सादर अभिवादन ।
शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सभी विद्वजनों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन ।
आज की चर्चा का आरम्भ नागार्जुन जी कलम से निसृत 'बातें" के अंश से -
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बातें–
हँसी में धुली हुईं
सौजन्य चंदन में बसी हुई
बातें–
चितवन में घुली हुईं
व्यंग्य-बंधन में कसी हुईं
बातें–
उसाँस में झुलसीं
रोष की आँच में तली हुईं
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अब बढ़ते हैं आज के चयनित सूत्रों की ओर -
रससिद्ध कवि 'मयंक' जी की रचनाएं समाज को परिष्कृत करने में हमेशा योगदान करती रही है। इस स्वार्थी दुनियाँ में नीयत हमेशा सलामत रहे में पाठकों, गायकों एवं श्रोताओं को सत्कृष्ट आनन्द बनाने में सहायक सिद्ध होती है।
“मीत बेशक बनाओ बहुत से मगर,
मित्रता में शराफत की आदत रहे।
स्वार्थ आये नहीं रास्ते में कहीं,
नेक.नीयत हमेशा सलामत रहे।।"
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बस एक पत्ता था,
जो अब भी हरा था,
पूरी सृष्टि उसे
सुखाने पर आमादा थी.
वह अदना-सा पत्ता
मरघट में जीवन का उद्घोष था.
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माता पिता की सेवा करोगे, सृष्टि के प्राणियों से स्नेह करोगे तो भगवान के दर्शन अवश्य होंगे, क्योँकि "कण-कण में भगवान हैं,तुम्हारे बाहर भगवान हैं,तुम्हारे भीतर भगवान हैं, प्रेम,दया, करुणा, परोपकार, आदर-सम्मान यही तो भगवान के रूप हैं मगर ये दर्शन महाज्ञानी नहीं कर सकते क्योँकि वो मद में अंधे होते हैं,ये दर्शन निश्छ्ल,पवित्र और करुणामयी आँखे ही कर सकती हैं. बच्चों, एक बात याद रखना -"जो रचना को नहीं समझ पाया वो रचनाकार को कभी
नहीं समझ पायेगा ।"
नहीं समझ पायेगा ।"
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पुराने किस्से कहानियों में वर्णित ''गैजेट्स'', ''ट्रिक्स'', ''अजूबे'', ''कलाऐं'' जैसी रहस्यमयी, अज्ञान की चिलमन से ढकी हैरतंगेज बातों को विज्ञान ने काले परदे के पीछे से उठा-उठा कर सामने ला एक साधारण सी आम जानकारी बना कर रख दिया है। उसी विधाओं में एक है, भेष या रूप-रंग बदलना।
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हरियाली है आवश्यक
पर्यावरण बचाने के लिए
शुद्ध वायु का महत्व वही जानता
जिसे घुटन भरे वातावरण में जीना होता ।
हरे भरे वृक्षों के नीचे खेलना
कितना सुखकर होता ।
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आशुतोष को अर्घ्य चढ़ाएं,
गंगाजल भर कांवर लाएं।
शिव सुनेंगे हमारी प्रार्थना।
करते है शिव -आराधना।
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किसी भी बात ,घटना ,तथ्य के हमेशा ही दो पहलू होते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह आधा भरा/आधा खाली ग्लास देखने वाले के नज़रिये पर निर्भर करता है | वास्तव में भी यही होता है , नकारात्मक नज़रिये वाला व्यक्ति किसी भी बात में ,आलोचना निंदा आरोप का अवसर तलाश ही लेता और सकारात्मक नज़रिये वाला इंसान विपरीत और प्रतिकूल परिस्थतियों में भी उसके अच्छे पहलू को ढूंढ ही लेता है |
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घुमड़ता मेघ, मल्हार गा रहा,
मदमाती बूंदों का श्रृंगार गा रहा।
सरसती धरा का प्यार गा रहा,
खिलते फूलों का अनुराग गा रहा।
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मछुआरा बुद्धिमान था, उसे ज्ञात था कि उसकी खुशी किसमें है। इसीलिए उसने बड़ी दृढ़ता के साथ उद्योगपति श्री बजाज को जवाब दिया था - "मैं इसी स्थिति में आपसे अधिक सुखी हूँ।"
सत्य यही है कि मनुष्य अपने संतोष से सम्राट और अभिलाषाओं से दरिद्र हो जाता है।
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हम तो बाशिंदे थे तेरे मोहल्ले के
तूने मोहल्ला बदल लिया
बता क्या करें हम !
