सादर अभिवादन !
शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सबका हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन ! आज की चर्चा का आरम्भ कवि हृदय हमारे देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी जी की लेखनी से निसृत भावांश के साथ करते हैं-
बिखरे नीड़,
विहँसी चीड़,
आँसू हैं न मुस्कानें,
हिमानी झील के तट पर
अकेला गुनगुनाता हूँ।
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ
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प्रस्तुत हैं आज की चर्चा के कुछ चयनित सूत्र-
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दोहे "आते हैं बदलाव" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
समय न रहता एक सा, रखना इतना ध्यान।
घटता बढ़ता है सदा, ऋतुओं में दिनमान।।
कभी रूप की धूप पर, मत करना अभिमान।
नहीं हमेशा फूलता, जीवन का उद्यान।।
लिखने का ऐसा बढ़ा, दुनिया में अब रोग।
कविता की बारीकियाँ, नहीं समझते लोग।।
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विचार वर्षा 20 | हर बार अहिल्या ही क्यों |
छल करने वाला दण्ड का भागी होता है मगर जब बात आती है पुरुषप्रधान समाज की तो दण्ड की भागी बनती है छली जाने वाली स्त्री। हर बार अहिल्या को ही पाषाण बनना पड़ता है। आज इस इक्कीसवीं सदी में भी।
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हमारी आदत होती है कला से कम और कलाकारों से ज्यादा जुड़नें की,खेल को कम खिलाड़ियों को ज्यादा महत्व देने की,भगवान की भक्ति कम मगर ढोंगी बाबाओं की भक्ति ज्यादा करने की। पता नहीं ये कैसी इंसानी प्रकृति है कि-हम किसी के इतने मुरीद हो जाते हैं कि आँखे मूँदकर उन्हें सर पर बिठा लेते हैं।
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कौन मिला है
कह दो अब नव
जीवन साथी
हम भी तो थे
इस धरती पर
दीपक बाती
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मेरे शब्दों से बंध कर
तुम खींचे चले आते हो
और तपती दुपहरिया में
तनिक छाया पाते हो
पर कैसे ले जाएंँगी
तुम्हीं को तुमसे पार
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जब भी बैठता हूँ मैं कविता लिखने,
न जाने क्यों,
मेरे शब्द अनियंत्रित हो जाते हैं,
कोमल शब्दों की जगह
काग़ज़ पर बिखरने लगते हैं
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चर्चा प्लस - जब ‘बाॅबी’ पर भारी पड़े ‘बाबूजी’
इन दिनों सागर का सुरखी विधान सभा क्षेत्र सुर्खियों में है। उपचुनाव की तारीख घोषित हो चुकी है इसलिए सरगर्मियां भी बढ़ गई हैं। सुरखी चुनाव सीट अपने आरम्भ से ही ऐतिहासिक राजनीतिक क्षेत्र रहा है। इसका नाम लेते ही अनेक रोचक किस्से इतिहास के पन्नों से निकल कर बाहर आने लगते हैं।
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कहाँ कहाँ खोजूं तुम्हें
यह कैसी शरारत है
क्या कोई काम नहीं मुझको
केवल तुम्हें ही खोजना है |
कितनी बार समझाया है
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नींद टूटे, स्मरण जागे
फिर खिल उठे मन का कमल
जो बन्द है मधु कोष बन
हो प्रकट वह शुभता अमल !
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इक धूप सी जमी है निगाहों के आस-पास
गर ये आप हैं तो आपके कुर्बान जाइये
आ ही गये हैं हम भी सितारों के देश में
पलकों पे रखे ख़्वाब हैं,इनमें ही
आप जरा आन मुस्कराइये
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कहते हैं कि मेहनत और ईमानदारी से किया गया कोई भी काम लज्जाजनक नहीं होता । दुनिया पुरुषार्थी व्यक्ति को झुककर सलाम करती है। किन्तु सच यह भी है कि ऐसा पुस्तकीय ज्ञान मनुष्य के सामाजिक जीवन में व्यवहार की कसौटी पर सदैव खरा नहीं उतरता।
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बेटे का पिता से संवाद हे जो अगर बेटा समझ सके तो उस के जीवन की बुनियाद है
बेटा अपने नजरिए से दुनिया देखता हैऔर पिता अपने जिंदगी के अनुभव से उसे समझाता है
बेटे ने कहा एक तिनका तो ही है
पिता ने कहा तिनके तिनके से घर बनते देखा है।
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आपका दिन मंगलमय हो...
फिर मिलेंगे…
🙏🙏
"मीना भारद्वाज"
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बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंप्रमुख रचनाओं के संग मेरे भी सृजन "परिवर्तन"
को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ मीना दीदी जी।
सभी को नमस्कार🙏
सुंदर प्रस्तुति। मेरी कविता को स्थान देने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
आपका सादर आभार आदरणीया मीना जी
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स बेहतरीन सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुन्दर प्रस्तुति आज की ! मेरी रचना को स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सप्रेम वन्दे मीना जी !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंप्रभावी एवं आकर्षक सूत्रों से सजी चर्चा के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लिंक्स प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपने मेरी पोस्ट को शामिल किया इस हेतु हार्दिक आभार आपका प्रिय मीना भारद्वाज जी 🙏🍁🙏
हार्दिक धन्यवाद मीना भारद्वाज जी 🙏
जवाब देंहटाएंआभारी हूं कि आपने चर्चा मंच में मेरी इस पोस्ट को शामिल किया है।
पुनः धन्यवाद 🙏💐🙏
आपने सभी पठनीय और रोचक सामग्रियों की लिंक्स उपलब्ध कराई है, साधुवाद है आपको 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति मीना जी, मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार
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