मित्रों!
बिना किसी भूमिका के
बुधवार की चर्चा में कुछ लिंक देखिए।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी द्वारा लिखी गई
मेरी पुस्तक 'एहसास के गुंचे' की समीक्षा
समीक्षा किसी रचनाकार के लिए आत्ममंथन के साथ प्रोत्साहन एवं आत्मावलोकन का आधार बनती है। भावी लेखन के लिए अनेक प्रकार के सबक़ समीक्षा में निहित होते हैं। निस्संदेह पुस्तक की समीक्षा पाठक को पुस्तक के प्रति उत्सुक बनाती है। साहित्यिक समीक्षाएँ अनेक मानदंडों के मद्देनज़र लिखीं जातीं हैं जिनमें रचनाकार, पाठक और समाज को बराबर अहमियत दी जाती है।
आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी द्वारा लिखी गई मेरी पुस्तक 'एहसास के गुंचे' की समीक्षा आपके समक्ष प्रस्तुत है-
अनीता सैनी, गूँगी गुड़िया
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वोटरों को लीलने को, आ गये फकीर हैं
अमन-चैन छीनने को, आ गये हकीर हैं
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तिजारतों के वास्ते, बना रहे हैं रास्ते,
हरी घास छीलने को, आ गये अमीर हैं
उच्चारण
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कोहरे के माध्यम से आज की समस्याओं और समाधान पर लिखने का प्रयास किया है
कई शब्द अपने मे गहन अर्थ समेटे है आप की प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
जब उष्णता में आये कमी
अवशोषित कर वो नमी
रगों में सिहरन का
एहसास दिलाये
दृश्यता का ह्रास कराता
सफर को कठिन बनाता है
कोहरा चारों ओर फैलता जाता है।
anita _sudhir, काव्य कूची
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साथी रे ......
सितारे भी सो गये चांद के संग में
अंतर की चाँदनी टिमटिमाए अंग में
चलो छुप जाएं हम मूँद के पलकें
देख लें सपनों को जो होंगे कल के
Archana Chaoji, मेरे मन की
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विकास नैनवाल 'अंजान', एक बुक जर्नल
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समाज की उधड़ती परतें : नशा
समाज की पर्तें उधड़ रही हैं , नेपोटिज्म ,पॉलिटिकल कनेक्शन ,ड्रग कनेक्शन और रिश्तों की टूटन । रिश्तों की टूटन अन्ततः डिप्रेशन की तरफ ले जाती है। ये साफ़ होता जा रहा है कि आज की आर्टिफिशयल चमक-दमक भरी दुनिया किस तरह नशे की गिरफ़्त में आ चुकी है। ड्रग्स पार्टीज करना महज़ मनोरँजन के लिए या शौक नहीं है ;यहाँ तलाशे जाते हैं मौके यानि ऊपर चढ़ने की सीढ़ियाँ । वही लोग जो यहाँ किसी उद्देश्य से आते हैं वो खुद कभी किसी के लिए सीढ़ी नहीं बनते ; बल्कि दूसरों के पाँव के नीचे की जमीन तक खींचने के लिए तैय्यार रहते हैं । पहले-पहल कोई मॉडर्न होने के नाम पर ड्रग्स चखता-चखाता है ;फिर धीरे-धीरे ये लत बन जाता है ,जैसे धीमे-धीमे कोई जहर उतारता रहता है अपनी रगों में ।
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मनोज्ञ रश्मियाँ
समेटने लगी हैं स्वयं को
भू पर बिखरे
अतिशयोक्तिपूर्ण आभामंडल
विरक्त हो
ज़िंदगी की दरारें
वक़्त बे वक़्त चाहती हैं भरना
अनीता सैनी, गूँगी गुड़िया
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Anita, डायरी के पन्नों से
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PAWAN VIJAY,
'दि वेस्टर्न विंड' (pachhua pawan)
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हिंदी ग़ज़ल
पछताना क्या क्या यूँ रोना
हुआ यदि जो न था होना
कल न था कल होना है जो
जीवन है बस पाना-खोना
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पंजाब में बदलता राजनीतिक परिदृश्य
पिछले दिनों संसद ने खेती-किसानी संबंधी कई प्रस्ताव पारित किये। अब राष्ट्रपति महोदय के हस्ताक्षर से वे कानून भी बन चुके हैं। इनका विरोध कई नेता और दल कर रहे हैं। उनमें से कई भूल गये कि उन्होंने भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में इन्हें स्थान दिया था; पर चूंकि मोदी सरकार ने इन्हें पारित किया है, इसलिए उन्हें विरोध करना ही है।
यहां राजनीतिक विश्लेषकों को शिरोमणि अकाली दल के रुख पर भारी आश्चर्य हुआ है। पहले तो उसके नेता चुप रहे; पर संसद में विधेयक आने पर मंत्री महोदया ने त्यागपत्र दे दिया। फिर उन्होंने रा.ज.ग से भी नाता तोड़ लिया।
अब वे अपनी अलग ढपली बजा रहे हैं। सड़क और रेलमार्ग रोक रहे हैं। इसका औचित्य समझना कठिन है...
