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शनिवार, दिसंबर 19, 2020

'कुछ रूठ गए कुछ छूट गए ' (चर्चा अंक- 3920)

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अमृता तन्मय जी की रचना से। 


सादर अभिवादन। 
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

जीवन की अनूठी कहानी में कुछ रूठ जाने वाले पात्र होते हैं तो कुछ अनायास छूट जाने वाले स्मरणीय किरदार मिलते हैं। यादों की मनमोहक पूँजी ही जीवन की अनमोल धरोहर है जिसे सहेजते-सहेजते कब जीवन अपनी अंतिम परिणति तक पहुँच जाता है इसका भान कभी-कभी साहित्यिक महक लिए अमर हो जाता है। 

-अनीता सैनी 'दीप्ति'

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ- 

--

गीत 
"श्वाँसों की सरगम की धारा" 
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

हो जाता निष्प्राण कलेवर,
जब धड़कन थम जाती हैं।
सड़ जाता जलधाम सरोवर,
जब लहरें थक जाती हैं।
चरैवेति के बीज मन्त्र को,
पुस्तक-पोथी कहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।

--
रंगो के थे क्या मनहर मेले
बतकहियों के अनथक रेले
एक से बढ़के एक अलबेले
हर पीछे को बस आगे ठेले
जब जब चढ़ता नशा क्रोध का
आंखों में उफने लोहित 
बान समझ कर अकबक बकता 
विकराल काल ज्यों मोहित
करे धोंकनी सा धुक धुक फिर
बढ़ता उर में फिर स्पंदन।।
क्या देख रहे थे उधर ? बस यूँ ही  
क्यूँ देखा घूरकर ? बस यूँ ही 

क्यूँ  परेशान हो ? बस यूँ ही 
किस बात पे हैरान हो ? बस यूँ ही 
--
इंसान
तुम्हारी फुफकार से भयभीत हैं
आज सर्प भी
ढूंढ रहे हैं अपने बिल
क्योंकि जान गए हैं
उनके काटने से बचा भी जा सकता है
मगर तुम्हारे काटे कि काट के अभी नहीं बने हैं कोई मन्त्र
नहीं बनी है कोई वैक्सीन
अपना अपना है सुख, कुछ जागते  
रहे सारी रात, बिखरे सिक्कों
को चुनते हुए, कुछ मेरी
तरह जीते रहे
लापरवाह,
रंग,भाषा,देश भेष हो भले ही जुदा-जुदा
है ख़ुशी एक सी,एक सा अपना गम है
--
मैंने जो मांगा
अपनेपन में डूबी
इक आहट
तब से वो
मौन ओढ़ बैठा है
मैंने क्या उससे
कुछ ज़्यादा मांग लिया?
--
सुबह बीज है
जिस पर दिन का फल लगता है
ऐसे ही जैसे शैशव बीज से
जीवन लता फैलती है
वर्तमान है वह बीज
जिसमें भावी विशाल वटवृक्ष छिपा है
2. 
जीवन गंगा   
सागर यूँ ज्यों कज़ा   
अंतिम सत्य।   

3. 
मुक्ति है देती   
पाप पुण्य का भाव   
गंगा है न्यारी।  
एक बार यूँ ही उन्हें एक सिपाही से पूछा "तुम्हारा नाम क्या है?"
"तेज़ बहादुर "
"तुम्हारे चीफ का क्या नाम है?"
"वह सैनिक घबराते हुए कहा "सैम बहादुर "
मानव के होश संभालने के साथ-साथ ही ईश्वर की कल्पना भी अस्तित्व में आ गई थी। हालांकि उसके निराकार होने की मान्यता भी है। फिर भी उसकी शक्ति का एहसास किया जाता रहा है ! ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं, जो उसके अस्तित्व को महसूस कराते रहते हैं। हमारा देश तो भरा पड़ा है ऐसे अलौकिक, आश्चर्यजनक, हैरतंगेज चमत्कारों से ! 
--
आज का सफ़र यहीं तक 
फिर फिलेंगे 
आगामी अंक में 

12 टिप्‍पणियां:

  1. हर ह्रदय की विकलता को आपने असमर्थ शब्दों के सहारे प्रकट किया है । कल्पनाओं का भवसागर ना जाने कितने मोतियों को संजोए रखता है । कभी-कभी ना चाहते हुए भी वे मोती अपनी चमक बिखेरने लगते हैं । आभार एवं शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रिय अनीता जी,
    सुंदर और पठनीय लिंक्स का बेहतरीन चयन-संयोजन किया है आपने ।
    बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं 💐
    सस्नेह,
    डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रिय अनीता सैनी जी,
    आपने मेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित किया है, यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
    बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार 🙏🌹🙏
    - डॉ. शरद सिंह

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर थीम है आज की चर्चा की 💐

    जवाब देंहटाएं
  5. रोचक सार्थक चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. पठनीय रचनाओं के सूत्रों की खबर देता चर्चा मंच ! आभार !

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन रचनाओं का संकलन, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
    प्रिय अनीता जी, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं
  8. रोचक सार्थक चर्चा प्रस्तुति...मेरी रचना को चर्चाअंक में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार....

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रिय अनीता जी, नमस्कार ! सुंदर और सार्थक रचनाओं को एक मंच पर पढ़ने का अवसर मिला..सुंदर संकलन तथा खूबसूरत प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई..मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका आभार..।

    जवाब देंहटाएं
  10. सार्थक और सुन्दर चर्चा।
    आपका आभार अनीता सेनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुंदर भूमिका दर्शन चिंतन यथार्थ का।
    शानदार लिंक,सभी रचनाएं बहुत सुंदर।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  12. अनीता जी चर्चा मंच पर मेरी कविता को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत सुन्दर मंच सजाया है आपने.

    जवाब देंहटाएं

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