हम बाशिंदे बने रहे तेरे शहर के
तूने शहर ही छोड़ दिया
बता क्या करें हम !
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इक अनंत आकाश छुपा है
ऋतु बासन्ती बाट जोहती,
अंतर की गहराई में ही
छिपा सिंधु का अनुपम मोती !
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किसी व्यक्ति का किसी जगह पर होने का अर्थ यह नहीं कि यह उसके रहने की भी जगह है. रहने की जगह ही अगर उसका पता है तो बाशिंदे की दिक्कत यह है कि वह किसी भी जगह को अपना पता नहीं बता सकता. होने और रहने के बीच की यह फाँक आधुनिक नागर जीवन की विडंबना है .
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सज्दा हमें मुनासिब नहीं
बताकर मैं पसंद रखुंं,
हर मुकम्मल कोशिश
यही रही अबतक
कि मुंह अपना बंद रखूं।
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नौ साल की बिन्नी अपने तीन भाई-बहिनों में सबसे बड़ी है . पढ़ने में तो सबसे होशियार है ही पर खेलने में भी उसका कोई मुकाबला नही है .उसे सुन्दर चीजों का शौक है .उसने अपने गुड्डे-गुड़िया बहुत ही सुन्दर सलीके से सजा रखे हैं . उसे कई तरह के फूल और कचनार के बीज इकट्ठे करना बहुत पसन्द है .
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न फक्कड़ हूँ न घुम्मकड़
एक जगह जमकर फैला रहा हूँ जड़ें गहरी
दूर दूर तक बना रहा हूँ पहुँच
सोख लेना चाहता हूँ
अपने हिस्से से ज्यादा खनिज और पानी
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शब्द-सृजन-29 का विषय है-
'प्रश्न'
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में) आगामी शनिवार
(सायं-5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म
(Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ
आगामी रविवारीय अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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आपका दिन शुभ हो,फिर मिलेंगे…
🙏🙏
"मीना भारद्वाज"
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बातें–
जवाब देंहटाएंसही कहा बाबा ने-"यही अपनी पूंजी¸ यही अपने औज़ार..।"
चिंतनशक्ति को दिशा देती भूमिका और विविधताओं से भरी सुंदर प्रस्तुति। मेरे लेख " सुख " को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार मीना दीदी । सभी को प्रणाम, शुभ रात्रि।
सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद मीना जी |
उपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
बढ़िया और विविधतापूर्ण संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया मीना जी
बहुत ही सुंदर लिंकों से सुसज्जित बेहतरीन प्रस्तुति,भूमिका में नागार्जुन जी की कविता ने और चार चाँद लगा दिए,मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार मीना जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंनागार्जुन की 'बातें'की सुंदर भूमिका से आरंभ हुई बेहतरीन सूत्रों की खबर देती चर्चा ! आभार मुझे भी शामिल करने हेतु मीना जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी प्रस्तुति को इसमें स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंमैं जब भी अपनी रचना देखती हूँ सारे ब्लाग भी पढ़ती हूँ . चयन अच्छा है . मेरी कहानी को भी शामिल किया है धन्यवाद मीना जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय मीना दी.तकरीबन रचनाएँ पढ़ी बहुत ही सुंदर चयन किया है आपने.सभी रचनाकरो को हार्दिक बधाई .
जवाब देंहटाएंसादर