दरअसल, आर्थिक सुस्ती की वजह से सबसे ज्यादा रोजगार पर असर पड़ा है. देश में करीब एक तिहाई लोग बेरोजगारी से परेशान हैं.
अर्थव्यवस्था में गिरावट से आम आदमी के साथ-साथ सरकार भी चिंतित है। जीडीपी लुढ़क कर 4.5 फीसदी पर पहुंच गई है। लेकिन एक हैरान करने वाला आंकड़ा भी सामने आया है। महज 10 फीसदी लोगों ने माना कि देश के लिए अर्थव्यवस्था में गिरावट सबसे बड़ी समस्या है. यानी गिरती अर्थव्यवस्था से केवल 10 फीसदी लोग प्रभावित हैं।
शिक्षा एक फीसदी लोगों के लिए फिलहाल चिंता का विषय है। जबकि तीन फीसदी लोग मानते हैं कि समाज में बढ़ती असहिष्णुता से उन्हें डर लगता है। एक फीसदी लोगों यह मानते हैं कि आतंकवाद बड़ा मुद्दा है। जबकि जनवरी-2020 में 32 फीसदी लोगों ने माना कि उनके लिए बेरोजगारी चिन्ता का विषय है।
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गंगा का तट ~
बम भोले की गूंज
कावड़ यात्रा
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सावन मास~
शिव की आराधना
भक्ति में शक्ति ।
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लिखा कुछ भी नहीं जाता हैबस एक दो कौएउड़ते हुऐ से नजर आते हैं
‘उलूक’
छोड़ भी नहीं देता है लिखना
कबूतर लिखने की सोच
आते आते तोते में अटक जाती है
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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अम्बुवाँ पे डाला झूला
सखियाँ कहें तू भुला
अब न मुझे तू रुला
मन मेरा खुला खुला
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कहीं खामोश है कंगन,
कहीं पाज़ेब टूटी है
सिसकता है कहीं तकिया,
कहीं पे रात रूठी है
अटक के रह गई है नींद
पलकों के मुहाने पर
सुबह की याद में बहकी हुई
इक शाम डूबी है
स्वप्न मेरे पर
दिगंबर नासवा
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बाहुबली है कहते उसको,
वो है कितनों का रखवाला।
युद्धभूमि फ़तह किया है जिसने,
उसको पहनाते हैं फूलों की माला।
Nitish Tiwary
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यह तो अच्छा है कि स्टेशनों का रख-रखाव भी रेलवे के ही जिम्मे है, नहीं तो पता नहीं आपसी लड़ाई में राजनीती ऐसी धरोहरों का क्या हाल कर के धर देती ! आधे में रौशनी होती, आधे में अंधकार... | दंड
सुनो,
तुम जिसे मृत्युदंड कहते हो, वह दरअसल हत्या है. |
तुम पुराने दिनों को याद कर रहीं थीं तो मैं भी कुछ याद कर तुम्हारी खिदमत में व्यस्त हो गया। सुरभि को छेड़ते हुए अंकुर ने कहा।
सुरभि ऐसी ही बरसात की रात थी ना जब हमारे रिश्ते की बात चली थी।आज मुझे महसूस हो रहा है कि व्यस्तता के चलते हम सच में एक-दूसरे को समय नहीं दे पा रहे थे। मैं तुमसे वादा करता हूँ कितना भी काम हो पर तुम्हारे लिए मेरा प्यार मेरी जिम्मेदारी कभी कम नहीं होगी। ***अनुराधा चौहान'सुधी'***
Anuradha chauhan
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जब
सूर्य की रश्मियाँ
नृत्य करतीं
हरे भरे वृर्क्षों पर
वर्षा ऋतु में उगे हरे पत्ते
मखमली लगते सूर्य किरणों से
हुई आशिकी जब
अद्भुद समा हो जाता ...
