सादर अभिवादन।
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चर्चामंच की सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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'कैनवास' में इस बार आदरणीया मीना शर्मा जी की रचनाएँ-
ब्लॉग जगत में आदरणीया मीना शर्मा जी के नाम से अधिकांश रचनाकार एवं पाठक भलीभाँति परिचित हैं। मूलतः शिक्षण कार्य से जुड़ीं मीना जी की क़लम जब चलती है तो भावों में लिपटी संवेदना जीवंत हो उठती है। सहज-सरल व सुकोमल शब्दावली में प्रवाहमयी सृजन अंत में गंभीर सवाल हमारे ज़ेहन में छोड़ जाता है। उनके सृजन की यह विशेषता पाठक के हृदय तक सहजता से पहुँचती है।
2016 से ब्लॉग 'चिड़िया' के ज़रिये रसमर्मज्ञ पाठक मीना जी की विभिन्न विषयों पर मौलिक चिंतन के साथ मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति से रू-ब-रू होते आ रहे हैं।
मीना जी ने अपने सृजन को 'अब न रुकूँगी' काव्य-संग्रह के माध्यम से पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है।
आज के चुनौतीपूर्ण दौर में कविता की रचना उसके समस्त मानदंडों के साथ कुछ इस प्रकार करना कि पाठक उसे आद्योपांत पढ़ने के लिए उत्सुक और जिज्ञासु हो जाय और उसके प्राणों को छू ले.... ऐसी विशिष्टता आदरणीया मीना जी के सृजन को साहित्य में स्वीकार्यता के साथ यथोचित स्थान प्रदान करती है। मीना जी काव्य सृजन के साथ-साथ कहानी,संस्मरण और लेख भी लिखतीं रहतीं हैं। आदरणीया मीना जी के बारे में कहने को बहुत कुछ है किंतु अब चर्चा करते हैं उनकी चुनिंदा रचनाओं की-
ब्लॉग जगत में आदरणीया मीना शर्मा जी के नाम से अधिकांश रचनाकार एवं पाठक भलीभाँति परिचित हैं। मूलतः शिक्षण कार्य से जुड़ीं मीना जी की क़लम जब चलती है तो भावों में लिपटी संवेदना जीवंत हो उठती है। सहज-सरल व सुकोमल शब्दावली में प्रवाहमयी सृजन अंत में गंभीर सवाल हमारे ज़ेहन में छोड़ जाता है। उनके सृजन की यह विशेषता पाठक के हृदय तक सहजता से पहुँचती है।
2016 से ब्लॉग 'चिड़िया' के ज़रिये रसमर्मज्ञ पाठक मीना जी की विभिन्न विषयों पर मौलिक चिंतन के साथ मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति से रू-ब-रू होते आ रहे हैं।
मीना जी ने अपने सृजन को 'अब न रुकूँगी' काव्य-संग्रह के माध्यम से पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है।
आज के चुनौतीपूर्ण दौर में कविता की रचना उसके समस्त मानदंडों के साथ कुछ इस प्रकार करना कि पाठक उसे आद्योपांत पढ़ने के लिए उत्सुक और जिज्ञासु हो जाय और उसके प्राणों को छू ले.... ऐसी विशिष्टता आदरणीया मीना जी के सृजन को साहित्य में स्वीकार्यता के साथ यथोचित स्थान प्रदान करती है। मीना जी काव्य सृजन के साथ-साथ कहानी,संस्मरण और लेख भी लिखतीं रहतीं हैं। आदरणीया मीना जी के बारे में कहने को बहुत कुछ है किंतु अब चर्चा करते हैं उनकी चुनिंदा रचनाओं की-
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नदिया अर्थात बहती धारा के प्रति असीम अनुराग और अटूट विश्वास जो संवेदनाओं के साथ विकसित होकर जीवन का शाश्वत सत्य कहती एक हृदयस्पर्शी रचना पढ़िए-
नदिया अर्थात बहती धारा के प्रति असीम अनुराग और अटूट विश्वास जो संवेदनाओं के साथ विकसित होकर जीवन का शाश्वत सत्य कहती एक हृदयस्पर्शी रचना पढ़िए-
उर में संचित मधुबोलों के
संग्रह भी चुक ही जाएँगे !
