मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
--
--
हमने शब्दों का व्यापार करना चाहा
परंतु शब्द भी खोखले प्रभावरहित थे
हमारा व्यवहार संवेदनारहित
भाव दिशा भूल ज़माने से भटक चुके थे
शुष्क हृदय पर दरारें पड़ चुकी थी
अब रिश्ते रिश्ते नहीं पहचान दर्शाने हेतु
मात्र एक प्रतीक बन चुके थे
अनीता सैनी, गूँगी गुड़िया
--
विभा रानी श्रीवास्तव, "सोच का सृजन"
--
- करवा चौथ
- सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्पहोता नहीं जिसका विकल्पएक ही अक्स समाया रहताआँख से ह्रदय तकजीवनसाथी को समर्पितनिर्जला व्रत चंद्रोदय तक।
Ravindra Singh Yadav, हिन्दी-आभा*भारत
--
- जलें दीप से दीप
- दीवाली त्यौहार पर, जलें दीप से दीपसब अन्धकार दूर हों, हो रौशनी समीप ।हो रौशनी समीप, उमंग जगे हर घर मेंकरें तमस का नाश, हो उजास विश्व भर में ।कहे विर्क कविराय, भरे खुशियों की थालीफैले हर्षोल्लास , मनाएं जब दीवाली ।
दिलबागसिंह विर्क, Sahitya Surbhi
--
कितनी सुन्दर होती धरती,
जो हम सब मिल जुल कर रहते
झरने गाते, बहती नदिया,
झरने गाते, बहती नदिया,
दूर क्षितिज तक पंछी उड़ते
Sadhana Vaid, Sudhinama
--
परस्पर स्नेह की अमृत- धारा,
इस जग में जहाँ बह जायेगी।
क्षमा, दया और करुणा ,
वहाँ स्वतः चली आएगी।
इस जग में जहाँ बह जायेगी।
क्षमा, दया और करुणा ,
वहाँ स्वतः चली आएगी।
अपरिचित को अपरिचित से ,
सहायता सुलभ मिल जायेगी।
असहाय और दीन भावना,
स्वतः नष्ट हो जायेगी।
--
आनन्द पाठक, आपका ब्लॉग
--
उड़ता हुआ कोई ख़त, ड्रोंगो की तरह
कलाबाज़ी दिखाता हुआ, मेघ को
अपने हाथों, धीरे से सरकाता
हुआ, उतरे कभी अधपके
धान के दहलीज़,
ओस की बूंदों
से है लिखा
हुआ,
मेरे घर का पता, सुख गंध को तुम -
बांट देना सभी को
कलाबाज़ी दिखाता हुआ, मेघ को
अपने हाथों, धीरे से सरकाता
हुआ, उतरे कभी अधपके
धान के दहलीज़,
ओस की बूंदों
से है लिखा
हुआ,
मेरे घर का पता, सुख गंध को तुम -
बांट देना सभी को
शांतनु सान्याल, अग्निशिखा
--
Onkar Singh 'Vivek', मेरा सृजन
--
--
arun dev, समालोचन
--
उषा किरण, ताना बाना
--
--
पी.सी.गोदियाल "परचेत", 'परचेत'
--
तूफानों में जो जल सके वो चिराग लाओ
हरसू अंधेरा ही अंधेरा है उजाले लाओ !!
मजहब के छालों से जख़्मी तन मन होरहा
हो सके तो मोहब्बत के भरे प्याले लाओ!!
उर्मिला सिंह, सागर लहरें
--
निवेदिता श्रीवास्तव, झरोख़ा
--
Randhir Singh Suman, लो क सं घ र्ष !
--
अरुण चन्द्र रॉय, सरोकार
--
--
आज के लिए बस इतना ही...।
--
वन्दन संग हार्दिक आभार आपका..
जवाब देंहटाएंश्रम साध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
आदरणीय सर,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति, ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक। मेरी रचना को स्थान देने के लिये आपको हृदय से अत्यंत अत्यंत आभार। मेरा बहुत बड़ा सैभाग्यकि मुझे आप सभी बड़ों का रोत्साहन और आशीष मिला और मिलता रहे यही कामना करती हूँ। पुनः हार्दिक आभार और प्रणाम।
बहुत सुंंदर सारगर्भित प्रस्तुति । सभी चयनित रचनाकारों को शुभकामनाएँँ।
जवाब देंहटाएंजीवन की विभिन्न रंगों से सजा अंक बारम्बार मंत्रमुग्ध करता है - - मुझे शामिल करने हेतु ह्रदय से आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंविभीन्न भाओं के रंगों से सजा गुलदस्ता बहुत कुछ सीख देता है तथा इस पर सोचने के लिए विवश करता है।
जवाब देंहटाएंआभार मान्यवर हमारी रचना को भी इस मंच पर
शामिल करने के लिए।
रोचक लिंक्स से सजा हुआ चर्चाअंक। मेरी पोस्ट को इन रचनाओं में शामिल करने के लिए आभार, सर।
जवाब देंहटाएंसुंंदर प्रस्तुति । आभार आपका, शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा आदरणीय शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंसदैव ही आपका चयन सर्वश्रेष्ठ रहता है। आपकी पारखी दृष्टि को नमन 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा में बहुत ही सुंदर सार्थक सूत्रों का बेहतरीन संयोजन ! मेरी रचना को स्थान दिया ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवम् आभार आदरणीय शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संकलन।मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति...मेरी रचना को स्थान देने का आभार !
जवाब देंहटाएंइस चर्चा मंच ।इन श्रेष्ठ रचनाओं के चयन के लिए साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ
जवाब देंहटाएं