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फिर चुनावी समर की तैयारियां होने लगीं
फिर हवाएं बोझ नारों का यहां ढोने लगीं फिर नई संकल्प गाथा, फिर नई विरुदावली फिर नए जल से दिशाएं मुख मलिन धोने लगीं |
कांग्रेस भ्रम फैलाती है
//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
कांग्रेस जब देखो तब भ्रम फैलाती है। वैसे कांग्रेस भ्रम की जगह कुछ और भी फैला सकती है मगर कांग्रेस को भी देखिए आजकल और कोई काम-धाम ही नहीं है, वो सिर्फ और सिर्फ भ्रम ही फैलाती रहती है। एक दिन तो मैं भारी चिंता में पड़ गया कि कांग्रेस अगर भ्रम न फैलाती तो फिर क्या फैलाती? बहुत चिंता करने के बाद यही निष्कर्ष निकला कि कांग्रेस अगर भ्रम न फैलाती तब भी भ्रम ही फैलाती।
कांग्रेस चाहे तो भ्रम के स्थान पर काफी कुछ फैला सकती है। जैसे उदाहरण के लिए वह मूर्खता फैला सकती है, वह धूर्तता फैला सकती है, //व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
कांग्रेस जब देखो तब भ्रम फैलाती है। वैसे कांग्रेस भ्रम की जगह कुछ और भी फैला सकती है मगर कांग्रेस को भी देखिए आजकल और कोई काम-धाम ही नहीं है, वो सिर्फ और सिर्फ भ्रम ही फैलाती रहती है। एक दिन तो मैं भारी चिंता में पड़ गया कि कांग्रेस अगर भ्रम न फैलाती तो फिर क्या फैलाती? बहुत चिंता करने के बाद यही निष्कर्ष निकला कि कांग्रेस अगर भ्रम न फैलाती तब भी भ्रम ही फैलाती।
लेकिन नहीं, कांग्रेस को पता नहीं किस पागल कुत्ते ने काट रखा है। मौका लगते ही वह बस भ्रम ही फैलाती है। |
बरहरवा के "शाहजहाँ" नहीं रहे।
(आज सुबह यह अविश्वसनीय खबर मिली और दुर्भाग्य से, यह सच भी निकली... )
1975 में हमारे बरहरवा में 'अभिनय भारती' के बैनर तले एक भव्य नाटक का आयोजन हुआ था, जिसका नाम था- "शाहजहाँ"। भव्य मतलब वाकई भव्य आयोजन था- स्टेज, स्टेज के बैकग्राण्ड, लाईट, पोशाक, हर चीज की व्यवस्था उम्दा थी। बेशक, 'टिकट' वाला नाटक था यह। इसमें मुख्य भूमिका निभायी थी जयप्रकाश चौरासिया ने। वे उस वक्त नवयुवक थे। जवानी में बूढ़े शाहजहाँ का किरदार उन्होंने इस तरह निभाया था कि लोग वाह-वाह कर उठे थे... ...
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समय की दरकार
बेबसी में जल रहे हैं पांव तो कहीं भूख से बिलख रहे हैं गांव, हर तरफ फैली हुई त्रासदी है. मौत का हाहाकार और जिंदगी में उदासी है . यह समय इतिहास के पन्नों पर स्याह दिवस की कालिख मल रहा है. हर तरफ लाशें बिछ रही है. कहीं कोरोना जिम्मेदार है तो कहीं भूख बेबसी और लाचारी बनी हथियार है . औरंगाबाद में हुए रेलवे ट्रैक पर मजदूरों के साथ जो हादसा हुआ है वह झकझोर देने वाला है . पलायन सतत शुरू है . कोरोना महामारी और लाचारी है तो कहीं रोटी की भूख जिंदगी पर भारी है . आज हर वर्ग, हर उम्र के लोग इस जीवन से सीख ले रहे हैं. सबके अपने-अपने अनुभव है . छोटे-छोटे बच्चे घरों में बंद हैं...
Sapne (सपने ) पर shashi purwar
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शब्द-सृजन-30 का विषय है-
प्रार्थना /आराधना
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार
(सायं-5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म
(Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवारीय अंक में प्रकाशित की जायेंगीं।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') |
सुंदर भूमिका है, समसामयिक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। सभी लिंक्स अच्छे हैं
जवाब देंहटाएं, प्रणाम।
उम्दा लिंक्स|मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंवाकई बहुत अच्छे लिंक्स का सुंदर कलात्मक संयोजन किया गया है।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद 💐
मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
आभार आदरणीय्।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेआउट सभी लिंक्स बहुत शानदार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा। मेरी कविता को स्थान देने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा.मेरी कविता शमिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति । मेरे सृजन को प्रस्तुति में सम्मिलित करने हेतु सादर आभार ।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत,रंग-बिरंगी प्रस्तुति आदरणीय सर,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन, मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तूति के साथ उम्दा लिंक्स।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सुंदर संकलन वर्षा ऋतु के साथ पूर्ण न्याय वाह
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय सर .
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर फूलों से सजा सुंदर गुलदस्ता।
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक चयन , सभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
बहुत विस्तृत चर्चा ... सुन्दर लिंक्स ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी गज़ल को जगह देने के लिए ...