संग्रह भी चुक ही जाएँगे !!!
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संसार की असारता की ओर इंगित करती जीवन की चुनौतियों का
सामना करते हुए सत्य को स्वीकारने का आह्वान करती दार्शनिक
अंदाज़ की एक बेहतरीन रचना पढ़िए-
मन रे अपना कहाँ ठिकाना है
मोहित होकर रह निर्मोही,
निद्रित होकर भी जागृत!
चुन असार से सार मना रे,
विष को पीकर बन अमृत !
काहे सोचे, कौन हमारा,
कच्चा ताना बाना है!
टूटा तार, बिखर गई वीणा,
फिर भी तुझको गाना है!!!
मन रे, अपना कहाँ ठिकाना है ?
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बाँसुरी को परिभाषित करती एक ख़ूबसूरत रचना जो सुधी पाठक से
लेकर किशोरवय के विद्यार्थी तक को संदेश और मर्म आत्मसात
करने में सहज है वहीं जीवन की चेतना से जोड़ता काव्य-सौंदर्य अनूठा बन पड़ा है-
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बाँसुरी को परिभाषित करती एक ख़ूबसूरत रचना जो सुधी पाठक से
लेकर किशोरवय के विद्यार्थी तक को संदेश और मर्म आत्मसात
करने में सहज है वहीं जीवन की चेतना से जोड़ता काव्य-सौंदर्य अनूठा बन पड़ा है-
मन का मौजी, सुर का खोजी
कहीं से इक यायावर आया !
काटा, छीला, किया खोखला,
पोर-पोर संगीत सजाया !!!
पीड़ा से सुर की उत्पत्ति,
हृदय भेद कर निकला राग !
बहने लगा मधुर रस बनकर,
यायावर का वह अनुराग !!!!
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बदलते वक़्त के साथ सावन के रंग-ढंग भी आज बदले हुए नज़र आते
हैं तब कवयित्री का संवेदनशील मन कल्पनालोक में स्मृतियों के
झरोखों से झाँकता हुआ मनमोहक तस्वीर उकेरता है-
सावन कहीं से इक यायावर आया !
काटा, छीला, किया खोखला,
पोर-पोर संगीत सजाया !!!
पीड़ा से सुर की उत्पत्ति,
हृदय भेद कर निकला राग !
बहने लगा मधुर रस बनकर,
यायावर का वह अनुराग !!!!
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बदलते वक़्त के साथ सावन के रंग-ढंग भी आज बदले हुए नज़र आते
हैं तब कवयित्री का संवेदनशील मन कल्पनालोक में स्मृतियों के
झरोखों से झाँकता हुआ मनमोहक तस्वीर उकेरता है-
बोल पथिक ! क्या तेरे देस,
सावन अब भी ऐसा होता है ?
परदेसी बादल, वसुधा के
नयनों में सपने बोता है ?
बाग-बगीचों में अब भी,
पड़ते हैं क्या सावन के ?
गीत बरसते हैं क्या नभ से,
आस जगाते प्रिय आवन के ?
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सृजन की भावभूमि का ज़िक्र करते हुए किसी भुलावे में न रहते हुए
जीवन का सच स्वीकारने का आह्वान करती यह रचना कवयित्री के
गंभीर एवं सटीक चिंतन की शानदार बानगी पेश करती है-
अपने अपने दर्द सावन अब भी ऐसा होता है ?
परदेसी बादल, वसुधा के
नयनों में सपने बोता है ?
बाग-बगीचों में अब भी,
पड़ते हैं क्या सावन के ?
गीत बरसते हैं क्या नभ से,
आस जगाते प्रिय आवन के ?
