मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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नभ में सूरज गुम हुआ, हाड़ कँपाता शीत।
दाँतों से बजने लगा, किट-किट का संगीत।।
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छोड़ दीजिए कृषक पर, खेती का कानून।
नहीं किसानों को रुचा, सरकारी मजमून।।
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उस पार बंधी है
लौकिक नैया
कौन खिवैया
तम की चादर
कर पार..
भेद खोलना चाहती हैं
थकन भरी है
आँखों में
बहुत दिन बीते
चैन से सोये
नींद भरे सागर में
आँखें खोना चाहती हैं
Meena Bhardwaj, मंथन
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शिवम् मिश्रा, बुरा भला
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ज़िंदगी एक लत है
उस नशे कि...
जो रोज़-रोज़
माँगती है
अपनी ज़रूरतों को ।
हर ज़रूरत नशा नहीं
पर जो ज़रूरत नशा बन जाए
वही लत है
सधु चन्द्र, नया सवेरा
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शीर्षक - || धन्य है तू वेदने जग को बताऊँ ||
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj11oqqu-5Vp-pL3BuKnlaVIuap_liHEWPf0GMCqldH6T04gFZVYP3BeEkVA7pkd_7t23RgIi0vmc5m9HVkwLFcT2aPlL7mJDcgVlSUYFM8qRiMoPxhyu0rRsNNSo4W2icY51c6fDDIrLg/w218-h320/935db34f1c693400557b737eba5ed625.jpg)
मोल अपने मैं प्रणय का क्या बताऊँ ।
वेदना मैं निज ह्रदय की क्या सुनाऊँ ।।
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''आंटी, मैं गरीब घर में पैदा नहीं हुआ था। मेरे पापा इंजिनियर है। हमारे पास बंगला, गाड़ी, नौकर-चाकर सब कुछ था। एक साल पहले तक मैं कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ता था। सब कुछ बहुत ही अच्छा था। अचानक मेरे मम्मी-पापा के बीच के झगड़े बढ़ गए और मेरी मम्मी घर छोड़ कर नानाजी के यहां चली गई। मम्मी मुझे अपने साथ ले जाना चाहती थी। लेकिन पापा ने मुझ से कहा कि तुम्हारी मम्मी तो कोई कमाई नहीं करती फ़िर तुम्हें क्या खिलायेगी?
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ओ समय ठहरो ज़रा
मुझे भी साथ ले चलो
अभी कुछ काम शेष रहे हैं
उन्हें पूर्ण कर लेने दो |
जब कोई काम शेष न रहेगा
मन सुकून से रह सकेगा
फिर लौट न पाऊँगी
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Pic credit: Google.
मुझे तीन बार
इश्क़ हुआ है
पर हर बार
सिर्फ़ धोखा मिला है।
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तू है भ्रष्टाचार की माँ
विकास नैनवाल 'अंजान', एक बुक जर्नल
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उर्मिला सिंह, सागर लहरें
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अक्सर, इस ऊँचे दरख़्त के नीचे
बैठ कर मैं, उसे क़रीब से
महसूस करना
चाहता
हूँ
उसकी फुसफुसाहट से ज़िन्दगी
का तत्व ज्ञान समझना
चाहता हूँ, उसकी
ऊर्ध्वमुखी
शाखा
व
प्रशाखाओं के आचार संहिता को
बैठ कर मैं, उसे क़रीब से
महसूस करना
चाहता
हूँ
उसकी फुसफुसाहट से ज़िन्दगी
का तत्व ज्ञान समझना
चाहता हूँ, उसकी
ऊर्ध्वमुखी
शाखा
व
प्रशाखाओं के आचार संहिता को
शांतनु सान्याल, अग्निशिखा
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आज के लिए बस इतना ही...।
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बहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना को स्थान देने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स आज के अंक की |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
सुप्रभात!
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति । मेरे सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार सर ।
आदरणीय शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन 🙏
चुन-चुन कर लाते हैं आप तमाम ब्लॉगस् में से बेहतरीन लिंक्स... साधुवाद 🙏🍁🙏
आज की इस चर्चा में आपने मेरी पोस्ट को शामिल किया, इस हेतु हार्दिक आभार 🙏🍁🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति सर, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंहरिः ॐ तत्सत
जवाब देंहटाएंआदरणीय मयंक जी,
सादर नमन
अद्भुत चुन-चुन कर लाते हैं आप तमाम ब्लॉगस् में से बेहतरीन लिंक्स...इसके लिए साधुवाद
आज की इस चर्चा में आपने मेरी पोस्ट को शामिल किया, इस हेतु हार्दिक आभार
||पुनश्च सादर नमन||
आचार्य प्रताप
प्रबंध निदेशक
अक्षर वाणी संस्कृत समाचार पत्र
सराहनीय प्रस्तुति सर।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति,हमारी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..मेरी पोस्ट्स को चर्चा में शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंnice
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