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सोमवार, अक्टूबर 19, 2020

'माता की वन्दना' (चर्चा अंक-3859)

शीर्षक पंक्ति : आदरणीय   जी।

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सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

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आज की चर्चा का आंरभ करते हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना
माता की वन्दना की कुछ पंक्तियों से-

बनी चन्द्रघंटा तीजे दिन,
मन्दिर में रहती हो पल-छिन,
सुख-वैभव तुमसे है आता।
दया करो हे दुर्गा माता।।

आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ रचनाएँ-

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 माता की वन्दना 
"दया करो हे दुर्गा माता"
 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')

प्रथम दिवस पर शैलवासिनी,
शैलपुत्री हैं दुख विनाशिनी,
सन्तति का माता से नाता।
दया करो हे दुर्गा माता।।

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व्यंग्य - कातिल सिकंदर / महान हिटलर

सिकंदर महान! एक इतिहास बताने वाले चैनल पर जब "सिकंदर महान" सुना तो भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह की याद आ गई। कठपुतली के रुप में शासन करने के बाद उनके अंतिम साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की उम्मीद है इतिहास उन्हें एक अच्छे प्रधानमंत्री के रूप में याद करेगा। आखिर मनमोहन सिंह जी को अपने नाम को लेकर इतिहास की चिंता क्यों हुई?
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साथ छूटा वक्त रूठा
कौन बनता है सहारा
प्रेम फीका क्रोध तीखा
टूटता सुख का सितारा
पृष्ठ की उर्वर मृदा पर
अक्षरों के बीज बोई
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आँधी और शीतल बयार


तू हमेशा शिथिल सुस्त सी,
धीरे-धीरे बहती क्यों...?
सबके सुख-दुख की परवाह,
सदा तुझे ही रहती क्यों...?

फिर भी तेरा अस्तित्व क्या,
कौन मानता है तुझको..?
अरी पगली ! बहन मेरी !
सीख तो कुछ देख मुझको।
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मन बहुत प्रताड़ित है कई दिनों से 
हाथरस के हादसे की खबर ने जैसे 
अंदर ही एक कबर खुदवा रखी ऐसे 
उसमें न समा पाती है लाश भी ऐसे 
जब उसके चिथड़े-चिथड़े हो गए हों
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इच्छा नहीं होती, लेकिन चाहने से
सब कुछ नहीं मिलता, उम्र -
भर की अर्ज़ी से भी,
कहाँ मिलता है
कुछ पलों
का
अवकाश, बारम्बार अपनी धुरी पे
लौट आता है इंसान।
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अनायास मन में सोच उभरती है.....
क्या विध्वंसकारी विचारों पर अंकुश लगेगा?
क्या नेताओं को देश विरुद्ध बोलने का लाइसेंस मिला है?
सामान्य नागरिक के लिए कानून है तो उनके लिए क्यों नही ?
यह अन्धेर अब ज्यादे दिन नही टिकेगा.......
इस अंधेरी रात का उजास होगा....
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वह भाग रही थी रस्सी तुड़वाकर
आधे जीवन की तपस्या का फल थी 
उसके दौड़ने की सहज-सुगम सजगता
मैदे जैसी मिट्टी से भरे रास्ते पर
पतझड़ के पत्ते-सी लुढ़क रही थी वह आनन्द में 
सूजी आँखों की पलकें मूँदे ही सही 
उसे देखकर यूँ फूला 
फूल पड़ीं थी सूखीं लताएँ बेमौसम
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क्या कह रहे हो ? क्या हो रहा है देश में? यहां हर कोई अपने आप को राजनीति में युवा और जुझारू नेता कहता है भले सिर के बाल झड़ गए हो। एक कहावत है न "उम्र पचपन का दिल बचपन का"।उम्र भले 50 के पार चली गई हो तो क्या फर्क पड़ता है प्रधानमंत्री पद के लिए तो अभी भी युवा ही है। मुंह से बोलने से नहीं होता है न उसके लिए मेहनत और संघर्ष करना पड़ता हैं। यहां तो कुछ और ही है बैठे बिठाए राज पाठ मिल गया है। कहने को लोकतंत्र है
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सागर: साहित्य एवं चिंतन | पुनर्पाठ 12 | सुरेश आचार्य, शनीचरी का पण्डित | पुस्तकवर्षा सिंह
    इस बार पुनर्पाठ के लिए मैंने चुना है एक ऐसी पुस्तक को जो एक व्यक्ति विशेष पर केंद्रित है अर्थात उस विशेष व्यक्ति के बारे में समग्र जानकारी प्रदान करने में सक्षम है, जो जनप्रिय है, लोकप्रिय है और साहित्य में ही नहीं वरन समाज में भी विशेष स्थान रखता है। जी हां, वे विशेष व्यक्ति हैं प्रो. सुरेश आचार्य। वे व्यंग विधा के पुरोधा हैं, वे सामाजिक सरोकार रखते हैं तथा वे जनप्रिय हैं। इसलिए इस किताब की अर्थवत्ता अपने आप द्विगुणित हो जाती है कि जो भी व्यक्ति डॉ सुरेश आचार्य के बारे में जानना चाहता है, उनके बचपन के बारे में, उनकी जीवनचर्या के बारे में, उनके लेखन के संबंध में, उनके राजनीतिक विचारों के बारे में, तो उसे यह सभी जानकारी इस पुस्तक में मिल सकती है। डाॅ. लक्ष्मी पांडेय द्वारा संपादित यह पुस्तक कुल चारखंड में विभक्त है इसे अभिनंदन ग्रंथ भी कहा जा सकता है।
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वे मुस्तैदी से ले जाते हैं शव

अस्पताल से देश के कोने अँतरे तक

गाँव शहर गली मोहल्ले तक 

वे ठीक-ठीक से पहुँचा आते हैं

एक मृतक देह

  

नाम गोत्र धर्म हीन 

मरते हैं अस्पताल में

मरते हैं बेपता 

पत्नी पुत्र संबंधी विहीन लोग मरते हैं

किसी ख़ुफ़िया जगह 

निपटा आते हैं शव ढोने वाले

बड़ी ही शाइस्तगी से

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आज का सफ़र यहीं तक 
फिर फिलेंगे 
आगामी अंक में 
@अनीता सैनी 'दीप्ति' 
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10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय अनीता जी मेरे ब्लॉग को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार।

    जवाब देंहटाएं
  2. मातृ वंदना के साथ विविध रचनाओं से सजा अंक मंत्रमुग्ध करता है, मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार। शारदीय नवरात्रि की असंख्य शुभकामनाएं - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  3. पठनीय लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    अनीता सैनी जी आपका हार्दिक धन्यवाद।
    शारदेय नवरात्रों की शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह बहुत ही सुन्दर रचना संकलन, शारदीय नवरात्र की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐
    मेरी रचना को स्थान देने केलिए सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी रचनाये बहुत सुन्दर, हमारी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. नवरात्रि की शुभकामनायें, सुंदर चर्चा !

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुन्दर सराहनीय प्रस्तुति, सभी लिंक्स बहुत उम्दा एवं पठनीय... मेरी रचना को स्थान देने हेतू बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।

    जवाब देंहटाएं
  8. मेरी रचना को यहाँ स्थान देने का बहुत-बहुत शुक्रिया
    सभी रचनाएं उम्दा और इन तक पहुंचाने के लिए आपका शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत अच्छी चर्चा....

    मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार अनीता सैनी जी 🙏
    - डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं

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