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सृजन की भावभूमि का ज़िक्र करते हुए किसी भुलावे में न रहते हुए
जीवन का सच स्वीकारने का आह्वान करती यह रचना कवयित्री के
गंभीर एवं सटीक चिंतन की शानदार बानगी पेश करती है-
अपने-अपने दर्द सभी को खुद ही सहने पड़ते हैं
दर्द छुपाने, मनगढ़ंत कुछ किस्से कहने पड़ते हैं।
किसको फुर्सत, कौन यहाँ तेरे गम का साझी होगा ?
पार वही उतरेगा जो खुद ही अपना माझी होगा।
उलझे रिश्तों के धागे पल-पल सुलझाने पड़ते हैं
बुझे चेतना के अंगारे फिर सुलगाने पड़ते हैं ।।
--
आदरणीया मीना जी की यह रचना मुझे अत्यंत प्रिय है। भाव-गाम्भीर्य
से लेकर नारी-विमर्श पर उद्वेलित करते सवालों को समेटती एक
विचारोत्तेजक होते हुए अत्यंत मार्मिक रचना जो जिजीविषा को पुष्ट
करती है और जीवन के प्रति सकारात्मकता और अनुराग पैदा करती है-
जीने की जिद मैं करती हूँ !
दर्द छुपाने, मनगढ़ंत कुछ किस्से कहने पड़ते हैं।
किसको फुर्सत, कौन यहाँ तेरे गम का साझी होगा ?
पार वही उतरेगा जो खुद ही अपना माझी होगा।
उलझे रिश्तों के धागे पल-पल सुलझाने पड़ते हैं
बुझे चेतना के अंगारे फिर सुलगाने पड़ते हैं ।।
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आदरणीया मीना जी की यह रचना मुझे अत्यंत प्रिय है। भाव-गाम्भीर्य
से लेकर नारी-विमर्श पर उद्वेलित करते सवालों को समेटती एक
विचारोत्तेजक होते हुए अत्यंत मार्मिक रचना जो जिजीविषा को पुष्ट
करती है और जीवन के प्रति सकारात्मकता और अनुराग पैदा करती है-
जीने की जिद मैं करती हूँ !
मुझको नहीं पुरुष से स्पर्धा,
अपने ऊपर है विश्वास
नहीं ! मैं नहीं वह सीता,
जो झेल सके दो - दो वनवास
अपने अधिकारों को अब,
पाने की जिद मैं करती हूँ !
नारी हूँ तो नारी सा...
--
शिक्षक / शिक्षिका के महत्त्व को अत्यंत सरलता से हमारे ज़ेहन में
बैठाती रचना विचारणीय है। शिक्षक चरित्र-निर्माण के साथ राष्ट्र-
निर्माण करते हैं अतः हमें हर हाल में उनके प्रति सत्कार भाव रखना
चाहिए। समाज के हरेक वर्ग को इस रचना का संदेश आत्मसात
करना चाहिए कि आज की अधिकांश अशिष्ट, उद्दंड पीढ़ी को पूर्ण
मनोयोग से शिक्षित कर रहे शिक्षक / शिक्षिकाएँ किस मनोदशा से गुज़रते हैं-
शिक्षक
अपने ऊपर है विश्वास
नहीं ! मैं नहीं वह सीता,
जो झेल सके दो - दो वनवास
अपने अधिकारों को अब,
पाने की जिद मैं करती हूँ !
नारी हूँ तो नारी सा...
