मित्रों!
रविवार की चर्चा में देखिए,
मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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28 साल पहले 6 दिसंबर यानी आज ही के दिन कारसेवकों ने अयोध्या का बाबरी ढांचा गिरा दिया गया था। बीजेपी और संघ परिवार इसे 'शौर्य दिवस' के रूप में मनाते हैं।
लेकिन इस घटना पर भगवान श्रीराम क्या सोचते होंगे?
यह सोचा, मशहूर शायर कैफी आजमी ने
और तब निकली यह नज्म,
जो बाद में इस घटना पर लिखी गई सबसे लोकप्रिय रचनाओं में शुमार हो गई.
आप भी पढ़िए 'राम का दूसरा वनवास'.
मैं अपनी मम्मी-पापा के,
नयनों का हूँ नन्हा-तारा।
मुझको लाकर देते हैं वो,
रंग-बिरंगा सा गुब्बारा।। उच्चारण --
नयनों का हूँ नन्हा-तारा।
मुझको लाकर देते हैं वो,
रंग-बिरंगा सा गुब्बारा।।
कि समझ में नहीं आता है
‘उलूक’
पता नहीं क्या लिखता है क्या फैलाता है
प्रश्न है
किसलिये पढ़ा जाता है वो सब कुछ
जो समझ में नहीं आता है
सारा का सारा
आसमान...
कब और किसको
मिला है..
यह मन ही
पागल है...
मिठास की चाह भी
रखता है..
और वह भी
खारी सांभर से...
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इस दुनिया में चेहरों को
पढ़ना, इतना भी
आसान
नहीं,
हर तरफ़ हैं बिखरे हुए कितने ही
अदृश्य नागपाश,
कभी परछाईं से भी
तुम्हारे हुस्न से जलतीं हैं ,कुछ हूरें भी जन्नत में ,
ये रश्क़-ए-माह-ए-कामिल है,फ़लक जलता अदावत में ।
तेरी उल्फ़त ज़ियादा तो मेरी उलफ़त है क्या कमतर ?
ज़ियादा कम का मसला तो नहीं होता है उल्फ़त में ।
- फुर्सत के चंद लम्हे -
- "एक मुलाकात खुद से "
- फुर्सत के चंद लम्हे जो मैं खुद के साथ बिता रही हूँ। घर से दूर,काम -धंधे,दोस्त - रिस्तेदारो से दूर,अकेली सिर्फ और सिर्फ मैं। हां,आस-पास बहरी दुनिया है कुछ लड़के - लड़कियां जो मस्ती में डूबे है,कुछ बुजुर्ग जो अपने पोते - पोतियो के साथ खेल रहे है,कुछ और लोग है जो शायद मेरी तरह बेकार है या किसी का इंतज़ार कर रहे है।
- कामिनी सिन्हा-मेरी नजर से
आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स का चयन करना हमेशा आपकी ख़ासियत रही है। आज भी आपने जो लिंक्स यहां प्रस्तुत किए हैं वे सभी सर्वोत्तम हैं। नमन आपको 🙏
आपने मेरे गीत को चर्चा मंच में सम्मिलित कर जो सम्मान दिया है, उसके लिए मैं आपके प्रति हृदय से आभारी हूं।
🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
उम्दा लिंक्स आज के चर्चामंच की |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसर |
बहुत सुंदर एवं सारगर्भित रचनाओं से सुसज्जित चर्चा मंच के इस अंक के लिए डॉ रूपचंद शास्त्री 'मयंक' जी को साधुवाद 🙏🌹🙏
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंविविधताओं से परिपूर्ण बहुत सुन्दर प्रस्तुति में मेरे सृजन को सम्मिलित करने हेतु सादर आभार सर.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंचर्चामंच पर इस बार कामिनी जी ने मोती की तरह चुन चुन कर पोस्ट सजाई हैं, बहुत धन्यवाद । इतनी खूबसूरत रचनायें पढ़वाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह ! बेहद खूबसूरत रचनाओं की खबर देते सूत्र ! आभार !
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं अपने आप में अद्वितीय हैं, मुझे शामिल करने हेतु आभार, प्रस्तुति एवं संकलन अति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,धन्यवाद । चर्चा में स्थान देने के लिए ।
जवाब देंहटाएंकैफ़ी आज़मी साहब की इस नज़्म को पढ़कर मन में आया ...
जिस दिन बाबर सरीखों ने मंदिर ध्वस्त कर ऐसे ढांचे बनाए जिन्हें ख़ुद वो भी मस्जिद नहीं मानते, उस दिन राम का कौन सा वनवास हुआ था ? काश ये भी लिखा गया होता ।
आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार ! आपने मेरी रचना को शामिल किया, इसके लिए आपका आभार व्यक्त करती हूँ ,विविध प्रकार की रचना पढ़ने का अवसर मिला,जिससे मुझ जैसे नए लोगों का नए नए सूत्रों से परिचय होता है,जो नए मार्ग प्रशस्त करता है ,सुंदर संकलन और सुंदर प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएँ ..।
जवाब देंहटाएंविविधता में एकता को प्रदर्शित करते इस मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार माननीय।
जवाब देंहटाएंसादर।
बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं