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शुक्रवार, अक्तूबर 09, 2020

"मन आज उदास है" (चर्चा अंक-3849)

सादर अभिवादन !

शुक्रवार की  प्रस्तुति  में चयनित सूत्रों के आप सबका  हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन ! 

आज की चर्चा का आरम्भ गोपालदास "नीरज"जी की कलम से निसृत 'गीत जो गाए नहीं' पुस्तक के एक कवितांश से -


आज न कोई दूर न कोई पास है

फ़िर भी जाने क्यों मन आज उदास है?


आज न सूनापन भी मुझसे बोलता

पात न पीपल पर भी कोई डोलता

ठिठकी सी है वायु, थका-सा नीर है

सहमी-सहमी रात, चाँद गम्भीर है

***

ग़ज़ल "रूप की धूप ढलती जाती है" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

सर्दियाँ शीत जब उगलतीं हैं

चाँदनी भी कहर सा ढाती है


ज़िन्दगीभर सफर में रहना है

मंज़िलें हाथ नहीं आती है

***

भद्रता

भद्रता ! 

तुम भद्रता नहीं रही हो !

बदल गई हो !

अपनी-सी नहीं रही हो आज!

भटक गई पथ के प्रवाह से या 

ऊंटों के कारंवे से कुचली गई हो

***

प्रार्थना 

दिया है तूने हे प्रभु !

असीम है 

नहीं समाता इस झोली में 

तू दिए ही जाता है 

तेरी अनुकम्पा की क्या कोई सीमा है ?

***

मुहब्बत के ज़ख़्मों का, पूछो न हिसाब मुझसे

बेवफ़ा हूँ मैं, ये सारी दुनिया कहती है

दिया न गया, कोई मुनासिब जवाब मुझसे ।


अँधेरे को समझना होगा नसीब अपना 

नाराज़ है 'विर्क', प्यार का आफ़ताब मुझसे ।

***

लोग

बदहवास भागती है !

 जायेगी कहाँ !

कहाँ जायगी, डायन ?

दर्दीली चीखों से रोमांचित-उत्त्तेजित

पत्थर फेंक-फेंक हुमस रहे लोग !

***

दो लहरों के बीच

सोती नदी में 

एक लहर उठी 

किनारे पर आकर 

रेत पर एक नाम लिखकर थम गई 

***

'प्रतिरोध्य'

"हे पार्वत्य वासी! सुराधिप! आपने मेरा रास्ता बार-बार बदल कर मुझे मेरी सखी से विमुख कर दिया। पाक में रहते हुए मैं नापाक हो रही हूँ। हिन्द में ही मेरी संस्कृति अक्षुण्ण रह सकती है..! "

***

क्या लिखे लेखनी

पीड़ा कैसे लिखूँ

दृग से बह जाती है

समझे कोई न मगर

कुछ तो ये कह जाती है

तो फिर हास लिखूँ

परिहास लिखूँ

***

वीरान बस्तियां

एक एक कर बुझते गए दीये सारे,

धूप, अंधेरों में हौले-हौले से घुलते गए,

किरणों में सिलते गए सैकड़ों मलाल,

आसमां पर आ बिखरे रंग गुलाल!

***

त्याग का दण्ड

'त्याग को मानव का श्रेष्ठ आभूषण बताया गया है। निर्माण के लिए त्याग आवश्यक है।यदि कुछ प्राप्त करना है,तो कुछ छोड़ना भी होगा,तभी हृदय को सच्चा धन हाथ लगेगा...।'

***

नींद

बादलों की ओट में ओझल होते हुए चाँद ने l 

फ़साना नया बन दिया पलकों में बोझिल रातों ने ll


रुखसत हो गयी रवायतें मीठी मीठी नींदों की l

पलकें मुकम्मल हो गयी रात सितारों की ll

***

147- सजा अल्पना

रीति कौन बताए मुझको,

संध्या गीत सुनाए मुझको

कौन पर्व है कौन तिथि पर

इतना याद दिलाए मुझको

गाँव की छोटी पगडंडी को

हाईवे से जोड़ दिया .......

***

बेटा या बेटी --समाज की सच्चाई।

घरवाले परेशान हैं उनकी तबियत देखकर,

लोग मिलने आ रहे हैं उनकी हैसियत देखकर,

बेटी होती तो आज रोने लगती बाप के हश्र पर,

बेटे ने आने से मना कर दिया वसीयत देखकर।

***

आपका दिन मंगलमय हो...

फिर मिलेंगे…

🙏🙏

"मीना भारद्वाज"

--

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति एवं लिंक्स। मेरी रचना " त्याग का दण्ड" को मंच पर स्थान देने के लिए आपका आभार मीना दीदी।

    उधार की खुशियों से अच्छा है कि यह मन उदास ही रहे।

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा प्रस्तुतीकरण बहना.. साधुवाद.
    हार्दिक आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  3. सराहनीय।
    लेकिन इस प्रस्तुति में कुछ ज्यादा ही रचनाएं है।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर संकलन मीना जी, खास कर ''नीरज की पंक्त‍िया'' गहरे तक छू गईं...चर्चामंच का बहुत बहुत धन्यवाद इतनी बढ़‍िया पोस्ट पढ़वाने के ल‍िए

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर सराहनीय भूमिका के साथ आज की चर्चा प्रस्तुति आदरणीया मीना दी।मेरी रचना को स्थान देने हेतु दिल से आभार।सभी रचना कारो को बहुत बहुत बधाई ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. "आज न कोई दूर न कोई पास है
    फ़िर भी जाने क्यों मन आज उदास है?"
    "नीरज जी" की ये पक्तियाँ मन को छू गई। सालों पहले लिखी ये पंक्तियाँ आज यथार्थ सी दिख रही है ,आज सचमुच सबका यही हाल है।
    सुंदर सराहनीय भूमिका के साथ बेहतरीन लिंकों का चयन किया है आपने मीना जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  8. बढ़िया लिंक्स, हार्दिक बधाई ,आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत शानदार सुंदर अंक पठनीय लिंक सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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