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शिक्षक / शिक्षिका के महत्त्व को अत्यंत सरलता से हमारे ज़ेहन में
बैठाती रचना विचारणीय है। शिक्षक चरित्र-निर्माण के साथ राष्ट्र-
निर्माण करते हैं अतः हमें हर हाल में उनके प्रति सत्कार भाव रखना
चाहिए। समाज के हरेक वर्ग को इस रचना का संदेश आत्मसात
करना चाहिए कि आज की अधिकांश अशिष्ट, उद्दंड पीढ़ी को पूर्ण
मनोयोग से शिक्षित कर रहे शिक्षक / शिक्षिकाएँ किस मनोदशा से गुज़रते हैं-
शिक्षक
माना सीमाओं पर रक्षा
करते हैं फौजी भाई,
लेकिन उनको देशभक्ति भी
शिक्षक ने ही सिखलाई ।
डॉक्टर, वैज्ञानिक, व्यापारी
गायक हों या कलाकार,
नेता हों या अभिनेता
सब शिक्षक ने ही किए तैयार ।
--
पर्यावरण के प्रति सचेत करती और वृक्षारोपण के प्रति आकृष्ट करती
रचना समाज के सभी वर्गों के लिए उपयोगी है वहीं सार्थक संदेश
जन-जन पहुँचाने हेतु सुंदर शब्द-विन्यास-
पेड़ - एक अमानत
करते हैं फौजी भाई,
लेकिन उनको देशभक्ति भी
शिक्षक ने ही सिखलाई ।
डॉक्टर, वैज्ञानिक, व्यापारी
गायक हों या कलाकार,
नेता हों या अभिनेता
सब शिक्षक ने ही किए तैयार ।
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पर्यावरण के प्रति सचेत करती और वृक्षारोपण के प्रति आकृष्ट करती
रचना समाज के सभी वर्गों के लिए उपयोगी है वहीं सार्थक संदेश
जन-जन पहुँचाने हेतु सुंदर शब्द-विन्यास-
पेड़ - एक अमानत
पेड़....
एक गीत है,
पंछियों के सुरीले कंठ का,
लिखकर रखो उसे
गाना है अगली पीढ़ियों को भी।
पेड़....
एक चित्र है,
किसी अनजान चित्रकार का,
फीका ना पड़ने दो,
निरखना है अगली पीढ़ियों को भी।
--
रिश्तों की नीरसता,निष्ठुरता कभी-कभी इतना कचोटती है कि
संवेदनशीलता भावों के साथ काग़ज़ पर उतर आती है। जीवन में
कश्मकश से जूझते हुए अनेक सवाल उठ खड़े होते हैं-
आखिर किसलिए ?
एक गीत है,
पंछियों के सुरीले कंठ का,
लिखकर रखो उसे
गाना है अगली पीढ़ियों को भी।
पेड़....
एक चित्र है,
किसी अनजान चित्रकार का,
फीका ना पड़ने दो,
निरखना है अगली पीढ़ियों को भी।
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रिश्तों की नीरसता,निष्ठुरता कभी-कभी इतना कचोटती है कि
संवेदनशीलता भावों के साथ काग़ज़ पर उतर आती है। जीवन में
कश्मकश से जूझते हुए अनेक सवाल उठ खड़े होते हैं-
आखिर किसलिए ?
अपना देकर के चैन-औ-सुकूँ सब
खुशियाँ जिनके लिए थीं खरीदी,
दर पे जब भी गए हम खुदा के
माँगी जिनके लिए बस दुआ ही,
वो ही जखमों पे नश्तर चुभाकर
पूछते हैं, दर्द तो नहीं ?...
--
कवयित्री ने इस रचना के माध्यम से बहुत ख़ूबसूरत एवं सारगर्भित संदेश संप्रेषित किया है कि आज़ादी
जीवन के लिए अनमोल है जिसके लिए संघर्ष स्वाभाविक है किंतु सतत संघर्ष खिन्नता की ऐसी अवधि
भी लाता है जब आज़ादी के अवसर को नकार दिया जाता है अर्थात अक्षमता उत्पन्न होने से पूर्व
यथाशक्ति प्रयास होने चाहिए-
बंदी चिड़िया
खुशियाँ जिनके लिए थीं खरीदी,
दर पे जब भी गए हम खुदा के
माँगी जिनके लिए बस दुआ ही,
वो ही जखमों पे नश्तर चुभाकर
पूछते हैं, दर्द तो नहीं ?...
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कवयित्री ने इस रचना के माध्यम से बहुत ख़ूबसूरत एवं सारगर्भित संदेश संप्रेषित किया है कि आज़ादी
जीवन के लिए अनमोल है जिसके लिए संघर्ष स्वाभाविक है किंतु सतत संघर्ष खिन्नता की ऐसी अवधि
भी लाता है जब आज़ादी के अवसर को नकार दिया जाता है अर्थात अक्षमता उत्पन्न होने से पूर्व
यथाशक्ति प्रयास होने चाहिए-
बंदी चिड़िया
देखकर खुला गगन,
आँखें भर आती थी,
उड़ने की कोशिश में
पंख वो फैलाती थी,
पिंजरे की दीवारों से
सर को टकराती थी,
व्यर्थ थे उसके सभी प्रयास !
