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शनिवार, अक्टूबर 10, 2020

'सबके साथ विकास' (चर्चा अंक-3850)

शीर्षक पंक्ति : आदरणीय   जी 

सादर अभिवादन। 

शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

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विकास की चर्चा जब आपको चारों तरफ़ से घेर ले तो विकास को समझना ही पड़ता हैअक्सर देखा गया है सामूहिक विकास बहुत बड़ी चुनौती होती व्यक्तिगत विकास की तुलना में। 
सबके साथ संभव हुआ विकास बहुउद्देशीय होता है, सुखदाई होता है जबकि निजी विकास कहीं न कहीं मन को कचोटता रहता है। सामूहिक विकास समता के सिद्धांत की आधारशिला बनता है। 
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
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आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ रचनाएँ-

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 दोहे 

"सबके साथ विकास" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

पथ दिखलाने के लिए, आते हैं नवरात्र।
उनका ही सत्कार हो, जो आदर के पात्र।।
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जग को देता ऊर्जा, नभ में आकर नित्य।
देवों में सबसे बड़ा, कहलाता आदित्य।।

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संशोधित दोहे

 कबीर -

पानी केरा बुलबुला, अस मानस की जात,
देखत ही छुप जाएंगे, ज्यों तारा परभात. 
संशोधित दोहा
पानी केरा बुलबुला, अस भक्तन की जात,
प्रभु हारे, छुप जाएंगे, ज्यों तारा परभात.

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व्यामोह

तमसाकार रात्रि . घनघोर मेघों से घिरा आकाश, दिशाएँ धूसर, रह रह कर मेघों की  गड़गड़ाहट और गर्जना के साथ,बिजलियों की चमकार. वर्षा की झड़ियाँ बार-बार छूटी पड़ रही हैं. जल-सिक्त तीव्र हवाएँ लौट-लौटकर कुटिया का द्वार भड़भडा देती हैं.
   अचानक बिजली चमकी और घोर गर्जना के साथ निकट ही कहीं वज्रपात हुआ.
कुटिया में अकेले  चुपचाप बैठे तुलसी सिहर गए . 
मन बहुत अकुला रहा है?
वह भी तो ऐसी ही घनघोर रात्रि थी जब सारी बाधाएँ पार कर ,रत्ना की खिडकी से जा चढ़े थे.

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अमेरीकी कवयित्री Louise Glück को दिया जाएगा

 साहित्य का #NobelPrize

स्वीडन। द रॉयल स्वीडिस अकादमी ने 2020 के साहित्य के नोबेल प्राइज की घोषणा कर दी है. अमेरीकी कवयित्री लूईस ग्लूक को साहित्य क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा. उनकी 2006 में लिखी गई “Averno” (एवर्नों) और 2014 में लिखी गई “Faithful and Virtuas Night” (फैथफूल एंड वर्चुअस नाइट) के लिए उन्हें साल 2020 का साहित्य का नोबेल प्राइज दिया गया. 

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यादें....

आज यादों की वीणा  झंकृत  होगी तेरी 
याद आएंगे गुजरे जमाने बिताये थे हमने कभी !!