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Akanksha -Asha Lata Saxena
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vandan gupta,
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र
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अब 15 अक्टूबर से खुलने वाले हैं स्कूल और कॉलेज
गृह मंत्रालय ने की गाइडलाइन जारी
अब स्कूल और कॉलेज खोले जाने पर शिक्षा मंत्रालय ने गाइडलाइंस जारी की है हरियाणा उत्तर प्रदेश असम महाराष्ट्र और सभी राज्यों में अब 15 अक्टूबर से स्कूल खोल सकते हैं लेकिन अब ऑपरेटिंग प्रोसीजर येनि SOP यहां पहले ही जारी कर चुके हैं करोना से लेकर शिक्षा मंत्रालय मैं गाइडलाइंस जारी की है
केंद्र सरकार ने अभी तक इन राज्यों में स्कूल खोलने की अनुमति नहीं दी गई है पश्चिम बंगाल दिल्ली उत्तराखंड तमिल नाडु इन सभी राज्यों में अभी तक स्कूल खोलने की अनुमति नहीं दी गई है जहां पर ज्यादा कोरोना हो वहां पर स्कूल खोलने की अनुमति नहीं दी गई है अब दिल्ली में 31 अक्टूबर तक स्कूल और कॉलेज बंद ही रहेंगे।
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Swarajya karun, मेरे दिल की बात
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आकाश
से
झरता हुआ अमलतास, यूँ भी आते
जाते मुट्ठी खुली ही रहती है, ये
और बात है कि तुमने मुझे
जकड़ रखा है, बहुत ही
नज़दीक, अपने
दिल के
पास,
शांतनु सान्याल, अग्निशिखा :
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हम जी रहे हैं खुदा की मेहरबानी है
न हौसला है न शौक है न जुनून है
क्या कहूं बड़ी बेशर्म सी जवानी है
किसी को बताऊँ भी तो बताऊँ क्या
उदास मौसम हैं उदास ज़िंदगानी है
एक बोर आदमी का रोजनामचा
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कवि ह्रदय जब इस तरह की बातों से व्यथित होता है तो अपने मन की भावनाओं को अमली जाम पहनने के लिए वो शब्दों का...अपनी लेखनी का सहारा लेता है। इस तरह की तमाम विसंगतियों से व्यथित हो जब कोई कलमकार अपनी बात...अपनी व्यथा...अपने मनोभावों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए अपनी कलम उठाता है तो स्वत: ही उसकी लेखनी...
राजीव तनेजा, हँसते रहो
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ढ़लते चाँद के संग
पुरसोज़ नज़्म की मानिंद
एक ख़्वाब ने दी है
बड़ी ही नामालूम सी दस्तक
और बस इतना ही पूछा
भर लो मुझको आँखों में
निवेदिता श्रीवास्तव, झरोख़ा
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Sanjay Grover, saMVAdGhar संवादघर
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झरोख़ा
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बंजारा बस्ती के बाशिंदे
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आज के लिए बस इतना ही...!
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बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर।मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसदा की तरह उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ अपने आप में लाजवाब हैं, सुन्दर संकलन व प्रस्तुति, मुझे जगह देने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति सर, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण प्रस्तुति |मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंसदा की तरह लाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएं