शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कुसुम कोठारी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
परिणय-दिवस स्मृतियों का अनमोल ख़ज़ाना होता है जब एक फ़ैसला दो हमराही को मंज़िल की राह पर ले जाता है। जीवन की ऊँची-नीची घाटियों को पार करने का सफ़र जीवनसाथी के साथ सुकून और हिम्मत से भरा होता है।
आयु के साथ जीवन की जवाबदेही और परिस्थितियों में बदलाव आते रहते हैं। कठिन समय में चलने का हौसला पस्त होने पर जीवनसाथी का समर्पण और साथ मुश्किलों को आसान करता है।
आज आदरणीय शास्त्री जी के परिणय का स्मरणीय दिवस है। आदरणीय शास्त्री जी एवं माँ भारती जी को इस विशिष्ट दिवस पर तहेदिल से ढेरों मंगलकामनाएँ। ईश्वर उन्हें स्वस्थ और लंबा जीवन दे।
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तुम शीतल बयार मतवाली,
पतझड़ में भी हो हरियाली,
जंगल चमन बनाया तुमने,
तुम आभा-शोभा उपवन की।
संगी-साथी साथी इस जीवन की।।
तुम हो प्यारे मीत हमारे,
तुम पर गीत रचे हैं सारे,
नाती-पोतों की किलकारी,
याद दिलाती है बचपन की।
संगी-साथी साथी इस जीवन की।।
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कैसे हो विश्वास कर्म पर
एक साथ सब भुगत रहे हैं
ढ़ाल धर्म की टूटी फूटी
मार काल विकराल सहे हैं
सुधा बांट दो अब धरणी पर
शिव को होगा गरल पिलाना।।
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फूलों- सी ही मेरी कविताएं मुझसे झर- झर झरती हैं
कभी शब्द से तो कभी शून्य से सब कुछ कहती है
किसी से कोई दुराग्रह नहीं है कोई आग्रह नहीं है
विक्षुब्ध , विक्षिप्त सा कोई विकट विग्रह नहीं है
भीतर- भीतर जो बात उमंग में उमड़ती- घुमड़ती रहती है
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कमज़ोरी ग़र ज़ाहिर हो जाए तो
ज़माने को खिलौना मिल
जाएगा, लाज़िम था
अंधेरे से निकल
कर उजाले
में खुल
के
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जा कर अब किसे सुनाऊँ मैं
यह अपना दर्द बताऊँ मैं
अब तक बिल्कुल अंजान थी मैं
जानूँ इसका अंजाम भी मैं
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अभी खोल में ढका बीज है
अभी बंद है उसकी दुनिया,
उर्वर कोमल माटी पाकर
इक दिन सुंदर वृक्ष बनेगा !
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कातिक महिना पुन्नी मेला, जम्मो जगा भरावत हे।
हाँसत कूदत लइका लोगन, मिलके सबझन जावत हे।।
बड़े बिहनिया ले सुत उठ के, नदियाँ सबो नहावत हे।
हर हर गंगे पानी देवत, दीया सबो जलावत हे
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अचानक ये मोरपंख वाला किस्सा याद आया। किसी ने कहा था किताबों में मोरपंख रखने से पढ़ा हुआ जल्दी याद हो जाता है। पर ये कोई कोर्स की किताब तो थी नहीं, फिर भी वो चाहती थी कि ये मोरपंख मैं इस किताब में रखूं (क्योंकि ये किताब उसी ने मुझे पढ़ने के लिए दी थी) तो उसने ये बोल के रखवाया था कि इस किताब की कहानी में कुछ सीख ऐसी है जो जीवन में काम आएगी और इसी सीख को याद रखने के लिए मुझे ये मोरपंख इसमें रखना होगा।
अब इसे किस्मत कहो या संयोग कि अब इस किताब की कहानी मेरी ख़ुद की कहानी हो गयी है और ये मोरपंख मुझे याद दिला रहा है कि मेरी कहानी का अंजाम याद रखने के लिए मुझे पहले ही तैयार कर दिया गया था।
अब इसे किस्मत कहो या संयोग कि अब इस किताब की कहानी मेरी ख़ुद की कहानी हो गयी है और ये मोरपंख मुझे याद दिला रहा है कि मेरी कहानी का अंजाम याद रखने के लिए मुझे पहले ही तैयार कर दिया गया था।
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आज का सफ़र यहीं तक
फिर फिलेंगे
आगामी अंक में
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंसादर।
प्रिय अनीता सैनी 'दीप्ति' जी,
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच ब्लॉग में आ कर बहुत से अच्छे लिंक्स एक स्थान पर मिल जाते हैं। आज की चर्चा लिंक्स भी बेशक पठनीय और दिलचस्प हैं। साधुवाद 💐
मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏⭐🙏
शुभकामनाओं सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
अनीता जी, नमस्कार ! सुंदर चयन के साथ साथ सुंदर प्रस्तुतीकरण..।श्रमसाध्य कार्य हेतु आप साधुवाद की पात्र हैं ..।मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहेदिल से आपका आभार व्यक्त करती हूँ..। शास्त्री जी को परिणय दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ..।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत सूत्रों का संकलन आज की चर्चा ! मेरी रचना को इसमें सम्मिलित किया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे!
जवाब देंहटाएंइस विविधता भरी सामग्री संकलन हेतु हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंविविधरंगी पठनीय रचनाओं के सूत्रों से सजी सुंदर चर्चा प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
फिर एक मनोहर गुलदस्ता सुंदर गुलों से सजा ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार लिंक,
मेरी रचना की पंक्तियां शीर्षक के साथ!! अभिभूत हूं मैं।
बहुत बहुत आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।