सादर अभिवादन!
सभी गुणीजनों का सादर अभिनंदन ।
शुक्रवार की चर्चा का आरम्भ स्मृति शेष श्री जयशंकर प्रसाद जी की कविता "वसुधा के अंचल पर" के प्राकृतिक सौन्दर्य की मनोरम अंश से--
वसुधा के अंचल पर
यह क्या कन- कन सा गया बिखर ?
जल-शिशु की चंचल क्रीड़ा- सा ,
जैसे सरसिज डाल पर .
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आइए अब बढ़ते हैं आज के चयनित सूत्रों की ओर-
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हरी मिर्च थाली में पसरी-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तीखी और चर्परी।
हरी मिर्च थाली में पसरी।।
तोते इसे प्यार से खाते।
मिर्च देखकर खुश हो जाते।।
सब्ज़ी का यह स्वाद बढ़ाती।
किन्तु पेट में जलन मचाती।।
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अनदिखे में तुम्हारे होने का आभास
दिल को इतना भी बुरा नहीं लगता
बुरा नहीं लगता इंतज़ार के दरमियाँ
पनपने वाले प्रेम को पोषित करना।
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किसी को पूरा जहां नहीं मिलता
कितने भी यत्न कर लो सारा जहां नहीं मिलता
है यह नसीब का खेल या विधान विधाता का
जितना चाहो जब चाहो नहीं मिलता |
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यह ब्रह्म ही तो है
जो पूर्ण है - अकाट्य है,
जो अनादि है- अनंत भी ,
रेखा- त्रिभुज- चतुर्भुज के अनेक कोणों से मुक्त
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कभी आपने सोचा कि कैसे कुछ लोग पहली ही मुलाक़ात में आपका दिल जीत लेते हैं? आपके मन में उतर जाते हैं। आपका मन करता है कि काश आप का व्यक्तित्व भी उनके जैसा होता। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनसे आप बिल्कुल प्रभावित नहीं होते।
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हैं चहुं ओर चर्चा मे अदाएँ,
कोरोना दिखा रहा मुजरा,
उधर, बंद खौफज़दा जिंदगी,
इधर, साल एक और गुजरा।
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महिला ग्राम प्रधान की घरेलू विसंगतियाँ
कुछ सोचते हुए मैं ग्राम प्रधान के सीढ़ीदार घर पे एक-एक सीढ़ी चढ़ रही थी, और घर के दालान से ,छन-छन के आ रही,कई लोगों के बतियाने की आवाज़ सुन रही थी , अचानक किसी ने कहा, सुनो प्रधान बाबू अबकी बार तो महिला सीट थी, चाची चुनाव लड़ीं और प्रधान हो गईं और तुम मुँह देखते रह गए
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देखो,
दिसंबर आ गया है,
अब तुम्हें जाना ही होगा,
कितना भी जालिम क्यों न हो कोई,
जाना ही होता है उसे कभी-न-कभी.
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मैं गढ़ता
गया
कल्पित सुख का संसार, जब
कि मेरे अंतर्मन में था,
आलोकमय लहरों
का समंदर,
वो था
अंतःशील मेरे ह्रदय के अंदर।
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मिथक, महिलाएं और त्रिजटा -डॉ. वर्षा सिंह
महिला की होती सदा, महिला अच्छी मित्र ।
दुश्मन जो दिखला रहे, मिथ्या हैं वे चित्र ।।
महिला ही है जानती, महिला-मन की थाह ।
हर विपदा से मुक्ति की, दिखलाती है राह ।।
करुणा, ममता, प्रेम की यह मूरत साकार ।
महिला है इस सृष्टि का अतुलनीय उपहार ।।
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नीली – नीली लहर नींद की उठती - गिरतीं ,
अवचेतन मन की कितनी ही नावें तिरतीं ,
कुण्ठाओं के कमल खिले हैं
सपनों जैसे |
साँझ – सुबह के मध्य अवस्थित झील रात की ,
भरी हुई है अँधियारे से |
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आज का सफर यहीं तक…
आप सबका दिन मंगलमय हो..
धन्यवाद ।
"मीना भारद्वाज"
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उम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुति
आला दर्जे की रचनाओं के बीच मेरी भी पोस्ट का होना प्रेरित करने वाला है। सभी को बधाई के साथ सादर आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. मेरी कविता को शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंआभार आपका इस सुंदर चर्चा हेतु, मीना जी।🙏
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आभार सहित धन्यवाद मीना जी |
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना भारद्वाज जी,
जवाब देंहटाएंडिज़िटल प्लेटफार्म पर चर्चा मंच एक ऐसा स्पेस है जहां आ कर ढेर सारा उच्च कोटि का सृजनात्मक संसार दृष्टिगोचर होता है। आप सभी संयोजनकर्ता इस मंच पर सर्वश्रेष्ठ पठनीय लिंक्स उपलब्ध कराने में अपना जो बहुमूल्य श्रम और मेधा व्यय करते हैं वह श्लाघनीय है। 💐
आज भी अच्छे लिंक्स हैं यहां।
मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
शुभकामनाओं सहित,
शुभेच्छु
डॉ. वर्षा सिंह
आदरणीय मीना भारद्वाज जी, नमस्कार ! इतने सुंदर संकलन के बीच मेरा लेख आपने सम्मिलित किया ।जिसके लिए आपका जितना भी धन्यवाद करूँ ,कम है ।आप लोगों के अथक परिश्रम और साधना से अभिभूत हूँ । सुंदर चयन और प्रस्तुति के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..।..जिज्ञासा..।
जवाब देंहटाएंसराहनीय संकलन आदरणीय मीना दी। मेरे सृजन को स्थान देने हेतु दिल से आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर चर्चा अंक मीना जी ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंसप्त रंगों से निखरता चर्चा मंच, सुन्दर संकलन व प्रस्तुति के साथ हमेशा प्रेरित करता है, मुझे स्थान देने हेतु ह्रदय तल से आभार, सभी रचनाएं अपने आप में अद्वितीय हैं - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंअद्यतन लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।