चिड़िया रहती थी उदास ।
--
जीवन संघर्ष की प्रेरक गाथा निस्संदेह पाठकों को रोमांचित करती है। कवयित्री ने जीवन की दुश्वारियों
से पलायन के स्थान पर उनका डटकर मुक़ाबला करने की प्रेरणा दी अपनी इस रचना में। दरअसल
'अब न रुकूँगी' आदरणीया मीना जी का प्रथम प्रकाशित काव्य-संग्रह है। हमारी ओर से ढेरों
शुभकामनाएँ-
अब न रुकूँगी
आँखें भर आती थी,
उड़ने की कोशिश में
पंख वो फैलाती थी,
पिंजरे की दीवारों से
सर को टकराती थी,
व्यर्थ थे उसके सभी प्रयास !
चिड़िया रहती थी उदास ।
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जीवन संघर्ष की प्रेरक गाथा निस्संदेह पाठकों को रोमांचित करती है। कवयित्री ने जीवन की दुश्वारियों
से पलायन के स्थान पर उनका डटकर मुक़ाबला करने की प्रेरणा दी अपनी इस रचना में। दरअसल
'अब न रुकूँगी' आदरणीया मीना जी का प्रथम प्रकाशित काव्य-संग्रह है। हमारी ओर से ढेरों
शुभकामनाएँ-
अब न रुकूँगी
वो आसान था,
क्योंकि उसके पीछे
एक आदमी बना होता था
आदमी जोड़ दो,
नक्शा जुड़ जाता था।
इन बिखरे टुकड़ों के पीछे
कोई आदमी नहीं बना है ना !
समय लगेगा, जोड़ लूँगी।
फिर एक बार, अब ना रुकूँगी !
*****चलते-चलते आदरणीय शास्त्री जी द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षा-
“सकारात्मक अर्थपूर्ण सूक्तियाँ”
(हीरो वाधवानी)
उच्चारण
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
रवीन्द्र सिंह यादव
वाह!लाजवाब ..सराहना से परे आज की चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआदरणीया मीना दीदी का सृजन पुष्प-सा महकता आज की प्रस्तुति में...आपका आभार आदरणीय रविंद्र जी सर इतनी व्यस्तता पर भी आपने अपना क़ीमती समय निकाला।
सही कहा आपने आदरणीय दीदी से सभी परिचित हैं ।लेखन तो इनका लाजवाब है ही साथ ही वे एक बेहतरीन समीक्षक भी हैं। कैनवास में सजी आदरणीया मीना दीदी की रचनाएँ लाजवाब हैं, सभी एक से बढ़कर एक. शब्द चयन, शैली, भाव एवं कल्पनाशक्ति सभी बेजोड़ हैं। स्पष्टवादिता इन्हें सभी से इतर बनाती है। बहुमुखीप्रतिभा की धनी आदरणीय मीना दीदी का का चर्चामंच पर हार्दिक अभिनंदन ।
मेरा प्रणाम स्वीकारें ।
कैनवास की विशेष प्रस्तुति में मीना शर्मा जी की रचनाओं को पढ़ना सुखद अनुभुति है । बहुत उम्दा व लाजवाब रचनाओं के सूत्र संकलन की शोभा बने हैं । मीना जी निरन्तर लोकप्रियता के नये सोपान प्राप्त करें इन्हीं भावों के साथ मैं हार्दिक शुभकामनाएं मीना जी को प्रेषित करती हूँ । आदरणीय रविंद्र सिंह जी भी इस दुर्लभ संकलन के लिए सराहना और बधाई के पात्र हैं ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच की बेहतरीन प्रस्तुति । मीना जी की रचनाओं से अवगत कराने के लिए धन्यवाद । उन्हें बधाई । आदरणीय शास्त्रीजी को भी उनकी नवीनतम कृति के प्रकाशन पर बहुत -बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंअद्यतन लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
कैनवास में सजी आदरणीया मीना जी की रचननाओं को पढ़कर बेहद ख़ुशी हुई। उनकी सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक लाजवाब हैं,उनकी हर रचना अंतर्मन को छू जाती है और चिंतन करने को विवश करती है। आदरणीय रविन्द्र सर को हार्दिक धन्यवाद जो उन्होंने एक से बढ़कर एक चुनिंदा रचनाओं का संकलन ऐसे किया है जैसे कोई सागर से मोती चुन कर लाता है। मीना जी की लेखनी यूँ ही चलती रहे यही कामना है.
