सादर अभिवादन ।
शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सभी विद्वजनों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन ।
आज की प्रस्तुति का शुभारंभ धर्मवीर भारती जी की लेखनी से निसृत "क्योंकि सपना है अभी भी'
के कवितांश से -
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क्योंकि सपना है अभी भी
इसलिए तलवार टूटी अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशाएं
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग,
सब कुछ धुंध धूमिल
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है
अपना अभी भी
क्योंकि सपना है अभी भी!
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अब आपके सम्मुख प्रस्तुत हैं आज की चर्चा के चयनित सूत्र -
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वरिष्ठ लेखक, कवि, दोहा विशेषज्ञ, बाल साहित्यकार डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ के बाल-कविता संग्रह ‘खिलता उपवन’ की भूमिका लिखने के लिए मुझे पाण्डुलिपि प्राप्त हुई और उसे पढ़ने का सौभाग्य मुझे मिला तो मन गदगद हो उठा।
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उन दिनों जब
तुम्हारे पत्र
हुआ करते थे
मँहगाई के दौर में
जैसे सब्जी और राशन
या पहली तारीख को
मिला हुआ वेतन .
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प्यार पंछी से जता के
शिकार इंसान का करते हैं।
दौर ये कैसा देखो यारो
जहाँ सैयाद मसीहा होते हैं ।
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मुकुल होंठ पर सरगम तानें
भृंग मधुर लय में गाते ।
महक रही है सभी दिशाएं
जलद डोलची भर लाते।
कोमल मादक मस्त महकती
कलियों ने ली अँगड़ाई।।
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हरे पेड़
उलझे हैं
बिजली के तारों से ,
खिड़की के
पाट खुले
पुरवा बौछारों से ,
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उद्वेलित हो कहती लहरें
रूकना अपना काम नहीं
तूफानों को करले वश में
नौका लगती पार वही।
सागर से चुनता जो मोती
प्यासी जिसकी ज्ञान कुईं।
अंगारों पर-------------।।
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जाति-धर्म, भाषाएं, बोली ढेरों हैं लेकिन
सबके दिल की एक कथा, उन्वान तिरंगा है
"वर्षा" हमने जन्मभूमि को मां का मान दिया,
रहे सदा सबसे ऊंचा, अरमान तिरंगा है।
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चार दिन में इतना ही बिन्न पायी बिन्ना ,गुणवंती नहीं बनी तो देखना, ससुराल जायेगी तो सास कानों में गर्म तेल ढूंस देगी सुना-सुना के ," सर पर हल्की सी चपत लगा अम्मा ने खीज के कहा।
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कर्त्तव्य सदा दिन-रात ही करते
अपनी कुछ परवाह न करते
कर्म फल की चाह न करते
बेशक यम से लड़ते रहते.
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कहने को तो उस सफर की समय अवधि 20 घंटे की थी मगर हमारा सफर 20 दिन का था,सफर शुरू करने के पहले का पांच दिन सफर पर निकलने की हिम्मत जुटाने का,एक दिन का ट्रेन का सफर और 14 दिन इस इंतजार का कि-"कही मौत के वायरस ने हमें छुआ तो नहीं।"
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दर्द की ज़ुबान मीठी है बहकने नहीं देती
लहू में डूबी है ज़िन्दगी सँवरने नहीं देती !
इक रूह है जो जिस्म में तड़पती रहती है
कमबख्त साँस हैं जो निकलने नहीं देती !
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नवजीवन के सुकुमार अंकुर में प्रतिफलन पायी यह नई सृष्टि,मेरा ही तो अंशागमन, मेरा पुनरागमन ,मेरे चित् का नव-नव प्रस्फुटन, हर बार परंपरा को आगे तक ले जाने की आश्वस्ति प्रदान करता मन-प्राङ्गण उद्भासित कर रहा है .
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स्वाति की बूंद का
निश्छल निर्मल रुप
पर जिस संगत
समा गई
ढल गई उसी अनुरूप
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मिलन तो निरन्तर घटेगा
उसी से उपजे हैं
उसी में रहेंगे....
इस मिलन से बह सकता है
मधुर गीत
या फूट सकती हैं ज्वालायें !
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मयूर ने पंख पसारे झूम झूम घूम कर
नृत्य किया बागों में
कंठ से मधुर स्वर निकाले
आकर्षक नयनाभिराम नृत्य प्रदर्शन में |
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काव्य में उपजे भाव को,
सम्मान देता है रचयिता,
तब जाकर बनती है,
सुंदर सी एक कविता ।
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हम अभी जस्ट मैरीड ही हैं. हाँ नहीं तो लॉक डाउन में ही कर लिए शादी. क्या है कि अम्मा जी को नया अचार रखना था सो मर्तबान ख़ाली करने थे. जबे देखो तबे परधान जी का फ़ोन मिलाए के कहें…"लाली की अम्मा से कहि देव हम बीस जन आई के भौंरी डरवाय लै जैहैं.
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शब्द-सृजन-28 का विषय है-
'सीमा/सरहद'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे)
तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form )
के ज़रिये हमें भेज सकते हैं
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आपका दिन शुभ हो,फिर मिलेंगे…
🙏🙏
"मीना भारद्वाज"
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बहुत सुंदर ऊर्जावान करती भूमिका और प्रस्तुति दीदी जी। बड़े ही प्यारे लिंक्स हैं।
जवाब देंहटाएं...कोई स्वपन लेना और उसे पूर्ण करने के लिए प्रत्यनशील रहना , एक दिन मानव को महान बना देता है।
मेरे मामूली से सृजन " दौर ये कैसा" को मंच पर आपने जिस प्रकार से सम्मान दिया, उसके लिए हृदय से आभार।
आदरणीय रोली अभिलाषा जी की रचना का यह वाक्य- उजली दुनिया में कितनी गंदगी है!..
बड़ा संदेश दे रहा है और यही कटु सत्य है। ग्रामीण परिवेश ही नहीं समाज के हर क्षेत्र में इसकी बहुलता है।
सादर प्रणाम।
सभी रचनाएँ शानदार। मेरी कविता को स्थान देने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन रचनाओं का आज |मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति, विविधताओं से पूर्ण रचनाएँ, आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !
जवाब देंहटाएंपठनीय और उपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआदरणीया मीना भारद्वाज जी आपका आभार।
सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमेरी कहानी को स्थान देने के लिए आभार ��
सभी रचनाएं पढ़लीं . चयन सुन्दर है . धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत ही शानदार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएं शानदार प्रस्तुति , बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी ,आपका हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंरंग बिरंगी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लिंकों से सजी प्रस्तुति मीना जी,जोया जी और रोली अभिलाषा जी की कहानी तो बेहद उन्दा और मर्मस्पर्शी हैं.
जवाब देंहटाएंसादर नमन आप सभी को
उम्दा संकलन मजेदार लिंक्स का
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय मीना दी ...तकरीबन रचनाएँ पढ़ी ...सुंदर चयन .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति... हार्दिक आभार 🙏🇮🇳🙏
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