आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है
क्या शांतिपूर्वक धरना देने आ रहे लोगों को सदके खोदकर, बैरिकेट लगाकर ऐसे रोका जाता है, जैसे वे विदेशी आक्रान्ता हों ? क्या आप भी सोचते हैं कि किसान आन्दोलन विरोधी पार्टियों द्वारा चलाया जा रहा है ? क्या आप सोचते हैं कि वर्तमान विपक्ष ऐसा करने में सक्षम है? क्या आपको नहीं लगता कि किसानों का डर सच्चा है? ( जिओ की फ्री सेवा से वर्तमान रेट को जरूर ध्यान में रखें |) बिहार , यू. पी. में फसलों के भाव कम क्यों हैं? ब्लॉग जगत शायद इन बातों पर गौर नहीं करना चाहता, इसीलिए वह या तो चुप या फिर किसानों को दोषी ठहरा रहा है ?
किसान आन्दोलन को खालिस्तान से जोड़ा जा रहा है, यह पहली बार नहीं हुआ | हर आंदोलनकारी को देश द्रोही कहते हुए कबूतर की तरह आँख मूँदे नागरिकों को सलाम
चलते हैं चर्चा की ओर
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रंग-बिरंगे पर फड़काती,
तितली जब बगिया में आती
सब बच्चो के मन को भाती,
सब बच्चो का जी ललचाता
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मन का मयूर यह व्यर्थ ही झूमता है
नाप लिया हो जैसे ‘अम्बर’ नाम दिया
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राजनीति का शिकार भारत का किसान -
हमारे हिंदी साहित्यकारों ने अपने साहित्य में किसानों की जिस दयनीय दशा का उल्लेख किया है माना कि वर्तमान समय में किसानों की स्थिति उससे भिन्न है परंतु यह भी सत्य है कि पूर्णतया भिन्न नहीं है, किसान आज भी कर्ज के बोझ तले दबा है, किसान आज भी मौसम की मार झेलता है, वह पहले मदद के लिए साहूकारों का मुँह देखता था, वह आज भी मदद के लिए सरकार का मुँह देखता है। आज भी उसे अपनी मेहनत को औने-पौने दाम में बेचना पड़ता है।
इतनी समस्याएँ क्या कम थीं जो आजकल राजनीतिक पार्टियों द्वारा आए दिन आंदोलन, बंद आदि करवाकर इनके लिए और समस्या खड़ी कर दी जाती हैं। खेत के खेत खड़ी फसलों को बर्बाद कर दिया जाता है, ट्रक के ट्रक सब्जियाँ, दूध आदि बर्बाद किए जाते हैं, जो कि किसान की स्वयं की सहमति नहीं होती उससे जबरन करवाया जाता। कोई भी किसान पुत्रवत पाली गई फसल बर्बाद नहीं कर सकता। ऐसी अनचाही परिस्थिति का वह राजनैतिक शिकार होता है और अनचाहे ही राजनीति के जाल में फँस जाता है।
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मुस्कुराहट लबों पर, सजी रहने दीजिए ।
ग़म की टीस दिल में, दबी रहने दीजिए ।।
छलक उठी हैं ठेस से, अश्रु की कुछ बूंद ।
दृग पटल पर ज़रा सी,नमी रहने दीजिए
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विचिस्लाफ़ कुप्रियानफ़ की कविताएँ
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क़स्बाई संस्कृति के वाहक मध्यवर्गीय परिवार का एक होनहार लड़का रोज़ सुबह उठते ही घर के बाहर के चबूतरे पर बैठ जाता।
अख़बार पढ़ता और रूस, अमरीका, जर्मन, जापान, चीन आदि-आदि की बातें ज़ोर-ज़ोर से बोलते हुए करता।
साथ ही हर बार यह कहना नहीं भूलता कि अपने यहाँ है ही क्या? आदि-आदि।
उस के अपने घर के लोग उसे डाँटते हुए कहते कि अरे बेटा अभी-अभी उठा है। ज़रा दातुन-जंगल कर ले। स्नान कर ले। घड़ी दो घड़ी रब को सुमिर ले।
मगर वह नहीं सुनता। लोगों से बहसें लड़ाता रहता।
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क्यों बोलते हैं राम नाम सत्य है -
धन्यवाद
चिंतनपरक भूमिका के साथ सुन्दर लिंक संयोजन । हार्दिक आभार दिलबाग सिंह जी प्रस्तुति में रचना सम्मिलित करने हेतु ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिलबागसिंह जी।
जवाब देंहटाएंलोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का हक है. किसानों के लाभ के लिए जो सुधार किए जा रहे हैं उन्हें समझने व समझाने की जरूरत है, कोई भी परिवर्तन आसानी से नहीं आता, नहीं तो उसे परिवर्तन ही क्यों कहते, पठनीय रचनाओं से सजा मंच, आभार !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंगहन और सामायिक चिंतन देती सार्थक भूमिका।
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक चयन।
सभी रचनाकारों को बधाई,सभी रचनाएं उत्तम।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
सादर।
बढ़िया लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंसाधुवाद 🙏
उपयोगी लिंकों के साथ आकर्षक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय दिलबाग सिंह विर्क जी।
वाह!सराहनीय भूमिका संग बेहतरीन संकलन आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंसादर