स्नेहिल अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
(शीर्षक और भूमिका आदरणीय अनीता जी की रचना से )
"महातपस्विनी जगत मा
पराम्बा, महायोगिनी,
शिव प्रिया, माँ महागौरी
जगत तोषिणी व पोषिणी !"
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अष्टभुजाधारी माँ दुर्गा की चरण-वंदना करते हुए चलते हैं...
आज की रचनाओं की ओर....
मातारानी की कृपा हम सभी पर बनी रहें.....
**************गीत "मुकद्दर रूठ जाते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
करें हम लाख कोशिश, आबरू अपनी बचाने की,
मगर खोटी नजर हम पर, गड़ी है इस जमाने की,
सरे राहों में इज्जत को, लुटेरे लूट जाते हैं।
समय होता अगर खोटा, मुकद्दर रूठ जाते हैं।।
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उस देवी की पूजा करें हम
थामती जो हर विपद में
ज्ञान दीपक पथ दिखाती,
प्राण का आधार भी है
रात्रि बन विश्राम देती !
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"क्षणिकाएं"
जागती आँखों ने
देखे हैं चंद ख्वाब
असामान्य सी
सामान्य परिस्थितियों में
और मन उनको
सहेजने की
जुगत में लगा है
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जीवन संतुलन
परायापन दुश्वार लगता
अलगाव भाव प्रतीति
अन्जाने हो जाती गलती
जग की है यही रीति
आज छोड़ कर मतभेदों को
बात करें अर्जन की।।
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प्रकृति निधि
यही प्रकृति निधि यही बही खाते हैं
मोह, प्रेम राग/अनुराग भरे नाते हैं
चेहरे ये आते जाते राहगीरों के नहीं
ये आनन हर उर में घर कर जाते हैं।
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691. चलते ही रहना (चोका - 14)
जीवन जैसे
अनसुलझी हुई
कोई पहेली
उलझाती है जैसे
भूल भूलैया,
कदम-कदम पे
पसरे काँटें
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मिसेज दीक्षित भाग-1
अरुण कितनी मधुर आवाज़ है ना? तनिषा सामान लगाती हुई
खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई। दोनों आज ही इस नए घर में
रहने के लिए आए थे। क्या करने लगी तनिषा? आओ यार पहले
मेरी मदद करो फिर यह गाना वाना सुनना।
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मुफ़्त की सलाह देने वालों के लिए एक सलाह।
आपके भी लाइफ में मुफ़्त की सलाह देने वाले लोग आपसे टकरा ही जाते होंगे।
जैसे मैं आपको बताता हूँ ।
बचपन में:
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तिल-तिल जीने वाला हर दिन मरता है
शत्रु की मुस्कुराहट से मित्र की तनी हुई भौंहे अच्छी होती है
मूर्ख के साथ लड़ाई करने से उसकी चापलूसी भली होती है
किसी कानून से अधिक उसके उल्लंघनकर्ता मिलते हैं
ऊँचे पेड़ छायादार अधिक लेकिन फलदार कम रहते हैं
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भाई रे सोंच - समझ कर चल
भाई रे! सोंच -समझ कर चल।
थोड़ा सम्हल-सम्हल कर चल।
यह मत सोंचो आकाश चढ़ूँ।
यह मत सोंचो पाताल गिरूँ।
अपनी धरती पर ही तू चल।भाई..
यह मत सोंचो चलूँ नहीं।
यह मत सोंचो रुकूँ कहीं।
जिस पथ पर कभी निकल।भाई..
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भाग्य का जो चढ़ा दिवाकर
क्या हुए वो पत्थर सब एक किनारे?
मैं बढ़ा था जिनकी ठोकर के सहारे,
अब राह में मेरे फूल बिछाकर
कर रहें हैं स्वागत किस स्वार्थ के मारे?
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आप सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
आज का सफर यही तक
आप सभी स्वस्थ रहें ,सुरक्षित रहें।
कामिनी सिन्हा
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भक्तिभाव से सजी प्रस्तावना के साथ बहुत सुन्दर सराहनीय प्रस्तुति । चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी ।
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआदरणीया कामिनी सिन्हा जी।
आपके श्रम को नमन।
जय माँ दुर्गे, भक्ति रस से सरोबार के साथ उम्दा लिंको का संगम। माँ दुर्गा भवानी की असीम अनुकंपा इसी तरह माँ सरस्वती उपासकों की कलम पर बनी रहे। आपके श्रम को वंदन कामिनी सिन्हा जी।
जवाब देंहटाएंशुभ पर्व की सभी को मंगलकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की शुभकामनाएं, माँ देवी की कृपा से शीघ्र ही कोरोना का समाधान मिले, सुंदर प्रस्तुति! आभार कामिनी जी !
जवाब देंहटाएंआप सभी स्नेहीजनों को तहेदिल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंशारदीय दुर्गोत्सव व नवरात्रि की असीम शुभकामनाएं - - विविध रंगों में सजा चर्चा मंच मुग्ध करता है सभी रचनाएं सुन्दर हैं, मुझे सम्मिलित करने हेतु आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंवाह सुंदर चर्चा,पावन श्लोक से आरंभ भूमिका,सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं,सभी लिंक आकर्षक उपयोगी।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
सुंदर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत प्रस्तुति
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