जवाब देंहटाएंलेखक एवं कविता का पद समाज में इसलिए ऊँचा होता है; क्योंकि वह हमारे मनुष्यत्व को जगाता है ,सद्भाव का संचार करता है, हमारी दृष्टि को विचार देता है। और यह तभी संभवः है , जब साहित्यकार मन से भी निश्छल हो।
जवाब देंहटाएंमीना दीदी , आपकी अनमोल रचनाओं में भी वही दर्द है, जो इस अर्थयुग में मानव के पाषाण हृदय को स्पंदन प्रदान कर उसे संवेदनशील बनाती है।
आपकी लेखनी को नमन ।🙏🌹
आपके सृजन को इस मंच के माध्यम से हम पाठकों तक पहुँचाने के लिए रवींद्र जी को साधुवाद ।
कविता को कवि पढ़ा जाए।
हटाएंसुंदर , अभिनव अंक आदरणीय भाई रविंद्रजी। आज चर्चा अंक के कैनवस पर मीना बहन के भावों के रंग अनूठी आभा बिखेर रहे हैं। सराहनीय और चुनिंदा रचनाओं का संकलन और प्रत्येक रचना की सुदक्ष समीक्षा ने आज की चर्चा में चार चाँद लगा दिये।ये एक चर्चाकार की समीक्षा नहीं अपितु एक गुनी रचनाकार का दूसरे रचनाकार को सम्मान है। मीना बहन का सुंदर , सहज और मधुर रचना संसार अनायास काव्य रसिकों को आनंद से भर जाता है। नारी मन के अनकहे संवाद और मीरा सी करुणा में भावरस का निर्झर पाठकों कोअप्ररितम माधुर्य में डुबो देता है। ब्लॉग चिड़िया में काव्य विधा की अनमोल रचनाएँ संग्रहित हैं, तो प्रतिध्वनि ब्लॉग पर संवेदनशील गद्य रचनाएँ पढ़ी जा सकती हैं। कई और मंचों पर भी उनकी उपस्थिति बनी रहती है।
जवाब देंहटाएंकुशल गृह प्रबन्धन के साथ मराठी और हिंदी के शिक्षण के अत्यंत व्यस्त शैड्युल के समानांतर रचनाओं का विहंगम संसार उनका साहित्य के प्रति गहन लगाव का ही परिचायक है। माँ सरस्वती की असीम अनुकम्पा मीना बहन पर बनी रहे यही दुआ करती हूँ। चर्चा मंच और आपको आभार इस मनभावन प्रस्तुति के लिए। आज की रचनाओं का चयन काबिलेतारीफ है।सादर🙏🙏
प्रिय मीना बहन, प्रतिष्ठित चर्चा मंच का एक दिन आपके नाम हुआ। आपको बहुत बहुत शुभकामनायें और बधाई इस अवसर विशेष के लिए । आपसे परिचय पर गर्व करती हूँ। माँ शारदे आप पर अपनी अनुकम्पा बनाये रखे। यही कामना करती हूँ। पुनः सस्नेह बधाई🌹🌹🙏🌹🌹
जवाब देंहटाएंमीना बहन की लाजवाब रचना 'मौन दुआएं अमर रहेंगी' पर मेरी टिप्पणी जो इस रचना को पढ़कर अनायास उमड़ गए भाव हैं---------
जवाब देंहटाएंमन के दूषण भी हर लेंगे
ये पावन हैं गंगाजल-से !
