तह की तारीख़ों को
लहू से लिखना जाना है,
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कारावास यात्रा करने वाली
कवयित्री विद्यावती ‘कोकिल’ की कविताऐं
प्रसिद्ध कवयित्रियों में स्थान रखने वाली विद्यावती ‘कोकिल’ का आज जन्मदिन है।
विद्यावती का जन्म 26 जुलाई 1914 के दिन मुरादाबाद के हसनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
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जिस दिन एक बेटी अपने घर से, अपने परिवार से, अपने भाई,मां तथा पिता से
जुदा होकर अपनी ससुराल को जाने के लिए अपने घर से विदाई लेती है,
उस समय उस किशोरमन की त्रासदी, वर्णन करने के लिए कवि को भी शब्द नही मिलते !
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कलाल की दुकान पर पानी पीओ तो शराब का गुमान होता है
फूलों के कारण माला का धागा भी पावन हो जाता है
अच्छा पड़ोसी मूल्यवान वस्तु से कम नहीं होता है
देने वाले का हाथ सदा लेने वाले से ऊँचा रहता है
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वक़्त की साँकल में अटका इक दुपट्टा रह गया
आँसुओं से तर-ब-तर मासूम कन्धा रह गया
वक़्त की साँकल में अटका इक दुपट्टा रह गया
मिल गया जो उसकी माया, जो हुआ उसका करम
पा लिया तुझको तो सब अपना पराया रह गया
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आज का सफर यही तक
आप सभी स्वस्थ रहें ,सुरक्षित रहें।
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बहुत ही शानदार आज की चर्चा मंच की पोस्ट
जवाब देंहटाएंआभार और बधाई!!!
जवाब देंहटाएंदेश के बलिदानी वीरों को समर्पित यह अंक बिना भूमिका के भी श्रेष्ठ है।
जवाब देंहटाएंकिन्तु यह कैसी विडंबना है कि कोई राष्ट्र प्रेम के लिए मृत्यु को छाती से लगा अपने पवित्र रक्त से माँ भारती के पादपद्य पखार रहा है, तो कोई उसकी इसी उदारता का लाभ उठा सांसारिक धनदौलतों से अपनी तिजोरी भर रहा है।
बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय कामिनी दीदी।मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्रमया चर्चा।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा में अच्छे पठनीय लिंकों का समागम है।
आदरणीया कामिनी सिन्हा जी आपका आभार।
देश के अमर शहीदों का बलिदान और शोर्य सर्वोपरि है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स
आभार
उम्दा व सराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन रचनाओं का ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी गज़ल को यहाँ जगह देने के लिए ...
बेहतरीन और लाजवाब संकलन ..सभी रचनाएँ अत्यन्त सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा कलेक्शन कामिनी जी , और हां मेरी ब्लॉग पोस्ट को इसमें शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच की आज की बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई और बहुत -बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक। सभी रचनाएँ श्रेष्ठ हैं। विशेषकर आदरणीय दिगंबर नासवा जी की गजल के हर एक शेर पर दिल से "वाह!" निकलती रही। बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभार आपका जो इस रचना को सम्मान दिया ...
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