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Tuesday, December 22, 2020

"शब्द" (चर्चा अंक- 3923)

स्नेहिल  अभिवादन 

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है 

(शीर्षक और भूमिका प्रिय अनीता जी की रचना से) 

"तो क्या सभी सँभालकर रखते है?

शब्दों के उलझे झुरमुट को 

क्योंकि शब्दातीत में समाहित होते हैं 

अर्थ के अथाह भंडार "

प्रिय अनीता जी की बहुत ही सुंदर रचना 

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"शब्द"में अर्थ के अथाह भंडार समाहित होती है... 

शब्दों की अपनी एक ऊर्जा होती है.... 

एक "शब्द "आपको खुश, नाराज और क्रोधित करने में सझम होते हैं.... 

तो "शब्दों"को सोच-समझकर और तौल-मोलकर ही उपयोग करना चाहिए.... 

चलते हैं, आज की कुछ खास रचनाओं की ओर....

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 गीत "धारा यहाँ विधान की" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

आज कड़ाके की सरदी मेंजाड़ा-पाला फाँक रहे,
दाता जग के हाथ पसारेकेन्द्र-बिन्दु को ताँक रहे?
पड़ी किसलिए आज जरूरतसड़कों पर संधान की।
हालत बद से बदतर होतीअपने श्रमिक-किसान की।।

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शब्द

 ज़िद की झोली कंधों पर लादे!

आए, शब्दों के झुरमुट को

  चौखट से लौटाया मैंने

  ओस की  बूँदों ने बनाया बंधक 

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लेडीज़ फ़र्स्ट

फ़ेसबुक पर अपने एक आलेख में मेरे मित्र प्रोफ़ेसर हितेंद्र पटेल ने
हर जगह महिलाओं-लड़कियों को प्राथमिकता दिए जाने पर आपत्ति की है.
मैं भी उनके इस विचार से सहमत हूँ कि
हर जगह ‘लेडीज़ फ़र्स्ट’ का नारा बुलंद किये जाने की ज़रुरत नहीं है.
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अन्तःस्थल में कहीं 

धुंध ही धुंध है जिधर नज़र जाए,
निःशब्द सा है, अदृश्य बहता
हुआ आदिम झरना,
मीठी धूप की
यादें यूँ
तो

*****************प्रफुल्ल फूल

टहनियों पे खिलते फूल ।
पूजा की टोकरी में रखे फूल ।
माला में पिरोए फूल ।
चित्रों में सजीव फूल ।
किताबों में संजोए फूल ।
गुलदस्तों से झांकते फूल ।
सेहरे की लङियों में फूल ।
वेणी में गुंथे गजरे के फूल ।
मन की टोह लेते फूल ।
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कोरोना का दौर और मैं ( बाल कविता )

मैं और मेरी नहीं सी जान 
हो गई बड़ी परेशान 

कोरोना जैसी महामारी से 
हर घर में घुसी इस बीमारी से 
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कोहरै

धुंधले ये कोहरे हैं, या दामन के हैं घेरे,
रुपहली क्षितिज है, या रुपहले से हैं चेहरे,
ठंढ़ी पवन है, या हैं सर्द आहों के डेरे,
सिहरन सी है, तन-मन में,
इक तस्वीर उभर आई है, कोहरों में!
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704. तकरार

आत्मा और बदन में 
तकरार जारी है,   
बदन छोड़कर जाने को आत्मा उतावली है   
पर बदन हार नहीं मान रहा   
आत्मा को मुट्ठी से कसके भींचे हुए है   
थक गया, मगर राह रोके हुए है।   
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कुछ लोग-53

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कल शाम कहा उसने | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

कल शाम कहा उसने, फूलों की ग़ज़ल कह दो

'वर्षा' हो ज़रा बरसो, बूंदों की ग़ज़ल कह दो 

अब और न गूंथो यूं , चोटी में उदासी को 

ख़ुशियों की लहर देकर, जूड़ों की ग़ज़ल कह दो 

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आज का सफर यही तक 

आप सभी स्वस्थ रहें,सुरक्षित रहें 
कामिनी सिन्हा 
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16 comments:

  1. उम्दा लिंक्स चयन
    साधुवाद

    ReplyDelete
  2. शुभ प्रभात
    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई आदरणीया कामिनी जी।
    कुछ शब्द ही तो है, जिनकी इक विशाल दुनियाँ है और जहाँ हम खोए रहते हैं। शब्दविहीन दुनियाँ की कल्पना भी करना आसान नहीं।
    पुनः बधाई व शुभकामनाएँ। ।।।

    ReplyDelete
  3. सभी ने बहुत बढ़िया लिखा है।

    ReplyDelete
  4. सुप्रभात कामिनी जी ।
    चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद ।
    रचनाएँ पढ़ना अभी बाकी है ।
    चर्चा जारी है ।

    ReplyDelete
  5. अच्छे लिंक्स से सजी चर्चा। 'जो मेरा मन कहे' को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार।

    ReplyDelete
  6. पठनीय लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीया कामिनी सिन्हा जी।

    ReplyDelete
  7. पठनीय रचनाओं के सूत्रों से सजी सुंदर चर्चा !

    ReplyDelete
  8. सुन्दर और सारगर्भित रचनाओं का संकलन, उम्दा प्रस्तुतीकरण के लिए आपको बहुत बधाई, प्रिय कामिनी जी!
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका तहेदिल से आभार..!!

    ReplyDelete
  9. प्रिय कामिनी सिन्हा जी,
    सदैव की भांति पठनीयता से भरपूर बहुरंगी लिंक्स का यह गुलदस्ता चर्चा मंच को सुवासित कर रहा है। आपके श्रम के प्रति साधुवाद 🙏❤️🙏
    मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏❤️🙏
    स्नेहिल शुभकामनाओं सहित,
    डॉ. वर्षा सिंह

    ReplyDelete
  10. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    ReplyDelete
  11. पठनीय रचनाओं के सूत्रों से सजी सुंदर चर्चा प्रस्तुति ।

    ReplyDelete
  12. उम्दा रचनाओं से परिचित करवाता अंक

    ReplyDelete
  13. सुन्दर लिंक्स से सुशोभित चर्चा....मेरी पोस्ट को इस चर्चा में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार....

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  14. दिल से आभार प्रिय कामिनी दी।
    अत्यंत हर्ष हुआ अपने शब्द भूमिका में देखकर।
    समय मिलते ही सभी रचनाएँ अवश्य पढूंगी।
    बहुत बहुत शुक्रिया।

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  15. असाधारण रचनाओं से सुसज्जित चर्चामंच, हमेशा की तरह अपना अलग अंदाज़ छोड़ जाता है, आदरणीया अनीता जी की भावपूर्ण कवितांश से बांधी गई भूमिका मुग्ध करती है, मुझे जगह देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीया कामिनी जी - - नमन सह।

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  16. आप सभी स्नेहीजनों का तहेदिल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार

    ReplyDelete

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