मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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आज की चर्चा में सबसे पहले प्रस्तुत है
एक जानी-मानी हिन्दी ब्लॉगर
डॉ. वर्षा सिंह का परिचय उन्हीं की जुबानी...
M.Sc. in Botany, Doctorate in Electro Homeopathy मैं यानी डॉ. वर्षा सिंह बचपन से लेखन कार्य कर रही हूं। मैं वनस्पति शास्त्र में एम.एस.सी हूं, इलेक्ट्रो होम्योपैथी में डॉक्टर हूं तथा मध्यप्रदेश पूर्वक्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी लिमि. सागर से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुकी हूं। मेरे छः ग़ज़ल संग्रह - वक्त पढ़ रहा है, सर्वहारा के लिए, हम जहां पर हैं, सच तो ये है, दिल बंजारा, ग़ज़ल जब बात करती है ; दो नवसाक्षरों हेतु पुस्तकें -पानी है अनमोल, कामकाजी महिलाओं के सुरक्षा अधिकार; एक आलोचना पुस्तक-हिन्दी ग़ज़ल: दशा और दिशा प्रकाशित हैं। मुझे मेरे सृजनात्मक लेखन हेतु केन्द्रीय हिन्दी परिषद, मध्य प्रदेश राज्य विद्युत मण्डल द्वारा ‘विशिष्ट हिन्दी सेवी सम्मान,हिन्दी परिषद् (बीना शाखा) मध्य प्रदेश राज्य विद्युत मण्डल द्वारा ‘हिन्दी शिरोमणि’ सम्मान,राजभाषा परिषद् भारतीय स्टेट बैंक, सागर शाखा द्वारा ‘उत्कृष्ट साहित्य सृजनकर्ता सम्मान’,हिंदी साहित्य सम्मेलन शाखा सागर द्वारा ‘सुधारानी जैन महिला साहित्यकार सम्मान’, बुन्देली लोक कला संस्था, झांसी, उत्तरप्रदेश द्वारा ‘गुरदी देवी सम्मान’ , शक्ति सम्मान आदि अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। मैं मानती हूं कि महिलाएं शक्ति का पर्याय हैं। उन्हें अपनी शक्ति को पहचान कर आत्मनिर्भर बनना चाहिए, ताकि देश और समाज के विकास में वे अपना पूर्ण योगदान दे सकें।
आपके ब्लॉग हैं-
ग़ज़लयात्रा GHAZAL YATRA
Varsha Singh Photography Blog आदि...।
अब देखिए इनके ब्लॉग
ग़ज़लयात्रा GHAZAL YATRA
की एक पोस्ट
बूढ़ी आंखें |
अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस |
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मैं हिमगिरि हूँ सच्चा प्रहरी,
रक्षा करने वाला हूँ।
शीश-मुकुट हिमवान अचल हूँ,
सीमा का रखवाला हूँ।।
मैं अभेद्य दुर्ग का,
उन्नत बलशाली परकोटा हूँ।
मैं हूँ वज्र समान हिमालय,
कोई न छोटा-मोटा हूँ।।
मुझको मत पाषाण समझना,
पत्थर नहीं शिवाला हूँ।
शीश-मुकुट हिमवान अचल हूँ,
सीमा का रखवाला हूँ।।
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तुम्हारे प्यार का
रंगीन महल
मुकम्मल होने से पहले
क्यों ढहता है
बार-बार
भरभराकर
Ravindra Singh Yadav,
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जो झूठा होता है, वही बात बनाता है अक्सर
दिलबागसिंह विर्क, Sahitya Surbhi
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ऋग्वेद और आर्य सिद्धांत: एक युक्तिसंगत परिप्रेक्ष्य - ( छ )
(मूल शोध - श्री श्रीकांत तलगेरी)
(हिंदी-प्रस्तुति – विश्वमोहन)
अन्य भारोपीय शाखाओं के अपनी जगह छोड़ने का इतिहास
जैसा कि भाषायी आँकडें यह दिखाते हैं क़ि अपनी मूल मातृभूमि में भारोपीय-भाषी बोलियाँ बोलने वाले समूहों में से ही एक भारतीय आर्य भी थे। इस तरह की अलग-अलग बोलियाँ बोलने वाले अन्य समूह भी ३००० वर्ष ईसा पूर्व निवास करते थे और आज का ज्ञान यह बतलाता है कि इस भारोपीय भाषा परिवार में अलग-अलग ११ शाखाएँ विकसित हो गयी थीं।
पौराणिक इतिहास से यह भी पता चलता है कि उस समय उस क्षेत्र में निवास करने वाली भारतीय-आर्यों की अनेक जनजातियों में से एक थी – ‘पुरु’ जनजाति। ऋग्वेद के मंडलों में उनकी पहचान पुरुओं के एक ख़ास वंश की उपजाति ‘भरत-पुरु’ के रूप में है। ये ‘भरत-पुरु’ ईसा से ३००० साल पहले पश्चिमोत्तर उत्तर-प्रदेश और हरियाणा के मूल निवासी थे। उनके आस-पास रहने वाली अन्य जन-जातियाँ भी थीं। इस आशय की तार्किक परिणति तो इसी बात में होती है कि ईसा से ३००० साल पहले अपने हरियाणा और उत्तर-पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मातृभूमि में पुरु जनजाति रहती थी और इनके परित: अन्य बोलियाँ बोलने वाली जो जनजातियाँ निवास करती थीं, उनकी ही बोलियों ने भारोपीय भाषा- परिवार की अन्य शाखाओं को जन्म दिया।
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इस भीषण तबाही में भी
बच गई सही-सलामत
धरती की गोद में छिपी
नन्ही, कमज़ोर-सी दूब.
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आज के लिए बस इतना ही...।
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बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति!आभार और बधाई!!!
जवाब देंहटाएंवंदन संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी, मैं उन शब्दों का चयन कर पाने में स्वयं को असमर्थ पा रही हूं,. जिनके माध्यम से मैं आपके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित कर सकूं। अपना परिचय और पोस्ट चर्चा मंच पर देख कर हृदय प्रफुल्लित हो उठा है। आपने स्वयं मेरा परिचय दिया, यह मेरे लिए किसी पारितोषिक से कम नहीं।
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं आपको एवं चर्चा मंच के सभी लेखकों, पाठकों एवं संयोजनकर्ताओं को🚩🌺🚩
पुनः हार्दिक आभार आपकी इस सदाशयता के प्रति 🙏🍁🙏
- डॉ. वर्षा सिंह
उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा। मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सराहनीय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी प्रणाम, शानदार संकलन, डा. वर्षा सिंंह के बोर में जानकार अच्छा लगा,,विश्वमोहन जी की पोस्ट बहुत सार्थक रही और दिग्गज मुरादाबादी के हस्ताक्षरित चंदा मामा ... गज़ब रहा
जवाब देंहटाएंआदरणीय भाई साहब बहुत ही शानदार आयोजन । साहित्यिक मुरादाबाद की प्रस्तुति साझा करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,इन सारगर्भित चर्चाओं के लिए साधुवाद एवं नमन 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविविधताओं से परिपूर्ण चर्चा, बहुत सार्थक संयोजन व सुन्दर प्रस्तुति, मुग्धता ही मुग्धता, मेरी रचना शामिल करने हेतु हार्दिक आभार - - शारदीय नवरात्रि की सभी रचनाकारों को असंख्य शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंaabhar dr sahab
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