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सोमवार, दिसंबर 21, 2020

'जवान तैनात हैं देश की सरहदों पर' (चर्चा अंक- 3922)

 सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 


कड़ाके की ठंड में 

जवान तैनात हैं 

देश की सरहदों पर 

चीन-पाकिस्तान के धूर्त मंसूबे

पस्त-ध्वस्त करने, 

किसान आ डटे हैं 

सत्ता की राजधानी की सीमाओं पर 

ख़ून-पसीने की कमाई पर 

चतुर-चालाक वर्ग की 

धूर्त चालों को परास्त करने। 

#रवीन्द्र_सिंह-यादव 


आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित नवीनतम रचनाएँ-

गीत "वातावरण कितना सलोना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

पेड़-पौधें हैं सजीले,
खेत हैं सीढ़ीनुमा,
पर्वतों की घाटियों में,
पल रही है हरितिमा,
प्राणदायक बूटियों से,
महकता जंगल का कोना।
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जाने कब, भूल चुके सब,
मन के स्नेहिल बंधन, तोड़ चले कब,
बिसराए, नेह भरे गंध, 
वो गेह भरे सुगंध,
तन्हा पल में, याद दिलाएगी,
बन कर इक आह!
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कभी-कभी

बहुत दूर से आती

संगीत की धीमी सी आवाज़

जाने कैसे एक

स्पष्ट, सुरीली, सम्मोहित करती सी

बांसुरी की मनमोहक, मधुर, मदिर

धुन में बदल जाती है 

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 ख़त का जवाब रखा था हमने।

मुलाक़ातों के दौर का ख्वाब देखा था हमने,
उनके लिए हर रंग का गुलाब रखा था हमने,
रश्क इतना कि वो हमारे मैय्यत पर भी ना आए,
जनाज़े के बगल में ख़त का जवाब रखा था हमने।
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तुम मेरे साथ चल के तो देखो

दायरे से निकलकर तो देखो 


आंसुओं से भरी हुई आंखें 

इनमें एक ख़्वाब मल के तो देखो 

--

मुटिठयों में प्यास भींचे 

| डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत | संग्रह - आंसू बूंद चुए

धूप में जलते
दिवस
पथरा गए।
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      परिषदीय परीक्षाएं ७ मार्च से प्रारम्भ होनी थी | पर २५ फरवरी को उसके कथित चाचा चाची उसे खोजते हुये बुलन्दशहर आ गये | शायद एटा स्कूल के किसी कर्मचारी ने उन्हें बुलंदशहर में उसके द्वारा स्थानान्तरण प्रमाण पत्र मगाये जाने की जानकारी दे दी होगी | अत: उन्होंने आते ही स्वयं को सपना का संरक्षक बताते  हुये उसके गत  कई माह से गुम होने की की प्राथमिक सूचना थाने  में दर्ज करा दी | जिससे पुलिस ने आर्य समाज को उसे दो दिन बाद अदालत में प्रस्तुत करने के लिए समन भेज दिया | सपना समाज के लोगों के सामने बहुत गिड़गिड़ाई , बहुत  रोई कि मुझे उनके साथ मत भेजिये , ये मुझे फिर किसी को बेच देंगे | पर किसी ने उसकी कोई बात नहीं सुनी

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महंगे अरमान

जब बच्चे थे हम तो हर चीज़ बड़ी 

आसानी से मिल जाती थी 
एक बार मुंह से निकला नहीं
 कि पापा झट से ला देते
अब तो हर अरमान महंगे हो गए हैं
पति के घर आकर पता चला कि चीज़े
आसानी से नहीं मिलती
--
कोरोना का महाआतंक छाया रहा पूरे साल 
शताब्दी की प्रथम महामारी से 
आज भी दुनिया है बेहाल !
करोड़ों हुए संक्रमित, लाखों ने जान गंवायी
अर्थव्यवस्थाएं पटरी से उतरीं न जाने कैसी आफत आयी !
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आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले सोमवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

14 टिप्‍पणियां:

  1. रवीन्द्र सिंह यादव जी,
    अत्यंत आभारी हूं कि आपने मेरे नवगीत को चर्चा मंच में शामिल किया है। यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है। आपको हार्दिक धन्यवाद 🌷🙏🌷
    - डॉ शरद सिंह

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदार लिंक्स उपलब्ध कराने के लिए साधुवाद 🌻🙏🌻

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात। बहुत ही उम्दा रचनाओं व लिंकोः से सजी प्रभावशाली प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर और सार्थक लिंंकों की प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह! सभी लिंक्स शानदार। मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी,
    जय जवान- जय किसान को प्रतिबिंबित करती भूमिका के साथ आज की चर्चा बहुत अच्छे लिंक्स संजोए हुए है। आपके श्रम को नमन.🙏
    मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏

    शुभकामनाओं सहित,
    डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं
  7. सभी रचनाएँ पढी | सचमुच बहुत अच्छा संकलन है | सभी रचनाएँ अच्सछी व सराहनीय है |

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर लाजवाब रचनाओं का संकलन।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह ! आज की चर्चा में बहुत ही सुन्दर सूत्रों का चयन ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  10. उम्दा रचनाओं का चयन, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  11. शुक्रिया आदरणीय रवींद्र जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार
    मुझे क्षमा करिएगा मैं समय से चर्चामंच पर उपस्थित नहीं हो पाई

    जवाब देंहटाएं

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