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सोमवार, अक्टूबर 26, 2020

'मंसूर कबीर सरीखे सब सूली पे चढ़ाए जाते हैं' (चर्चा अंक- 3866)

शीर्षक पंक्ति : आदरणीय  जी। 


सादर अभिवादन। 

           सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है ।

आज की चर्चा का आंरभ करते हैं। वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय

 जी की रचना की कुछ पंक्तियों से-

जो झूठे ज़ालिम अहमक हैं
मसनद पे बिठाए जाते हैं
मंसूर कबीर सरीखे सब
सूली पे चढ़ाए जाते हैं
क्यूं दीन-धरम की खिदमत में
नित लाश बिछाई जाती हैं
नफ़रत वहशीपन खूंरेज़ी
घुट्टी में पिलाई जाती हैं


आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ रचनाएँ-

 --

दोहे 
"हुआ दशानन पुष्ट" 
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

लीलाएँ बाधित हुई, जला नहीं लंकेश।
चारों ओर बुराई का, जीवित है परिवेश।।
--
मुख पर हैं मुखपट्टियाँ, भीतर से है दुष्ट।
कोरोना के काल में, हुआ दशानन पुष्ट।।
--
जो झूठे ज़ालिम अहमक हैं
मसनद पे बिठाए जाते हैं
मंसूर कबीर सरीखे सब
सूली पे चढ़ाए जाते हैं
क्यूं दीन-धरम की खिदमत में
नित लाश बिछाई जाती हैं
--

विजयोत्सव

मान्या व मेधा, पहाड़ो पर निवास करने वाले परिवार की बेटियाँ थीं। मान्या से लगभग पंद्रह महीने छोटी मेधा सगी बहन थी। दोनों बहनें सम क्षमता से सम कक्षाओं को उत्तीर्ण करती मल्टीनेशनल कम्पनी में संग-संग कार्यरत थीं। माता-पिता, परिवार–समाज को चौंकाती दोनों बहनें शादी नहीं करने का अटल फैसला सुना दी थी। कम्पनी में शनिवार व रविवार को अवकाश रहने के कारण शुक्रवार की शाम दोनों अपने माता-पिता के पास गाँव चली जातीं और सोमवार को पौ फटने के साथ अपने निवास पर वापस आ जातीं।

--

चुभन

चल कर ना मिलो, मिल के तो चलो!
हाँ, पर यहाँ, मिल के बिसरने का चलन है!
सर्द रिश्तों में, कंटक सी चुभन है!
तो, रिश्ते भूल के, क्यूँ सो रहे हो तुम?

यूँ, खो न देना, सिमटते पलों को तुम!
--
ऐ लड़कियों!   
तुम सब जाओ अपने-अपने दड़बों में   
अपने-अपने परों को सम्हालो   
एक दूसरे को अपने-अपने चोंचों से लहूलुहान करो!   
कटना तो तुम सबको है, एक न एक दिन   
अपनों द्वारा या गैरों द्वारा   
सीख लो लड़ना, ख़ुद को बचाना, दूसरों को मात देना   
तुम सीखो छल-प्रपंच और प्रहार-प्रतिघात   
तुम सीखो द्वंद्ववाद और द्वंद्वयुद्ध!  

--

जादूगर का पता - -

खुलते ही गन्धकोष आते
हैं अनगिनत चाहने
वाले, कौन
कहाँ
ले जाए ख़्वाबों की गीली मिट्टी, - -
क्या पता तुम्हें है मालूम,
उस जादूगर कुम्हार
का ?

--

संस्कृत साहित्य के उद्धारक

चूँकि संस्कृत भाषा सामान्य व्यवहार में प्रचलित नहीं थी इसलिए संस्कृत में लिखे गए उस साहित्य को ऐसी भाषा में अनुवाद किया जाना आवश्यक था जो शासक वर्ग की भाषा हो और जिसे शासित वर्ग भी सीखता हो । 500 साल पहले तत्कालीन शासक अकबर ने इस संबंध में अल्प प्रयास किया था । 200 साल पहले अंग्रेजी शासन के समय में यह कार्य वृहद पैमाने पर हुआ । उस समय प्राचीन भारतीय साहित्य का अधिकतर अनुवाद कार्य अंग्रेजी, जर्मन और फ्रेंच में विदेशी विद्वानों के द्वारा किया गया । इस लेख में इन्हीं कार्यों का संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास किया गया है ।

-- 

कब आओगे राम

राम जानकी
सतयुगी आदर्श
पूज्य आज भी
करता जग
हृदय से वन्दना
राम राज्य की !
--

सबकी परवाह में जब खुद को भूल जाती हूँ
अपनी परवाह मेंं तुझको करीब पाती हूँ
तुझे फिकर मेरी फिर और क्या चाहना है मुझे
तेरी ही ओट पा मैं   मौत से टकराती हूँ

--

दावानल

जल-जल के भीग रही जल में
जलन -तपन जलजला रही
जलती-जलती जल मैं रही
पर ज्वाला जल की न खो रही
--

 “18 वीं शताब्दी‎ में चिनाब नदी के किनारे एक कुम्भकार के घर सुन्दर‎ सी लड़की का 

जन्म हुआ जिसका नाम “सोहनी” था । पिता के बनाए‎ मिट्टी‎ के बर्तनों पर वह सुन्दर‎  सुन्दर‎ आकृतियाँ उकेरती । पिता-पुत्री के बनाए‎ मिट्टी‎ की बर्तन दूर  दूर‎ तक लोकप्रिय‎ थे ।

--

मसला कुत्ते की टेढ़ी पूँछ

हर किसी की 
कम से कम 
एक पूँछ तो होती है 
किसी की जागी होती है 
किसी की सोई होती है 
पीछे 
होती है इसलिये 
खुद को दिख नहीं पाती है 
--
आज का सफ़र यहीं तक 
फिर फिलेंगे 
आगामी अंक में 
@अनीता सैनी 'दीप्ति' 



9 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर और सार्थक चर्चा।
    आपका आभार अनीता सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंंदर सारगर्भित प्रस्तुति । सभी चयनित रचनाकारों को शुभकामनाएँँ। रचना को मान देने के लिए हृदय से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. हार्दिक आभार आपका
    श्रम साध्य कार्य हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी मित्रों को विजयादशमी पर्व की अनेकानेक शुभकामनाएं ! आज की चर्चा में उत्कृष्ट सूत्रों का संयोजन ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  5. गोपेश मोहन जैसवाल जी के शब्द सदैव की भांत‍ि मानवता को झकझोरने वाले होते हैं ...वाह अनीता जी, क्या खूब कलेक्शन है रचनाओं का ...आनंद आ गया पढ़कर क‍ि - क्यूं दीन-धरम की खिदमत में
    नित लाश बिछाई जाती हैं
    नफ़रत वहशीपन खूंरेज़ी
    घुट्टी में पिलाई जाती हैं।

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन लिंकों से सजी सुंदर चर्चा अंक प्रिय अनीता ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन

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  7. बहुत सुन्दर सराहनीय चर्चा प्रस्तुति सभी लिंक बेहद उत्कृष्ट.... मेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  8. सारगर्भित रचनाओं से सजा हुआ अंक, मानसिक तृप्ति प्रदान करता है, सभी रचनाएं बहुत सुन्दर हैं, मुझे शामिल करने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं

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