शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कल्पना मनोरमा जी।
सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
मौन अपने भीतर अनेक प्रश्नोत्तर समाहित किए रहता है। जब मौन महान उद्देश्यों के लिए धारण किया जाता तब उसके सौंदर्य के आयाम प्रस्फुटित होकर अपूर्व परिभाषाओं को गढ़ते हैं जो लंबे अरसों तक प्रभावकारी होतीं हैं।
मौन का नकारात्मक स्वरुप अनेक जटिलताएं समेटे हुए कुटिलता का लिबास ओढ़े रहता है जिसमें अनेक पेचीदगियाँ स्वतः उत्पन्न हो जातीं हैं, इसीलिए कहा गया है।
"अति का भला न बोलना, अति का भला न चुप"
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चिड़िया रानी फुदक-फुदक कर,
मीठा राग सुनाती हो।
आनन-फानन में उड़ करके,
आसमान तक जाती हो।।
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मेरे अगर पंख होते तो,
मैं भी नभ तक हो आता।
पेड़ो के ऊपर जा करके,
ताजे-मीठे फल खाता।।
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जिनके साथ सुख भोगते हुए
हम भूलते गए खुद को
और जीते गए संसार को
फ़िर दबे पाँव आया दुख
हम आ गए रपटीले सन्नाटे में
भूलने लगे मित्र हमको
हम पुकारते रहे
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अब तो बोल ‘उलूक’
जोर लगा कर
जय जवान जय किसान
अर्ध शतक पूरा हुआ
घबड़ाहट का ही मान लो
हड़बड़ाहट के साथ
बड़ी मुश्किल से
पता नहीं
कैसे
कम बोला इस साल
बमबोला बदजुबान ।
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मिलोगे तुम मुझे
एक अरसे बाद
यूं ही अचानक
किसी कॉन्फ्रेंस में, सेमिनार में
किसी मॉल में
या किसी मेट्रो में
बेशक़ सोचा था मैंने!
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मशालें जलाई हैं अपने हाथों से
शिकंजे में रहा हूँ जेल की सलाखों के
कोड़े खाए हैं नंगी पीठ पर
मैं रोता रहा वो हँसते रहे अपनी जीत पर
तुम्हें क्या लग रहा है धरने से सब बदल जाएगा
या तुम्हारी किस्मत का दिया जल जाएगा
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मौसम बड़ा बेईमान हो गया
अपनी मनमानी करने लगा
वर्षा का क्या कोई ईमान नहीं
चाहे अनचाहे दस्तक देती है |
हरी भरी फसल जमीन पर पसरी है
सारी महानत विफल हुई है
सुरमई बादलों को आसमान में |
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राहें बोलती हैं तू जाना पहचाना है शायर
मगर मेरे महबूब ही हमें भूल गए
कश्ती को किनारे पर नहीं छोरना मांझी
कि शहर में अब दंगो का शोर है
तूफ़ान की शिरत तो सबको मालूम है
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वर देते हो तो कर दो ना
चिर आंखमिचौनी यह अपनी,
जीवन में खोज तुम्हारी है
मिटना ही तुमको छू पाना !
तुम चुपके से आ बस जाओ ‘
सुख-दुःख स्वप्नों में श्वासों में,
पर मन कह देगा ‘यह वे हैं’
आँखें कह देगीं पहचाना !
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एक दिन उसे नहीं देखा तो बिना सोचे -विचारे अधीर-आकुल सा दौड़ा चला गया. क्या कहते होंगे रत्ना के परिवारजन .मेरा तो कोई अपना था ही नहीं जिसकी मर्यादा का सवाल उठता. लोक-व्यवहार का ध्यान नहीं आया जिसे निभाने का अवसर स्थितियों ने कभी दिया नहीं था
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प्रिय मित्रों, हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित विद्वान प्रो. सुरेश आचार्य जी ने मेरे ग़ज़ल संग्रह "ग़ज़ल जब बात करती है" की समीक्षा की है, जो साहित्य सरस्वती के जुलाई-सितम्बर 2020 अंक में प्रकाशित हुई है। इसे मैं आप सबसे साझा कर रही हूं।
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"हमारे बाबूजी कब उठते थे यह हम भाई बहनों में से किसी को नहीं पता चला। पौ फटते घर-घर जाकर दूध-अखबार बाँटते थे। दिन भर राजमिस्त्री साहब के साथ, लोहा मोड़ना, गिट्टी फोड़ना, सीमेंट बालू का सही-सही मात्रा मिलाना और शाम में पार्क के सामने ठेला पर साफ-सुथरे ढ़ंग से झाल-मुढ़ी, कचरी-पकौड़े बेचते थे।"
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नीले इंग के डिब्बों का निर्माण इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में किया जाता है। ये लोहे के बनते हैं इसलिए कुछ भारी होते हैं। इनकी गति भी 70 से 140 तक ही होती है। सबसे खतरनाक बात यह है कि घटना के दौरान इनके डिब्बे एक दूसरे पर चढ़ जाते हैं। यात्रियों के लिए सीटें भी लाल वाले से कम होती हैं। इसके रख-रखाव को भी जल्दी-जसल्दय करना पड़ता है।
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आज का सफ़र यहीं तक
फिर फिलेंगे
आगामी अंक में
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
प्रिय अनीता सैनी जी,
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स उत्सुकता जगाने वाले हैं। इत्मिनान से पढ़ूंगी। निश्चित ही श्रेष्ठ पठनीय सामग्री का भंडार है यह।
मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि चर्चा मंच में मेरी पोस्ट को भी स्थान मिला है।
आपका बहुत शुक्रिया 🙏🌹🙏
शुभेच्छु
डॉ. वर्षा सिंह
आदरणीया अनीता सैनी जी,
जवाब देंहटाएंमेरी कविता को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार एवं बहुत बहुत धन्यवाद 🌹🙏🌹
चर्चा मंच के पटल पर मेरी कविता का होना मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है 🙏🙏🙏
- डॉ शरद सिंह
पटल पर प्रस्तुत किए गए सभी लिंक्स अत्यंत रोचक एवं बारम्बार पठनीय हैं।
जवाब देंहटाएंआपके श्रम को नमन 🙏
सराहनीय प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंजब मौन महान उद्देश्यों के लिए धारण किया जाता तब उसके सौंदर्य के आयाम प्रस्फुटित होकर अपूर्व परिभाषाओं को गढ़ते हैं, बहुत सुंदर भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं का चयन, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
अनीता जी, नमस्कार ! आपके सुन्दर चयन और संयोजन से खूबसूरत रचनाओं से परिचय हुआ..मेरी रचना को स्थान देने के लिए मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ..अपको मेरा नमन और वंदन...।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसारगर्भित पहल है साहित्य को प्रचारित और प्रसारित करने के लिए ।शुक्रिया अनिता जी मेरी रचना धर्मिता को हौसला देने के लिए।
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