 सागर किनारे  लहरों को देखोगे जब तुम!
 गुनगुनाओगे गीत जो गाये थे हमने कभी!
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मैंने इंटरमीडिएट तो कर रखा है।इधर काफ़ी दिनों  से प्राइवेट बी0 ए0 करने की सोच रहा हूँ परंतु पढ़ाई का समय ही नहीं मिलता। मेरा वज़्न लगातार बढ़ रहा है जिससे कुछ शारीरिक परेशानियाँ भी बढ़ रही हैं।कब से जिम ज्वाइन करने की सोच रहा हूँ पर समय ही नहीं निकाल पा रहा हूँ।मुझे बचपन से ही गायन और वादन में रुचि रही है ।पढ़ाई के दबाव के कारण विद्यार्थी जीवन में तो अपने इस शौक़ को मैं परवान न चढ़ा सकी।सोचा था बाद में ज़रूर मैं गायन और वादन को मनोयोग से सीखकर अपने शौक़ को पूरा करूँगी लेकिन अब शादी के बाद तो घर-गृहस्थी और बच्चों की देखभाल में ही सारा समय निकल जाता है।अपनी रुचि को पूरा करने का बिल्कुल भी समय नहीं मिल पाता।
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आदर्श पुरुषों और प्रकृति के अनुपन चरित्रों पर बच्चों के नाम रखने की परम्परा आदिकाल से रही है, बशर्ते इस कलिकाल में लक्षमसिंह भ्रातसेवक न होकर भ्रातहंता बन जाता है और राधा रुकमणी नाम अश्लील राधे माँ चरित्र। परम्परा के अनुरूप माँ बाप ने उसका नाम बंसतीं रखा कि उनके आते ही घर में बसंत आ गया और उनकी लाडली भी इसी मधुमास की तरह झकमकार फुल्यार और सुगंध वाली बने। आशावाद जीवन को उर्जित और अर्जित बनाने वाला जो ठहरा, सभी धर्मावलंबी इसी आशावाद से आज भी अपने आदर्श और देव पुरुषों के नाम रिपीट करते हैं। 
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जिंदगी में इतने हादसे होने के बाद भी कुछ लोग अपने आप में कोई बदलाव नहीं लाते हैं वह वास्तविकता में सामान्य व्यक्ति नहीं हो सकता और कितना कुछ सहन कर रहा है अपने जीवन काल में जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते आजकल जीवन काल में ऐसा बहुत कुछ देखने को मिल रहा है सिर्फ इतना ही कहूंगा कि इस संकट की घड़ी में कोई एक बार आकर कह दे घबराओ नहीं मैं तुम्हारे साथ हूं। 
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आकाशी गंगा के वासी
उनका पता नहीं मिल पाया ।।
चट्टानें भी ढह जातीं जब
उग आती है उन पर धनिया
उनका मन हीरे का टुकड़ा
बुद्धि बनी है चालू बनिया
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उगता सूरज बोल रहा है,  जागो मेरे प्यारे ।
आलस छोड़ो आँखे खोलो, दुनिया कितने न्यारे ।।

कार्य करो तुम नेक हमेशा, कभी नहीं दुख देना।
सबको अपना ही मानो अब, रिश्वत कभी न लेना।।
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कौन असली है और कौन नक़ली, कहना
है बहुत मुश्किल, सभी जैसे फ़रेब
की दुकान लिए बैठे हैं, ऊँची
आवाज़ वाला गधे को
घोड़ा बता के बेच
गया, और
घोड़ा
वाला देखता ही रह गया, कहाँ है चतुर्थ
स्तम्भ कोई मुझे दिखाए, कोहरा है
घना, न सीढ़ियां नज़र आती हैं
न ही छत, किस मुंडेर पर
दुबका हुआ है प्रजा -
तंत्र, ज़रा मुझे
भी कोई
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आज का सफ़र यहीं तक 
फिर फिलेंगे 
आगामी अंक में 
@अनीता सैनी 'दीप्ति' 
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11 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर चर्चा,हमारी रचना को शामिल करने के लिये हार्दिक धन्यवाद।

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  2. सार्थक चर्चा, सुंदर रचनाओं के साथ - - असंख्य धन्यवाद मुझे जगह देने हेतु - - नमन सह।

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  3. अद्यतन लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार अनीता सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. वेहतरीन लिकों संयोजन, सार्थक चर्चा। मेरी कहानी शामिल करने के लिए आदरणीया दीप्ति जी का आभार व्यक्त करता हूँ। पहाड़ का पहाड़ी जैसे जीवन पर पहाड़ की नारी विमर्श और संघर्ष को आप लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। पुनः आभार।

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  5. लाजवाब लिकों का संयोजन, सुन्दर सार्थक चर्चा प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन चर्चा
    बहुत-बहुत धन्यवाद मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए चर्चा मंच पर

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर सराहनीय भूमिका के साथ बेहतरीन लिंकों से सजी प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं

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