मत रिक्त कभी करना इनको
ये मंगल कलश भरे रखना !
ये मंगल कलश भरे रखना !!!
ना तुम होगे, ना मैं हूँगी,
उत्सव की प्रथाएँ अमर रहें
प्रिय मीना , प्रेम के सागर से लहरों की भांति उठते दुआओं के ये प्रखर स्वर , वेद की ऋचाओं की भांति अनुगुंजित हो , मन को असीम शीतलता का आभास करवा रहे हैं | मौन दुआओं के ग्रन्थ नहीं लिखे गए , इनका कोई ऐतहासिक दस्तावेज नहीं मिलता , पर ये सृष्टि के कण -कण में सदैव व्याप्त रही हैं और सर्वत्र इनका अस्तित्व बना रहेगा | बहुत ही प्यारी रचना है जिसे काफी दिन पहले पढ़ लिया था पर लिख ना सकी | ऐसी रचनाएँ हर रोज नहीं लिखी जाती | शब्द नगरी ने भी इसे अपनी खास रचना बनाया था | ये बहुत गर्व की बात है | सराहना से परे रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
बरसों बाद आज इस तरफ़ आना हुआ । क्या सी सुन्दर संकलन है । फुरसत से पढ़ता हूँ । सादर सप्रेम जय श्री कृष्ण ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं की अनुपम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमीनाजी की विलक्षण रचनाओं की अद्भुत मीनाकारी से सजी सुन्दर प्रस्तुति! मीनाजी की रचनाओं को पढना अपने आप में एक नैसर्गिक आनंद का रूहानी एहसास है. माँ सरस्वती साक्षात अवतरित हो जाती हैं, इनकी व्यंजना-शैली में. बधाई और आभार!
जवाब देंहटाएंमीना जी की रचनाओं में साथ ये विशेष चर्चा अच्छी रही ... एक सामवेदनशील लेखिका की कलम से निकली रचनाएँ एक बड़ा सा केनवास खड़ा कर में चलती हैं ... मीना को को बधाई आपको बधाई ...
जवाब देंहटाएंमीना जी की बेहतरीन रचनाएं पढ़कर बहुत ही सुखद अनुभूति होती है। अद्भुत रचनाओं के साथ बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंचर्चामंच ने मेरे जीवन का यह दिन यादगार बना दिया। पिछले काफी समय से कुछ स्वास्थ्य संबंधी और कुछ पारिवारिक समस्याओं के कारण ब्लॉग जगत में निष्क्रिय सी हो गई हूँ। ऑनलाइन क्लासेस लेना आँखों पर दुष्प्रभाव भी डाल रहा है।
जवाब देंहटाएंऐसे समय में मेरी रचनाओं पर यह विशेषांक और सराहना के रूप में मिला आप सभी का यह स्नेह....
कैसे आभार प्रकट करूँ ? बहुत खुशी में और बहुत दुःख में मेरे तो शब्द गुम हो जाते हैं !!!
आदरणीय रवींद्रजी, इन रचनाओं को खोजना और हर रचना की इतनी सुंदर समीक्षा लिखना श्रमसाध्य और बहुत समय लेनेवाला कार्य है। मैं हृदय से आपकी और चर्चामंच की आभारी हूँ।
ये भाव निरामय, निर्मल-से
जवाब देंहटाएंकोमलता में हैं मलमल-से
मन के दूषण भी हर लेंगे
ये पावन हैं गंगाजल-से !
मत रिक्त कभी करना इनको
ये मंगल कलश भरे रखना !
ये मंगल कलश भरे रखना !!!
सचमुच मन का दूषण हरते निरामय और निर्मल से भावों से सजा है मीना जी का लेखन....
आज की चर्चा में आदरणीय मीना जी रचनाएं पढवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद रविन्द्र जी!
मीना जी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
पुनः एक बार आप सभी का बहुत बहुत आभार ! सब टिप्पणियों को पढ़कर ऐसा लगा जैसे कि पुनः लिखने की ऊर्जा मिल रही है....
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