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बुधवार, अक्टूबर 14, 2020

"रास्ता अपना सरल कैसे करूँ" (चर्चा अंक 3854)

 मित्रों।

बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

देखिए मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक।

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आज हम चर्चा कर रहे हैं 

नाम- बासुदेव अग्रवाल; शिक्षा - B. Com. जन्म दिन - 28 अगस्त, 1952; निवास स्थान - तिनसुकिया (असम) रुचि - काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वार्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न हूँ। परिचय - वर्तमान में मैँ असम प्रदेश के तिनसुकिया नगर में हूँ। whatsapp के कई ग्रुप से जुड़ा हुआ हूँ जिससे साहित्यिक कृतियों एवम् विचारों का आदान प्रदान गणमान्य साहित्यकारों से होता रहता है। इसके अतिरिक्त हिंदी साहित्य की अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में मेरी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं। सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्रों में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती है। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।  इनके   ब्लॉग हैं-

Nayekavi

आपका ब्लॉग

kavyasuchita 

आज देखिए आपका ब्लॉग पर प्रकाशित इनकी रचना-

 "एक पंचिक"  

पट्टी बाँधी राज माता भीष्म हुआ दरकिनार... 

 "एक पंचिक"
पट्टी बाँधी राज माता भीष्म हुआ दरकिनार,
द्रौपदी की देखो फिर लज्जा हुई तार तार।
न्याय की वेदियों पर,
चलते बुलडोजर,
शेरों के घरों में जब जन्म लेते हैं सियार।।
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भाव अपनी ग़ज़ल में कैसे भरूँ
शब्द को अपने गरल कैसे करूँ
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फँस गया अपने बुने ही जाल में
रास्ता अपना सरल कैसे करूँ... 

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मैं और मेरा मन 

श्रृंगार में लीन इच्छाएँ अतृप्त 
काज फिरे कर्म कोसता आज 
धड़कन दौड़ने को आतुर 
नब्ज़ ठहरी सुनती न उसकी बात 
हाय ! मानव की यह कैसी जात 
मन सुबक-सुबककर रोया  
आँख का पानी आँख में सोया। 
अनीता सैनी, गूँगी गुड़िया  
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कैसा राष्ट्रीय चरित्र विकसित हो रहा है...?
हमारा मानस कहाँ  सो  रहा है ...?
ज़रा सोचिये...!
ठंडे दिमाग़ से,
क्या मिलेगा, 
भावी पीढ़ियों को, 
कोरे सब्ज़बाग़ से...!  

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प्यार को इबादत, महबूब को ख़ुदा कहें  

क्यों हम इस ख़ूबसूरत ज़िंदगी को सज़ा कहें 
आओ प्यार को इबादत, महबूब को ख़ुदा कहें। 

मुझे मालूम नहीं, किस शै का नाम है वफ़ा
तूने जो भी किया, हम तो उसी को वफ़ा कहें। 
दिलबागसिंह विर्क, Sahitya Surbhi  

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कोपलों की स्मृति 

ये जो झरे हैं पेड़ों से  

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ll जिरह ll 

जिरह होती रही तेरी मेरी साँसों में l
साजिश कोई रची यादों के खुले पन्नों ने ll
 
बेकाबू हिचकियाँ मंजर बेपर्दा आरज़ू बबंडर  l 
साँसों की चिल्मन में तेरे ही रंगों का समंदर ll
MANOJ KAYAL, RAAGDEVRAN  

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कवि श्रीकृष्ण शर्मा का दोहा -  

" लिखना यदि होता सरल " ( भाग - 6 )

कवि श्रीकृष्ण शर्मा (Kavi Shrikrishna Sharma)  

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उस लोक में 

जहां आलोक है अहर्निश 

किंतु समय ही नहीं है जहाँ

रात-दिन घटें कैसे ? 

पर शब्दों की सीमा है 

जागरण के उस लोक में 

Anita, मन पाए विश्राम जहाँ 

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गज़ल 

ज़मीर की ज़मीन बंजर होगई आजकल
उसूलों की तामील दीजिये तो बात बने।।

रिश्तों की क्यारी में रेत ही बाकी बची रोने को 
 इसमें स्नेह के फूल खिले तो बात बने।। 
उर्मिला सिंह, सागर लहरें  

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Untitled हथेली पर सूरज उगाए

लम्बे डग भरते
तुम जो ये सोचते हो न कि
तुमने मुझे पीछे छोड़ा हुआ है 
तो सुनो -
गलतफहमी है तुम्हारी 
सच तो ये है कि 
पीछे तुमने नहीं छोड़ा 
बल्कि...
मैंने ही अपने माथे का सूरज
तुम्हारी हथेली में रोप 
तुमको आगे किया हुआ है ..
उषा किरण, ताना बाना 

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अग्रसेन जयंती की 15 शुभकामनाएं  

(Agrasen Jayanti wishes/sms in hindi) 

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विकास नैनवाल 'अंजान', दुई बात  
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क्या तुमने किसी से प्यार किया है

किया है तो कब और कहाँ ?

 सोच विचार कर बताना 

वह कैसा प्यार था  भक्ति  प्रेम या आकर्षण

Akanksha -Asha Lata Saxena 

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मुझे आकाश चाहिए 

अपने सभी पिजड़े हटा दो,  मेरे पंख मुझे लौटा दो  मुझे आकाश चाहिए। देवेन्द्र पाण्डेय, 

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मुमकिन नहीं लौटना  

बिम्बों के
सहारे,
वो
बहुत ख़ुश है अपने इस निमज्जन
में, वो नहीं चाहता लौट जाना,
उसे याद भी नहीं अतीत
का कोई ठिकाना 
शांतनु सान्याल, अग्निशिखा :  
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आज के लिए बस इतना ही...।
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9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर ।मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. हमेशा की तरह मंत्रमुग्ध करता अंक, मुझे जगह देने हेतु हार्दिक आभार नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को 'चर्चा मंच' में स्थान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. पठनीय रचनाओं की खबर देते सूत्र, आज के अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. सराहनीय सूत्रों से सजी बहुत सुन्दर और श्रमसाध्य चर्चा प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं

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