सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
बापू ने कहा है-
"मेरे लिए देशप्रेम और मानव-प्रेम में कोई भेद नहीं है;दोनों एक ही हैं। मैं देशप्रेमी हूँ क्योंकि मैं मानव-प्रेमी हूँ।
बापू जीवन में सरलता और सिद्धांत को स्थापित करने का सहज मार्ग बताते हैं और अहिंसा को सामाजिक सद्भाव का केन्द्र बिंदु।
सत्य और अहिंसा के साथ जीवन की आवश्यकताओं को न्यूनतम स्तर पर रखने का विचार सामाजिक समता का आधारभूत भाव है।
बापू का 1893 का पिट्सवर्ग दक्षिण अफ्रीका में रेल सफ़र का वह अनुभव कौन भूल सकता है जब उन्हें बेइज़्ज़त करके प्रथम श्रेणी का टिकिट होने के बावजूद उन्हें सामान सहित ज़बरन प्लेटफ़ॉर्म पर फेंक दिया जाता है तब एक साधारण व्यक्ति असाधारण बनने की ओर पहला क़दम आज़ादी के प्रण के साथ बढ़ाता है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ रचनाएँ-
बालकविता "सेवों का मौसम आया है" प्राची ने है एक उठाया।
खाने को है मुँह फैलाया।। नाव गर बँधी हो तो भी
नदिया का बहना
नाव तले रहता है
जाना हो गर पार तो
डालनी होती है
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ऐसा क्या करूँ कि स्त्री की आबरू लुटने से बच जाए ? ऐसा क्या करूँ कि स्त्री जात निम्नता की दीवार पर लिखी इबारत न होकर किसी बच्चे के होठों का पहाड़ा बन जाये और उसी पहाड़े से सीखे वह बच्चा, दुनिया का क्रय-विक्रय करना । वह सीखे अच्छाई को लिखना और बुराई को सिरे से मिटाना।बच्चा सहेजे अपने मुँह लगे पहाड़े की तरह स्त्री की गरिमा को।
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गर्मियों में खुली छत पर रात में सोने से पहले खुले स्वच्छ आसमान में झिलमिल करते तारों की चमक को निहारना, आकाश गंगा की आकृति की कल्पना करना और ध्रुव तारे को देखना आदत सी रही
है मेरी । इस आदत को पंख मिले "सौर परिवार" का पाठ पढ़ने के बाद .. जहाँ ग्रहों और ब्रह्मांड के साथ आकाश गंगाओं का परिचय था।
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अपने वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान करना एवं उनके सम्बन्ध में चिंतन करना। वर्तमान समय में वृद्ध समाज अत्यधिक कुंठा ग्रस्त है। उनके पास जीवन का विशद अनुभव होने के बावजूद कोई उनसे किसी बात पर परामर्श नहीं लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व ही देता है। वृद्ध जन स्वयं को उपेक्षित, निष्प्रयोज्य महसूस करने लगे हैं। अपने वरिष्ठ नागरिकों को, बुज़ुर्गों को इस दुःख और संत्रास से छुटकारा दिलाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। इस दिशा में ठोस प्रयास किये जाने की बहुत आवश्यकता है।
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जब हुआ रुदन धरती का जब दमन हुआ तेरी काया का
तो हे मां कर वध इन दुष्टों का इन के कुल का संहार सही
भले ही ये पोषित पितृ सत्ता से इन का विध्वंस सही
तलवार उठा तू रण चंडी इन लोलूपो का विनाश सही
मारो इन राक्षसों को अब लहू की ललकार सही
डरो ना नारी तुम डरो ना बेटी तुम ममता तुम करुणा
तुम जननी इस धरा का तुम आधार सही मगर हे नारी
इस युग में पापियों के विनाश हेतु काली का रूप सही
तलवार उठा तू बन क्षत्रानी बाजुओं का जोर सही
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आज बापू का जन्मदिन है और शास्त्री जी का भी. वर्तमान पीढ़ी को इन दोनों महापुरुषों से बहुत कुछ सीखना है. दोनों का जीवन सादगी भरा था, दिखावे और बनावट के लिए उसमें कोई स्थान नहीं था. पर्यावरण के प्रति इतना लगाव था कि आश्रम के बाहर बहती नदी के बावजूद गांधी जी थोड़े से पानी से अपना काम चलाते थे
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घर से बाहर आ कर आयुषी सड़क पर पहुँची और एक ऑटो रिक्शा को आवाज़ दी। ऑटो के पास में आने पर वह आदर्श नगर चलने को कह उसमें बैठ गई। आदर्श नगर यहाँ से करीब अठारह कि.मी. दूर था। ऑटो चलने लगा। ऑटो में लगी सी.डी. से गाना आ रहा था- 'जाने वाले, हो सके तो लौट के आना...'
