Followers



Search This Blog

Friday, December 04, 2020

"उषा की लाली" (चर्चा अंक- 3905)

सादर अभिवादन!

आप सभी सुधीजन का अभिनंदन एवं स्वागत ।

शुक्रवार की चर्चा का आरम्भ स्मृति शेष बाबा नागार्जुन की कविता "उषा की लाली' से -

--

उषा की लाली में 

अभी से गए निखर

हिमगिरि के कनक शिखर 


आगे बढ़ा शिशु रवि 

बदली छवि, बदली छवि 

देखता रह गया अपलक कवि 

डर था, प्रतिपल 

अपरूप यह जादुई आभा 

जाए ना बिखर, जाए ना बिखर,

--

"हार गये हैं ज्ञानी-ध्यानी"-

डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

नभ में धुआँ-धुआँ सा छाया,

शीतलता ने असर दिखाया,

काँप रही है थर-थर काया,

हीटर-गीजर शुरू हो गये,

नहीं सुहाता ठण्डा पानी।

जाड़े पर आ गयी जवा

***

गूँगी गुड़िया : देखो! तुम अपने पैरों की तरफ़ मत देखो

तुम अपने पैरों की तरफ़ मत देखो 

मैं कहती हूँ न बार-बार मत देखो 

तुम चाँद-सितारों की बातें करो 

पगडंडियों पर बिछी ओस की उलझन कहो 

देखो ! तुम्हें देख कैसे मुस्कुराते हुए 

 धीरे-धीरे चाँदनी बरसाता चलता है चाँद

***

छुटंकी लाल (कहानी)

शहर का बहुत पुराना मोहल्ला था वह। निम्नवर्ग, मध्यम वर्ग तथा उच्च मध्यम वर्ग, के, शिक्षित, अल्पशिक्षित, सभी प्रकार के परिवार इस मोहल्ले में रहते थे। सभी लोग अपने-अपने ढंग से अपना जीवन जी रहे थे।

***

कृषक

हो तुम मेहनतकश कृषक

 तुम अथक परिश्रम करते

कितनों की भूख मिटाने के लिए

दिन को दिन नहीं समझते |

रात को थके हारे जब घर को लौटते

***

कभी ले हरी नाम अरी रसना!

फूटे घट सा है ये जीवन

भरते-भरते भी खाली है

कभी ले हरि नाम अरी रसना !

अब साँझ भी होने वाली है.....

***

इक अलाव जलने दो - डाॅ शरद सिंह

जीवन में 

गरमाहट लाने को

यादों का 

इक अलाव जलने दो

***

भाव शून्य में ठहर गए

कौड़ी-कौड़ी जोड़-जोड़ कर

महल बनाया सपनों का

एक बंवडर आया ऐसा

रूप दिखाया अपनों का

चक्रवात अंतस में उठते

भाव शून्य में ठहर गए।

***

कोरोना की वापसी

बड़ी मुश्किल से भगाया था तुमको,

पर तुम फिर लौट आए,

पहले जो तबाही मचाई थी,

उससे जी नहीं भरा तुम्हारा?

थोड़ी सी भी शर्म बची हो,

तो वापस लौट जाओ,

***

ऊँघता मधुमास भीतर

अनसुनी कब तक करोगे 

टेर वह दिन-रात देता,

ऊँघता मधुमास भीतर 

कब खिलेगा बाट तकता !

***

ख़याल से नहीं न वो गए!

कुछ दिनों से आ रही थी ख़याल में 

बीती हुई कुछ पलछिन हादसे यादें 

हम सोचते रेह गए बस शायद थोड़ा 

हाँ ! थोड़ा रूककर बात ही कर लेते 

आखिरी बार ही मगर अलविदा सही

***

आर्द्र तृष्णा

सागर की प्यास सिर्फ़ पृथ्वी को

है पता, मुहाने पर आ कर

नदी, करवट बदलती

चली गई, हर

एक मोड़

पर,

वो सवाल बदलती चली गई।

***

अलविदा ललित सुरजन जी - डॉ. वर्षा सिंह

प्रस्तुत है स्व. ललित सुरजन जी की एक कविता -

लखनऊ के पास सुबह-सुबह

अभी-अभी

सरसों के खेत से

डुबकी लगाकर निकला है

आम का एक बिरवा,

***

आज का सफर यहीं तक…

आप सबका दिन मंगलमय हो..

धन्यवाद ।

"मीना भारद्वाज"

--

12 comments:

  1. सुप्रभात
    आज सजा है सुन्दर चर्चामंच |मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद मीना जी |

    ReplyDelete
  2. नागार्जुन की सुंदर कविता से आरंभ हुई आज की चर्चा कितने ही मोहक पड़ावों से गुजरी है, सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं, आभार !

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।

    ReplyDelete
  4. बहुत बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    ReplyDelete
  5. सुन्दर चर्चा अंक! अंक के प्रारम्भ में अंकित बाबा नागार्जुन की कविता की पंक्तियों ने लुभाया। अंक में शामिल सभी रचनाएँ अच्छी लगीं। सभी साथी लेखकों को बधाई!
    मेरी कहानी 'छुटंकी लाल' को इस अंक में स्थान देने के लिए आ.मीना जी का हार्दिक आभार!

    ReplyDelete
  6. सुन्दर चर्चा. आभार

    ReplyDelete
  7. खूबसूरत प्रस्तावना के साथ चर्चा मंच का प्रवाह मुग्ध करता है, मुझे सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।

    ReplyDelete
  8. प्रिय मीना भारद्वाज जी,
    आपके श्रम का आईना है आज की चर्चा का सुंदर संयोजन ....।
    साधुवाद 💐

    मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
    शुभकामनाओं सहित,
    डॉ. वर्षा सिंह

    ReplyDelete
  9. चर्चा मंच की सभी लिंक्स पठनीय और रुचिकर सामग्रीयुक्त हैं। बहुत अच्छा संयोजन मीना जी 🌹
    आपने मेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित किया, यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
    बहुत धन्यवाद 🙏🌹🙏

    ReplyDelete
  10. बाबा नागार्जुन की सुन्दर कविता के साथ लाजवाब चर्चा प्रस्तुति ।सभी लिंक बेहद उम्दा ...कल से सभी रचनाएं पढते पढ़ते आज पूरी हुई इसलिए आज यहाँ प्रतिक्रिया दे रही हूँ...मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद आपका मीना जी!

    ReplyDelete
  11. सराहनीय संकलन आदरणीय मीना दी।मेरे सृजन को स्थान देने हेतु दिल से आभार।

    ReplyDelete
  12. Priya Meena ji,
    Aapka bahut bahut shukriya meri rachana ko yahan sammilit kar jo houslafzayee ki hai uska bead shukriya !
    dhanyavaad

    ReplyDelete

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।