गोपेश मोहन जैसवाल जी।
सादर अभिवादन।
गोपेश मोहन जैसवाल जी की रचना की कुछ पंक्तियों से-
आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ रचनाएँ-
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मान्या व मेधा, पहाड़ो पर निवास करने वाले परिवार की बेटियाँ थीं। मान्या से लगभग पंद्रह महीने छोटी मेधा सगी बहन थी। दोनों बहनें सम क्षमता से सम कक्षाओं को उत्तीर्ण करती मल्टीनेशनल कम्पनी में संग-संग कार्यरत थीं। माता-पिता, परिवार–समाज को चौंकाती दोनों बहनें शादी नहीं करने का अटल फैसला सुना दी थी। कम्पनी में शनिवार व रविवार को अवकाश रहने के कारण शुक्रवार की शाम दोनों अपने माता-पिता के पास गाँव चली जातीं और सोमवार को पौ फटने के साथ अपने निवास पर वापस आ जातीं।
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चूँकि संस्कृत भाषा सामान्य व्यवहार में प्रचलित नहीं थी इसलिए संस्कृत में लिखे गए उस साहित्य को ऐसी भाषा में अनुवाद किया जाना आवश्यक था जो शासक वर्ग की भाषा हो और जिसे शासित वर्ग भी सीखता हो । 500 साल पहले तत्कालीन शासक अकबर ने इस संबंध में अल्प प्रयास किया था । 200 साल पहले अंग्रेजी शासन के समय में यह कार्य वृहद पैमाने पर हुआ । उस समय प्राचीन भारतीय साहित्य का अधिकतर अनुवाद कार्य अंग्रेजी, जर्मन और फ्रेंच में विदेशी विद्वानों के द्वारा किया गया । इस लेख में इन्हीं कार्यों का संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास किया गया है ।
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सबकी परवाह में जब खुद को भूल जाती हूँ
अपनी परवाह मेंं तुझको करीब पाती हूँ
तुझे फिकर मेरी फिर और क्या चाहना है मुझे
तेरी ही ओट पा मैं मौत से टकराती हूँ
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“18 वीं शताब्दी में चिनाब नदी के किनारे एक कुम्भकार के घर सुन्दर सी लड़की का
जन्म हुआ जिसका नाम “सोहनी” था । पिता के बनाए मिट्टी के बर्तनों पर वह सुन्दर सुन्दर आकृतियाँ उकेरती । पिता-पुत्री के बनाए मिट्टी की बर्तन दूर दूर तक लोकप्रिय थे ।
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सुन्दर और सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
बहुत सुंंदर सारगर्भित प्रस्तुति । सभी चयनित रचनाकारों को शुभकामनाएँँ। रचना को मान देने के लिए हृदय से आभार।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रम साध्य कार्य हेतु साधुवाद
पठनीय लिंक्स ।
जवाब देंहटाएंआभार
सभी मित्रों को विजयादशमी पर्व की अनेकानेक शुभकामनाएं ! आज की चर्चा में उत्कृष्ट सूत्रों का संयोजन ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंगोपेश मोहन जैसवाल जी के शब्द सदैव की भांति मानवता को झकझोरने वाले होते हैं ...वाह अनीता जी, क्या खूब कलेक्शन है रचनाओं का ...आनंद आ गया पढ़कर कि - क्यूं दीन-धरम की खिदमत में
जवाब देंहटाएंनित लाश बिछाई जाती हैं
नफ़रत वहशीपन खूंरेज़ी
घुट्टी में पिलाई जाती हैं।
बेहतरीन लिंकों से सजी सुंदर चर्चा अंक प्रिय अनीता ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सराहनीय चर्चा प्रस्तुति सभी लिंक बेहद उत्कृष्ट.... मेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित रचनाओं से सजा हुआ अंक, मानसिक तृप्ति प्रदान करता है, सभी रचनाएं बहुत सुन्दर हैं, मुझे शामिल करने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।
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