"उफ़्फ़, चेंज करो यह गाना।" -वह झुंझलाई व धीरे-से बुदबुदाई, 'नहीं आना मुझे लौट के।'
"इतना तो अच्छा गाना है मैडम!" -ऑटो वाले ने बिना मुँह फेरे आश्चर्य से कहा।
"देखो, चेंज नहीं कर सकते तो बन्द कर दो इसे, मुझे नहीं सुनना यह गाना।"
ऑटो वाले ने गाना बदल दिया। नया गाना आने लगा- 'आजा, तुझको पुकारे मेरा प्यार..।'
गाना सुन कर आयुषी का मन खिल उठा। 'हाँ, आ रही हूँ तुम्हारे पास', मन ही मन मुस्करा दी वह।
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विक्रम ने अपनी गलती कबूल कर ली है इसलिए यह पंचायत तीन महीने के लिए उसका हुक्का-पानी बंद करती है। पंचों के इस फ़ैसले पर गाँव के रसूखदारों के बीच खुशी की लहर दौड़ पड़ी।
यह कैसा न्याय है सरपंच जी..?सुलोचना की आँखों से आँसू छलक पड़े।मेरी बेटी के साथ घृणित कार्य करने वाले तीन महीने में सजा मुक्त,यह सजा नहीं दिखावा है दिखावा..! सुलोचना चीखते हुए बोली।
चल चल चुप बैठ..,तीन महीने बिरादरी से अलग कर दिया अब क्या जान से मार दें..?
हँसी होठों की देखो तो
कहीं धोखा न खा जाना
ग़मों को अश्क़ बनने में
ज़रा सी देर लगती है ....
उदासी में डुबो ख़ुद को,
क्यूँ बैठी हो यूँ तुम जाना !
ख़ुदा को ख़ुद में ढलने में
ज़रा सी देर लगती है....
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आज सफ़र यहीं तक
फ़िर मिलेंगे
आगामी अंक में
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत अच्छी और दिलचस्प लिंक्स का संयोजन किया है आपने अनीता जी 👌👌👌
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार 💐🙏💐
सुन्दर सार्थक सूत्रों का लाजवाब संयोजन ! चर्चा में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा आज की |
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद
मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सहज लिंक्स, उम्दा चर्चा
सदैव की भाँति सुन्दर और सुगठित चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी "दीप्ति" जी!
सुंदर और सार्थक भूमिका के साथ गाँधी जयंती पर सराहनीय चर्चा ! आभार !
जवाब देंहटाएंमेरी कहानी 'आत्मबोध' प्रतिष्ठित चर्चा मंच के इस सुन्दर अंक का हिस्सा बन पाई, तदर्थ अनीता जी का आभार व्यक्त करता हूँ। चर्चा मंच यूँ ही सभी पाठकों की साहित्यिक क्षुधा-पूर्ति का सतत साधन बनता रहे, यही कामना है। सभी साथी लेखकों को बधाई व स्नेही पाठकों का आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा...🙏
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिये हृदय से आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।सुंदर रचनाएँ।
जवाब देंहटाएंसार्थक भूमिका के साथ सुंदर चर्चा अंक, सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर प्रेरक सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को इस चर्चा में शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंगांधी जी से सम्बन्धित सुंदर भुमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं का संकलन, शानदार प्रस्तुति अनीता जी
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